रात का सन्नाटा… हवा में उड़ती राख… और चिताओं से उठता धुआं… ऐसे में अगर कोई कहे कि यहां से ‘मुर्दे भी सेफ नहीं हैं’ तो सुनने वाला सिहर उठे. लेकिन बागपत के एक गांव में यही सच्चाई लोगों की रगों में डर बनकर दौड़ रही है. यह कहानी है बागपत जिले के दोघट थाना क्षेत्र के हिम्मतपुर सूजती गांव की… जहां मौत के बाद भी चैन नहीं है. गांव का श्मशान घाट इन दिनों रहस्य और डर का ठिकाना बन गया है. यहां जलती चिता के बाद मुर्दों की अस्थियां रहस्यमयी तरीके से गायब हो रही हैं.
किसी हॉरर फिल्म से कम नहीं ये कहानी
कुछ दिन पहले गांव में एक व्यक्ति की मौत हुई थी. परिवार के लोग जैसे परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार करते हैं, वैसा ही किया- श्मशान घाट जाकर रीति-रिवाज से अंतिम क्रियाएं हुईं. लेकिन जब तीसरे दिन अस्थियां लेने वापस लौटे, तो जो नजारा सामने आया उसने पैरों तले जमीन खिसका दी. चिता के पास दीपक जल रहा था, दो उपले थे, और आसपास तंत्र-मंत्र का सामान बिखरा था. अस्थियां गायब थीं.
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परिवार के सदस्य बिजेंद्र, जिनके भाई का अंतिम संस्कार हुआ था, कहते हैं कि जब हम अस्थियां लेने पहुंचे तो देखा कि चिता के आसपास कुछ अजीब सा नजारा था. शव का एक हिस्सा बाहर था. आसपास दीपक और उपले थे. कुछ अवशेष गायब थे. समझ नहीं आया कि कौन इतनी रात श्मशान पर आकर ऐसा कर गया.
बिजेंद्र अकेले नहीं हैं, जो ये कहानी बता रहे हैं. हिम्मतपुर सूजती के ग्रामीण कहते हैं कि पिछले आठ महीनों से लगातार ऐसी घटनाएं हो रही हैं. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले हमें लगा यह किसी जानवर का काम होगा, लेकिन हर बार चिता के पास पूजा-सामग्री मिलती है. कहीं अगरबत्ती मिलती है तो कहीं नींबू और राख का ढेर. अब तो गांव में कोई मरता है, तो लोग डर जाते हैं कि पता नहीं उसकी अस्थियों का क्या होगा.
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गांव वाले कई बार रात में श्मशान पर पहरा भी लगा चुके हैं. लोग समूह बनाकर वहां रात गुजारते हैं, लेकिन सुबह जब लौटते हैं तो फिर वही रहस्यमयी नजारा- अस्थियां गायब और तांत्रिक पूजा का सामान बिखरा हुआ. धीरे-धीरे यह सिलसिला गांव में अंधविश्वास का रूप ले चुका है.
कुछ लोग मानते हैं कि कोई तांत्रिक साधक मुर्दों की अस्थियों से काला जादू करता है. किसी का कहना है कि श्मशान के दक्षिणी हिस्से में रात को अजीब रोशनी दिखती है, तो कोई कहता है कि कभी-कभी वहां से मंत्रोच्चारण जैसी आवाजें आती हैं. इन बातों की कोई ठोस पुष्टि नहीं, लेकिन डर का माहौल इतना गहरा है कि अब गांव की औरतें सूर्यास्त के बाद श्मशान की दिशा में देखना भी नहीं चाहतीं.
मुर्दे भी नहीं महफूज… गांव वालों का दर्द
गांव के बुजुर्ग किसान रामपाल सिंह कहते हैं कि हमने तो जिंदगी में बहुत कुछ देखा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि चिता से अस्थियां ही गायब हो जाएं. अब तो हाल ये है कि जब भी कोई जाता है अस्थियां लेने, तो पूरे गांव के दो-तीन लोग उसके साथ जाते हैं. डर है कि कहीं फिर कुछ न हो जाए.
गांव के बच्चे अब श्मशान घाट की तरफ खेलने भी नहीं जाते. शाम ढलते ही घाट की तरफ जाने वाला रास्ता वीरान हो जाता है. किसी को समझ नहीं आ रहा कि यह इंसान का काम है, जानवर का या किसी तांत्रिक साधना का हिस्सा.
ग्राम प्रधान सनोज बताते हैं कि गांव में पहले भी ऐसी बातें सुनने को मिली थीं, लेकिन अब तो घटनाएं सामने आ रही हैं. लोग डरे हुए हैं. यह गंभीर मामला है, अधिकारियों से मिलकर इसकी शिकायत की जाएगी, ताकि पूरी कहानी सामने आ सके.
ग्रामीणों की मान्यता है कि कुछ तांत्रिक साधक अस्थि तंत्र साधना करते हैं. गांव वालों के लिए यह बहस नहीं, डर और बेचैनी का मुद्दा है. उनका सवाल साफ है कि जिस धरती पर मुर्दे भी सुरक्षित नहीं, वहां जिंदा लोग कैसे चैन से रहेंगे?
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हालांकि अब तक किसी ने औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं कराई है. हिम्मतपुर सूजती का श्मशान घाट अब गांव वालों के बीच एक तिलिस्मी जगह बन चुका है. रात में वहां से गुजरते हुए लोग अपनी चाल तेज कर लेते हैं. कभी किसी को दीपक दिख जाता है, तो कोई कहता है उसने किसी परछाई को चलते देखा. हर अफवाह गांव में नया डर बो देती है. और शायद इसीलिए अब लोग कहते हैं कि यहां मुर्दे भी नहीं महफूज़.
अंतिम सवाल यही है कि कौन है वो शख्स जो रात के अंधेरे में श्मशान पहुंचकर अस्थियां उठा ले जाता है? क्या सच में यह किसी तांत्रिक की करतूत है, या किसी पागलपन की हद तक पहुंची किसी विचित्र मानसिकता का नतीजा? इन सवालों के जवाब अभी धुएं में हैं- बिलकुल उसी धुएं की तरह जो इस श्मशान से उठता है.
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