उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में डेढ़ साल का समय बाकी है, लेकिन पंचायत चुनाव की सियासी तपिश बढ़ गई है. सूबे की सत्ता पर काबिज एनडीए की विधानसभा चुनाव से पहले ही गांठे खुलती नज़र आ रही हैं. अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल और निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद के बाद केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी ने पंचायत चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है.
मेरठ में आरएलडी की चुनाव समिति की बैठक में ऐलान किया गया कि वह बिना किसी गठबंधन के पंचायत चुनाव अकेले लड़ेगी. एनडीए का हिस्सा होने के बाद भी आरएलडी ने उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव अकेले अपने दम पर किस्मत आजमाने का फैसला किया है. इस तरह बीजेपी के तीन प्रमुख सहयोगियों ने पंचायत चुनाव में अकेले दम पर ताल ठोक दी है.
यूपी पंचायत चुनाव से पहले सियासी माहौल बनाने के लिए जयंत चौधरी उतर रहे हैं. सूबे में जयंत चौधरी सात बड़ी जनसभाएँ करेंगे. इसकी शुरुआत दो अक्टूबर को अलीगढ़ से हो रही है और आखिरी रैली 31 अक्टूबर को सरदार पटेल जयंती के मौके पर बस्ती में होगी. हालांकि, इससे पहले बुधवार को आरएलडी की लखनऊ में बड़ी बैठक भी होने जा रही है, जिसमें पंचायत चुनाव को लेकर रणनीति बनाई जाएगी.
आरएलडी पंचायत चुनाव में अकेले लड़ेगी
जयंत चौधरी की पार्टी आरएलडी एनडीए का हिस्सा है. केंद्र की मोदी सरकार में जयंत चौधरी खुद मंत्री हैं तो यूपी की योगी सरकार में उनकी पार्टी शामिल है और आरएलडी मंत्रिमंडल का हिस्सा है. इसके बावजूद आरएलडी ने यूपी पंचायत चुनाव में अकेले उतरने का फैसला किया है. आरएलडी नेता डॉ. कुलदीप उज्जवल ने कहा कि पंचायत का चुनाव गांव का चुनाव है, गांव के लोग इसमें वोट डालते हैं. हमारी पार्टी गांव में जमीनी स्तर तक जुड़ी हुई है, उसी पर हम काम करते हैं और उसी के दम पर हम पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.
उन्होंने कहा कि हमारी पूरी तैयारी हो चुकी है, मेरठ में हमारी बैठक थी जो हमारी क्षेत्रीय स्तर की बैठक थी. हमारा क्षेत्र ये दो मंडलों का क्षेत्र है, हमारा गठबंधन है, हम एनडीए के पार्ट हैं, वह विधानसभा स्तर पर, लोकसभा स्तर पर हमारा गठबंधन है, लेकिन यह क्षेत्रीय स्तर का चुनाव है, पंचायत का चुनाव है. इसे हम लोग अपने संगठन के दम पर, अपने कार्यकर्ता के दम पर लड़ने का काम करेंगे.
आरएलडी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रामशीष राय ने बताया कि 17 सितंबर को जयंत चौधरी लखनऊ में कार्यकर्ताओं से मुलाकात करके संगठन के कार्यों के लिए दिशा-निर्देश देंगे. इसके बाद 30 सितंबर से संगठन के कार्यक्रम शुरू होंगे और सभी 75 जिलों में एक साथ बैठक होगी.
अनुप्रिया और संजय निषाद अकेले चुनाव लड़ेंगे
जयंत चौधरी की आरएलडी से पहले अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद भी अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. इस तरह से यूपी में बीजेपी के तीनों सहयोगी दलों ने अपने तेवर दिखा दिए हैं. बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल ने दो महीने पहले ही यह बात साफ कर दी थी कि उनकी पार्टी पंचायत चुनाव में अकेले किस्मत आजमाएगी.
एनडीए के तीनों सहयोगी दलों ने बीजेपी को दो-टूक में कह दिया है कि वे आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ेंगे. साथ ही कहा कि बीजेपी से हमारा गठबंधन विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए था.
क्या पंचायत चुनाव 2027 का सेमीफाइनल है?
यूपी में 2026 की शुरुआत में पंचायत चुनाव होने हैं, जिसे 2027 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. पंचायत चुनाव के बाद सीधे 2027 के विधानसभा चुनाव होने हैं. सूबे की दो-तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां पर पंचायत चुनाव होते हैं. ऐसे में सियासी दल पंचायत चुनाव के जरिए अपनी सियासी ताकत का आकलन करते हैं. इसीलिए बीजेपी के साथ रहते हुए भी ये दल पंचायत चुनाव में अकेले दम पर लड़कर 2027 में अपनी सियासी मोलभाव की शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं.
आरएलडी का मानना है कि पंचायत चुनाव से संगठन की ताकत निचले स्तर तक पहुंचेगी और कार्यकर्ताओं को सक्रिय राजनीति में भागीदारी का अवसर मिलेगा. पंचायत चुनाव समिति के प्रदेश संयोजक ने बैठक के बारे में बताया कि पंचायत चुनाव से ही विधानसभा चुनाव की मजबूत नींव तैयार होगी. उज्जवल ने ज़ोर दिया कि पंचायत स्तर की जीत भविष्य की बड़ी राजनीतिक दिशा तय करेगी.
अनुप्रिया क्यों अकेले चुनाव लड़ना चाहती हैं?
