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ACP प्रद्युम्न के किरदार में टाइपकास्ट हुए शिवाजी साटम, लगा बुरा? बोले- मेरा अपना पोता… – CID Shivaji satam grandson reaction acp meme near death experience tmova


सीनियर एक्टर शिवाजी साटम CID में अपने आइकॉनिक किरदार एसीपी प्रद्युमन के लिए फेमस हैं. लगभग दो दशक से चले आ रहे इस शो की शूटिंग के दौरान वो मौत का भी एक्सपीरियंस ले चुके हैं. लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. शिवाजी ने बताया कि उनका पोता इस पर गर्व जताता है. 

शिवाजी साटम ने शो से जुड़े वायरल मीम्स पर भी अपनी राय दी और कहा कि उन्होंने हमेशा उन्हें मजाकिया अंदाज में लिया.

पोते को हुआ गर्व

TOI से शिवाजी बोले- मुझे सचमुच धन्य महसूस होता है, सिर्फ मैं ही नहीं बल्कि पूरी CID टीम भी. कोविड के बाद जो इतना लंबा ब्रेक आया और उसके बाद यह नया मौका, यह वापसी… ऐसा हर किसी को नहीं मिलता.

उन्होंने आगे कहा, “हम इतने सालों तक ऑन‑एयर रहे हैं कि यह एक पीढ़ीगत चीज बन चुकी है. चार पीढ़ियां हमें देखकर बड़ी हुई है. मेरा अपना पोता गर्व से कहता है, ‘मेरे आबा ACP प्रद्युमन हैं.’ यह गर्व, यह रिश्ता… मेरे लिए सबकुछ है. इससे पता चलता है कि दर्शक हमारे किरदारों को कितनी गहराई से महसूस करते हैं. कई बार ऐसा लगता है मानो दर्शक हमारे साथ ही केस सुलझा रहे हों.”  

“कई बार पुलिस अधिकारी और असली जीवन के लोग कहते थे कि ‘आप लोग पर्दे पर इतने जल्दी केस सुलझा लेते हैं कि जनता हमसे भी वही उम्मीद करने लगती है.’ यह भी एक खूबसूरत बात है.”

मीम्स देखकर अच्छा लगता है

सोशल मीडिया को लेकर शिवाजी साटम ने कहा, “मुझे सच में कभी अंदाजा नहीं था कि सोशल मीडिया इतना प्रभावशाली हो गया है. यह साफ दिखाता है कि पीढ़ियों का फर्क कितना है. मेरा पोता मुझे विज्ञान, टेक्नोलॉजी और डिजिटल दुनिया से जुड़ी चीजें सिखाता है. मैंने बहुत सारे क्रिएटिव रील्स देखे, कुछ इतने मजेदार थे कि मैंने उन्हें सेव कर लिया. मजेदार बात यह है कि यूट्यूबर मिथपैट CID में एक लाश का रोल करना चाहता है, यही उसका सपना है. सोचिए, कोई फैन सिर्फ लाश बनने के लिए शो में आना चाहता है. यह मजेदार भी है और नम्र बनाने वाला भी.”  

टाइपकास्ट होने का नहीं लगा डर

अपने करियर के बारे में शिवाजी साटम ने बताया, “मेरा सफर मराठी थिएटर से शुरू हुआ. इसके बाद मैं मराठी फिल्मों और टीवी की ओर बढ़ा. उस इंडस्ट्री ने मुझे बहुत कुछ सिखाया- कहानी की अहमियत, किरदार की अहमियत और भावना की कीमत. मैंने पिता और पुलिस ऑफिसर जैसी कई भूमिकाएं निभाईं, लेकिन मुझे कभी भी दोहराव या टाइपकास्टेड होने का बुरा नहीं लगा. मेरा एक सरल सिद्धांत है- अगर मैं किरदार पर विश्वास नहीं करता और सिर्फ पैसे कमाने के लिए करता हूं, तो यह किरदार के साथ धोखा है. थिएटर सिखाता है कि अपने काम को ईमानदारी से निभाओ.”   

जब मौत से हुआ सामना

शूटिंग से जुड़ा एक हादसा याद करते हुए उन्होंने कहा,“एक बार मैं शूटिंग के दौरान गहरे बर्फीले गड्ढे में जा गिरा था, लगभग मेरी गर्दन तक. शुक्र है कि अभिजीत और दया ने तुरंत मेरे हाथ पकड़ लिए और मुझे बाहर खींच लिया. पूरा इलाका बर्फ से ढका हुआ था, और जब मैं स्कूटर की तरफ जा रहा था, तभी अचानक गिर पड़ा. अगर उन्होंने मुझे पकड़कर नहीं खींचा होता, तो मैं लगभग 15–20 फीट नीचे चला जाता. और सबसे डरावनी बात यह थी कि उसके ठीक बगल में एक नदी बह रही थी.”

—- समाप्त —-