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दुर्गापुर गैंगरेप मामले पर राज्यपाल ने बताई पुनर्जागरण 2.0 की जरूरत, क्या है बंगाल में पहले नवजागरण की कहानी? – durgapur gangrape governor statement bengal renaissance movement ntcpmj


कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या का मामला ठंडा भी नहीं पड़ा था, कि कई ऐसे मामले आने लगे. कुछ समय पहले लॉ कॉलेज की छात्रा के साथ ऐसा हुआ. अब दुर्गापुर में एक मेडिकल स्टूडेंट के साथ गैंगरेप की घटना और उसपर सीएम ममता बनर्जी के बयान ने राजनीतिक तूफान ला दिया. इस बीच पश्चिम बंगाल में पुनर्जागरण 2.0 की जरूरत महसूस की जा रही है. 

क्या है वो मामला, जिसपर मचा तूफान

बर्धमान जिले के दुर्गापुर में एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज छात्रा के साथ गैंगरेप की जांच जारी है. इस बीच सीएम बनर्जी ने कह दिया कि स्टूडेंट देर रात बाहर थी. लड़कियों को इससे बचना चाहिए और सुनसान इलाकों में जाते हुए सतर्क रहना चाहिए. बेहद संवेदनशील मुद्दे पर ऐसे सतही बयान से हल्ला मचा हुआ है. इस बीच राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने पीड़िता और उसके परिवार से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने कह दिया कि महिलाओं के लिए बंगाल को सुरक्षित बनाने के लिए एक और पुनर्जागरण जरूरी है.

लेकिन क्या था पहला पुनर्जागरण 

बंगाल का पुनर्जागरण 18वीं सदी के आखिर और 19वीं सदी के शुरूआती सालों में हुआ. ये वह दौर था जब बंगाल में बड़े बदलाव आए, फिर चाहे वो कला-संस्कृति हो, या सामाजिक तौर-तरीके. सही मायनों में इसके बाद बंगाल पूरे देश के प्रतिनिधि की तरह उभरकर आया. 

18वीं शताब्दी के अंत में बंगाल बदलने लगा. पहले यह सिर्फ खेती और व्यापार का केंद्र था, लेकिन धीरे-धीरे शहरों में नई हवा चलने लगी. कोलकाता में अंग्रेज मौजूद थे. वे सात समंदर पार से आए थे और उनके कल्चर में कई नई चीजें दिखती थीं. इसने लोगों की सोच में हलचल पैदा की. लोग अब सिर्फ धर्म और परंपरा तक सीमित नहीं रहे वे दुनिया-जहान को देखना-समझना चाहते थे. 

west bengal governor CV Ananda Bose (Photo- PTI)
राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने राज्य के लिए एक और पुनर्जागरण की जरूरत बताई. (Photo- PTI)

शुरुआत हुई शिक्षा से. नई तरह के स्कूल-कॉलेज खुले. अंग्रेजी भाषा और वेस्टर्न तौर-तरीके सिखाए जाने लगे. पाश्चात्य साइंस पर जोर बड़ा. इसी दौर में राजा राममोहन राय जैसे समाज सुधारक भी थे, जिन्होंने सती प्रथा और बाल विवाह को खत्म किया. 

बंगाल आर्ट और कल्चर में पहले से ही समृद्ध था लेकिन अब इसमें आधुनिकता का फ्यूजन होने लगा. इस बीच बंगाल के समुद्री तटों से व्यापार भी फल-फूल रहा था. कुल मिलाकर, ये पुनर्जागरण सिर्फ साहित्य या संस्कृति तक सिमटा नहीं रहा, बल्कि इसका लंबा असर पड़ा और दूर तक भी. 

बंगाल ने पूरे देश में नई शिक्षा, अंग्रेजी और विज्ञान को फैलाने में बड़ी भूमिका निभाई. कोलकाता और इसके आसपास के इलाके विचारकों और स्कॉलर्स का हब बनने लगे. हर क्षेत्र में नए प्रयोग होने लगे, जिसका केंद्र बंगाल था. 

काफी बड़े हिस्से में हुआ बदलाव

ये आजादी से पहले का बंगाल था, जो अंग्रेजी शासन के अधीन बड़ा प्रांत था. इसे बंगाल प्रेसिडेंसी भी कहा जाता था, जिसमें आज का पश्चिम बंगाल और पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) भी शामिल था. साथ ही उसमें बिहार के अलावा उड़ीसा और असम के कुछ हिस्से भी आते थे. तब ये प्रांत आर्थिक तौर पर काफी मजबूत था. बड़े भारतीय विचारकों ने रही-सही कसर पूरी करते हुए पुनर्जागरण का बिगुल बजा दिया. इसके बाद से ये बौद्धिक केंद्र भी बन गया. 

durgapur gangrape protest (Photo- PTI)
महिला सुरक्षा के मामले में पश्चिम बंगाल लगातार नीचे जा रहा है. (Photo- PTI)

किसने किया पुनर्जागरण शब्द का उपयोग

अंग्रेज इतिहासकार जॉन स्ट्रेटन तब बंगाल में मौजूद थे. वे देख रहे थे कि वहां के लोग पाश्चात्य तौर-तरीके ही नहीं अपना रहे, सोचने का ढंग भी बदल रहा है. पुरानी चीजों पर सवाल उठ रहे हैं. नए स्कूल-कॉलेज खुल रहे हैं. महिलाओं को बेहतर जिंदगी मिल रही है. ये मामूली नहीं, बड़े बदलाव थे. तब उन्होंने ही इसके लिए पुनर्जागरण टर्म का इस्तेमाल किया. आगे चलकर यह शब्द बदलाव और आधुनिकता की पहचान बन गया. स्थानीय बंगाली इसे बंगाल नबजागरण कहने लगे. 

इसके बाद भी देश के कई हिस्सों में बदलाव होते रहे, लेकिन कोई भी बंगाल की तरह बड़ा और दूर तक फैलने वाला नहीं था, बल्कि वहीं तक सीमित रह गया. इसलिए आज भी बंगाल के उस दौर को बौद्धिक और सांस्कृतिक बदलाव की तरह याद किया जाता है. 

क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत

यहां से लौटते हैं राज्यपाल बोस के बयान पर, जिसमें कहा गया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए राज्य में पुनर्जागरण की जरूरत है. दरअसल उससे पहले वहां महिलाओं की स्थिति काफी खराब थी. सती प्रथा और बाल विवाह कॉमन थे. कुपोषण के चलते बच्चियां कम उम्र में मौत का शिकार हो जाती थीं. महिलाओं के पास जमीन, संपत्ति या शिक्षा का अधिकार काफी सीमित था. वे किसी बड़े फैसले का हिस्सा कभी नहीं बनाई जाती थीं. खासकर विधवाओं के लिए जीवन बेहद मुश्किल था.

जमीन के भीतर दबाव धीरे-धीरे बढ़ रहा था और फिर बदलाव का विस्फोट हुआ. अंग्रेजी की मौजूदगी ने इसमें कैटेलिस्ट का काम किया और नबजागरण का दौर चल पड़ा. हालांकि ये भी है कि अंग्रेज सीमित तौर पर ही लोकल रीति-रिवाजों में दखल दिया करते. वे मानते थे कि स्थानीय परंपराओं से दूरी बरतना ही उन्हें देर तक राज करने देगा. 

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