केंद्र की मोदी और यूपी की योगी सरकार में अपना दल (एस) सबसे पुराने सहयोगी दलों में से एक है. अनुप्रिया पटेल केंद्र में और उनके पति राज्य में मंत्री हैं. बीते दिनों अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल ने प्रयागराज में मीडिया से बात करते हुए कहा था कि पंचायत चुनाव में गठबंधन को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है. हमारी पार्टी अपने स्तर से पंचायत चुनाव में उतरने की पूरी तैयारी में है.
अनुप्रिया पटेल ने साफ कहा था कि बहुत सारे लोग संगठन से जुड़ना चाहते हैं, हम उन तक नहीं पहुँच पा रहे हैं. केवल 10-12 विधायकों के बनने से पार्टी का काम नहीं होता. यह तो केवल एक पड़ाव है. लक्ष्य से हम बहुत दूर हैं. ऐसे में पंचायत चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़कर अपनी ताकत को बढ़ा सकते हैं. साफ संकेत हैं कि अनुप्रिया पटेल पंचायत चुनाव के जरिए 2027 के लिए सियासी आधार मजबूत करना चाहती हैं.
निषाद पार्टी की सियासी महत्वाकांक्षा
अनुप्रिया पटेल के बाद अब योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद भी यूपी पंचायत चुनाव अपने दम पर लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. संजय निषाद ने दो-टूक कहा कि आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव निषाद पार्टी अकेले लड़ेगी. संजय निषाद ने कहा कि अब समय आ गया है जब निषाद पार्टी को ज़मीनी स्तर पर अपनी राजनीतिक पहचान को स्थापित करना है. पार्टी की जड़ें गाँव-गाँव में फैली हुई हैं और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव उस नींव को मजबूत करने का सबसे अच्छा मंच है. हर गाँव और हर बूथ पर निषाद पार्टी का झंडा लहराना है. समाज को उसकी राजनीतिक आवाज़ देने का समय आ गया है. संगठन को बूथ स्तर तक सक्रिय करें और लोगों को बताएँ कि निषाद पार्टी ही उनकी असली प्रतिनिधि है.
मंत्री संजय निषाद ने यह भी कहा कि पंचायत चुनावों में सफलता पार्टी को 2027 के विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका के लिए तैयार करेगी. इस तरह साफ कर दिया कि पंचायत चुनाव के जरिए आगामी चुनाव में अपनी ताकत को बढ़ाने की है. इस तरह निषाद पार्टी की ख्वाहिश को भी समझा जा सकता है, लेकिन सवाल ये है कि अकेले चुनाव लड़कर क्या सियासी मकसद को पूरा कर पाएँगे?
यूपी में छोटे दलों की बड़ी ख्वाहिश
राजनीतिक दल पंचायत चुनाव के जरिए अपनी सियासी ताकत का आकलन करते हैं. यूपी में औसतन चार से छह जिला पंचायत सदस्यों को मिलाकर विधानसभा का एक क्षेत्र हो जाता है. यही वजह है कि अपना दल का फोकस पंचायत चुनाव में जिला पंचायत सीटों पर है.
सियासी विश्लेषकों की मानें तो जिला पंचायत के सदस्यों को मिलने वाले वोट के आधार पर राजनीतिक दलों को इस बात का अहसास होता है कि वे कितने पानी में हैं. यूपी में अपना दल का प्रभाव मुख्य रूप से कुर्मी समाज के बीच है. इसी तरह निषाद पार्टी का आधार निषाद समाज के बीच है. इसीलिए दोनों ही पार्टियों का ज़ोर अपने-अपने समाज पर है, जो मूल रूप से ग्रामीण इलाके में रहते हैं.
पंचायत चुनाव के आधार पर वोटों के समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद करते हैं. सियासी दल ये भी समझते हैं और आकलन करते हैं कि क्षेत्रवार और जातिवार आधार पर आगे कैसी रणनीति बनानी है. यूपी पंचायत चुनाव के आधार पर 2027 के विधानसभा चुनाव की सियासी ज़मीन नापना चाहते हैं, इसलिए गठबंधन की परवाह किए बिना अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद ने अपनी सियासी कवायद शुरू कर दी है, लेकिन अकेले चुनाव लड़ने से खेल बिगड़ने का भी खतरा है.
क्या एनडीए गठबंधन की खुल रही गांठ
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी के तीनों सहयोगी दल भले ही अपनी पार्टी को मजबूत करने के उद्देश्य से अकेले चुनाव लड़ने जा रहे हैं, लेकिन इससे कहीं न कहीं सियासी नुकसान की भी संभावना है. 2027 में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित है. ऐसे में सहयोगी दलों के अलग होकर चुनाव लड़ने से जनता में गलत संदेश चला जाएगा.
यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा इस मुद्दे को उठा सकती है और गाँव-गाँव तक भुना सकती है. इतना ही नहीं, यह भी कहा जा रहा है कि ये दल इसलिए भी अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं, ताकि अगर पंचायत चुनाव में इनकी सीटें ठीक-ठाक आ जाती हैं या अनुमान से ज़्यादा आ जाती हैं तो ये विधानसभा चुनाव में बीजेपी पर ज़्यादा सीटों का दबाव बना सकें, लेकिन एनडीए के घटक दलों के अकेले-अकेले चुनाव लड़ने से वोट बिखरने का भी खतरा है. इस तरह से सियासी नफे से ज़्यादा कहीं राजनीतिक नुकसान न हो जाए.
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