देश भर में लागू किया गया E20 पेट्रोल, जिसमें 20% एथेनॉल शामिल है, अब वाहन मालिकों के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है. सरकार भले इसे ग्रीन एनर्जी की दिशा में ऐतिहासिक कदम बता रही हो, लेकिन आम लोगों के अनुभव कुछ और ही कहानी कह रहे हैं. देशभर में किए गए एक नए सर्वे के अनुसार, इस नए ब्लेंडेड फ्यूल ने जहां गाड़ियों की माइलेज घटा दी है, वहीं पुराने पेट्रोल वाहनों की मेंटेनेंस लागत भी बढ़ा दी है.
क्या कहता है सर्वे?
लोकल सर्किल्स (LocalCircles) द्वारा किए गए सर्वे में सामने आया कि 2022 या उससे पहले खरीदे गए वाहनों के 10 में से 8 मालिकों ने बताया कि 2025 में उनकी गाड़ियों की फ्यूल एफिशिएंसी घट गई है. अगस्त में यह आंकड़ा 67% था, जो अक्टूबर में बढ़कर 80% तक पहुंच गया. सर्वे में देशभर के 323 जिलों के 36,000 वाहन मालिकों ने हिस्सा लिया, जिनमें से 69% पुरुष और 31% महिलाएं थीं. इनमें लगभग आधे लोग टियर-1 शहरों से थे, जबकि बाकी टियर-2 और छोटे कस्बों या ग्रामीण इलाकों से थे.
घटता माइलेज… बढ़ती शिकायतें
अप्रैल 2025 से जब से देशभर में E20 पेट्रोल को अनिवार्य किया गया है, माइलेज और परफॉर्मेंस से जुड़ी शिकायतों में तेजी से इजाफा हुआ है. खासकर 2023 से पहले खरीदी गई कारों और दोपहिया वाहनों में यह समस्या ज्यादा देखने को मिल रही है. वाहन मालिकों का कहना है कि E20 पेट्रोल के इस्तेमाल के बाद उनकी गाड़ियां ज्यादा पेट्रोल खपत कर रही हैं, जबकि सरकार यह दावा करती रही है कि यह फ्यूल सभी वाहनों के लिए सुरक्षित है.
कई यूज़र्स ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए हैं. किसी की कार सुबह स्टार्ट नहीं हो रही, तो कोई इंजन रिपेयर पर हजारों रुपये खर्च कर रहा है. चेन्नई के एक लक्ज़री कार मालिक ने बताया कि उनकी गाड़ी का इंजन E20 की वजह से फेल हो गया और उन्हें करीब 4 लाख रुपये तक की मरम्मत करानी पड़ी. देश के कई शहरों के मेकैनिक्स का कहना है कि फ्यूल से जुड़ी शिकायतें अप्रैल के बाद से लगभग 40% तक बढ़ गई हैं.
सिर्फ माइलेज की गिरावट ही नहीं, बल्कि पुराने वाहनों के लिए यह फ्यूल और भी नुकसानदेह साबित हो रहा है. LocalCircles के अनुसार, 52% वाहन मालिकों ने बताया कि उनकी गाड़ियों में ज्यादा वियर एंड टियर और रिपेयर की जरूरतें महसूस हो रही हैं. अगस्त में यह आंकड़ा मात्र 28% था, जो अक्टूबर तक दोगुना हो गया.
किस तरह की समस्या हो रही है
अप्रैल 2025 से भारत में E20 पेट्रोल को अनिवार्य किया गया, और तभी से वाहन प्रदर्शन और माइलेज को लेकर शिकायतों की बाढ़ आ गई है. खासकर 2023 से पहले बनी कारें और टू-व्हीलर इस ईंधन के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं.
कई वाहन मालिकों ने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव साझा किए हैं:
- कारें स्टार्ट नहीं हो रहीं.
- इंजन रिपेयर पर हज़ारों–लाखों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.
- कई टू-व्हीलर में मिसफायरिंग और इंजन झटके जैसे लक्षण दिख रहे हैं.
चेन्नई के एक लक्ज़री कार मालिक ने तो यह तक बताया कि E20 की वजह से इंजन फेल होने के बाद उन्हें ₹4 लाख की मरम्मत लागत झेलनी पड़ी. मेकैनिक्स का कहना है कि अप्रैल से अब तक फ्यूल-रिलेटेड रिपेयर 40% बढ़ गए हैं.
सरकार का कहना है कि E20 की पहल का उद्देश्य है क्लीन एनर्जी को बढ़ावा देना और किसानों को बेहतर आमदनी दिलाना, क्योंकि एथेनॉल गन्ने से बनता है. लेकिन जनता का कहना है कि यह बदलाव मध्यमवर्गीय वाहन मालिकों की जेब पर भारी पड़ रहा है. LocalCircles के पिछले सर्वे में आधे से ज्यादा लोगों ने यह राय दी थी कि वे E20 का समर्थन तभी करेंगे जब इसे वैकल्पिक बनाया जाए और इसकी कीमत 20% कम रखी जाए.
ग्लोबल मार्केट में एथेनॉल
अगर ग्लोबल लेवल की बात करें, तो एथेनॉल ब्लेंडिंग का चलन पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है. 2024 में ग्लोबल एथेनॉल मार्केट 98.5 बिलियन डॉलर का था, जो 2035 तक 205.2 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. अमेरिका और ब्राजील इस सेक्टर में लीडर की भूमिका रहे हैं और दोनों मिलकर दुनिया का करीब 80% एथेनॉल उत्पादन करते हैं. मौजूदा समय में दुनिया के 30 से अधिक देशों में अलग-अलग लेवल पर एथेनॉल ब्लेंडिंग की नीतियां लागू हैं. कहीं E5, कहीं E10, तो कहीं E27 फ्यूल का इस्तेमाल किया जा रहा है.
भारत में भी इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है, लेकिन सवाल यही है कि क्या यह बदलाव वाकई आम जनता के लिए व्यावहारिक है? पर्यावरण की रक्षा के नाम पर शुरू हुआ यह ‘ग्रीन मिशन’ अब मिडिल क्लास के लिए ‘कॉस्टली मिशन’ बनता जा रहा है. जो कदम जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए उठाया गया था, वह अब गाड़ियों की सेहत और जेब दोनों पर भारी साबित हो रहा है.
क्या होता है E20 फ्यूल?
E20 फ्यूल एक ऐसा पेट्रोल मिश्रण है जिसमें 20 फीसदी एथेनॉल और 80 फीसदी पारंपरिक पेट्रोल होता है. इथेनॉल एक बायो-फ्यूल है जो मुख्य रूप से गन्ने, मक्का या अन्य फसलों से बनाया जाता है, और इसे फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता घटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. सरकार का उद्देश्य E20 को बढ़ावा देकर प्रदूषण कम करना और किसानों को फसल से अतिरिक्त आमदनी देना है. हालांकि, पुराने वाहनों के इंजन और फ्यूल सिस्टम इस हाई इथेनॉल ब्लेंडिंग के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए है, जिसके कारण कई बार माइलेज घटने, स्टार्टिंग दिक्कतें और मेंटेनेंस खर्च बढ़ने जैसी समस्याएं देखने को मिल रही हैं.
—- समाप्त —-