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जंगलराज! जानें-कब, कैसे और कहां से आया ये शब्द जिसने बिहार की राजनीति में लालू यादव की जमीन खींच ली – jungle raj word patna high court lalu yadav rabri devi rjd era 1990s bihar politics ntcppl


हमारे सामाजिक-राजनीतिक जीवन में कुछ शब्द इतने ताकतवर हो जाते हैं कि वे राजनेताओं की छवि और करियर को बनाने-बिगाड़ने तक की ताकत रखते हैं. ‘सामाजिक न्याय’ का नारा देकर सत्ता में आए लालू प्रसाद यादव के साथ ‘जंगलराज’ शब्द ने भी कुछ ऐसा ही किया. इस शब्द की प्रतिध्वनि (Echo) दशकों तक बिहार की राजनीति में गूंज रही है. जिसने पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू यादव की राजनीति को प्रभावित भी किया और परिभाषित भी.
 
सवाल उठता है कि ‘कानून का राज’ खत्म हो जाने का आभास देने वाला ‘जंगलराज’ शब्द आखिर बिहार की राजनीति में आया कैसे? इस सवाल के जवाब में एक रोचक कहानी छुपी है जो बताती है कि शब्द कैसे धारणा बनाते हैं, और उसी के आधार पर एक व्यक्ति, एक सत्ता का पूरा चित्र खींचा जाता है.
 
‘जंगलराज’ किसी पार्टी के घोषणा पत्र से निकला शब्द नहीं है, न ही पहले पहल ये किसी राजनीतिक दल के खिलाफ उठा कोई नारा था. ‘जंगलराज’ शब्द पटना हाई कोर्ट के एक जज की मौखिक टिप्पणी (Oral observation) है. महत्वपूर्ण बात ये है कि कोर्ट की ये टिप्पणी ‘अपराध’ या कानून व्यवस्था को लेकर नहीं की गई थी.
 
जब पटना हाईकोर्ट ने कहा था- बिहार में कोई सरकार नहीं है, जंगलराज है
 
आज से लगभग 28 साल पीछे चलते हैं. तब का बिहार याद करिए. चारा घोटाले में फंसे लालू यादव ने 25 जुलाई 1997 को इस्तीफा दे दिया. उन्होंने जेल जाने से पहले राज्य की बागडोर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी.
 
चारा घोटाले के खुलासे के बाद उस साल बिहार में जबर्दस्त राजनीतिक कोहराम हुआ था. स्टेट मशीनरी ठप पड़ी थी. इसी साल पटना में मॉनसून की बारिश सैलाब लेकर आई. पटना शहर डूब चुका था. कहीं से पानी की निकासी नहीं हो रही थी. पटना की कई कॉलोनियों में पानी घरों के अंदर तक घुस चुका था. कीचड़ और गंदगी से पटना में लगभग नर्क जैसे हालात थे.  
 
पटना हाईकोर्ट ने ही अपनी टिप्पणी में इसके लिए Veritable hell (नर्क जैसा) शब्द इस्तेमाल किया था. बजबजाते नाले-नालियों की ओर ध्यान दिलाते हुए कृष्ण सहाय नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की.  पटना हाईकोर्ट में जस्टिस बीपी सिंह और जस्टिस धर्मपाल सिन्हा की खंडपीठ ने इस केस की सुनवाई की. केस का नंबर था- MJC 1993 OF 1996.

लालू यादव अपने कार्यकाल में लाठी को केंद्र में रखकर रैलियां आयोजित करते थे.

इसी केस की सुनवाई के दौरान पटना हाईकोर्ट ने टिप्पणी की थी, ‘बिहार में राज्य सरकार नाम की कोई चीज नहीं है और जंगलराज कायम है, यहां मुट्ठी भर भ्रष्ट नौकरशाह प्रशासन चला रहे हैं.’ ये अदालत की मौखिक टिप्पणी थी.
 
अदालत की ये टिप्पणी शहरी विकास सचिव, पटना नगर निगम, बिहार जल निगम, पटना रिजनल डेवलपमेंट अथॉरिटी के अफसरों पर थी जो केस की सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद थे.
 
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “राज्य और इसकी मशीनरी ने जिस कदर की उदासीनता दिखाई है उसे आपराधिक उदासीनता (Criminal indifference) कहा जा सकता है….पटना शहर में ड्रेनेज सिस्टम नाम की कोई चीज नहीं है. ऐसा ही हाल इस शहर के सीवरेज सिस्टम का है.”
 
पटना भारत की सबसे गंदी राजधानी
 
अदालत इन विभागों की कार्रवाई से इस कदर रुष्ट थी कि उसने अपने फैसले में कहा, “ये संस्थाएं रोजगार मुहैया कराने के अलावा क्या काम करती हैं कोई नहीं जानता, नतीजा यह हो गया है कि पटना शहर बिना किसी कॉम्पीटिशन के भय के भारत की सबसे गंदी राजधानी का दावा कर सकता है.”
 
अदालत ने अपने फैसले में कहा,”संवैधानिक जिम्मेदारियों के प्रति इन संस्थाओं की उदासीनता की तीव्र निंदा की जानी चाहिए. जब ऐसे निकाय दशकों तक अपना संवैधानिक दायित्व नहीं निभाते हैं  तो किसी को जरूर लग सकता है कि आखिरकार राज्य के लोगों को लाभ पहुंचा पाने में अक्षम रहने वाली ऐसी संस्थाओं की जरूरत ही क्या है?”
 
स्पष्ट है कि ‘जंगलराज’ की पटना हाईकोर्ट की टिप्पणी किसी राजनीतिक मुकदमे या अपराध के मामले की सुनवाई के दौरान नहीं की गई थी. 1997 में हाईकोर्ट की टिप्पणी आई.  वर्ष 2000 के विधानसभा चुनाव में जनता ने फिर राबड़ी-लालू को चुना. अपने बुलंदी के दौर में आरजेडी ‘जंगलराज’ को विपक्ष का प्रचार कहती थी.
 
हां, बिहार में जंगलराज है, और वहां एक ही शेर है
 
फरवरी 2000 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने नालंदा की एक चुनावी रैली में अपने समर्थकों से कहा था, “हां बिहार में है जंगलराज, जंगल में एक ही शेर रहता है और सभी लोग उस शेर का शासन मानते हैं.” राबड़ी तब बिहार का शेर किसे बता रही थीं, ये राजनीतिक चेतना रखने वाला हर व्यक्ति जानता है.

चारा घोटाले में जेल जाने के बाद लालू ने राबड़ी को CM बनाया. (Photo: India today archive)

 
लेकिन बिहार का ये वो दौर था जब राज्य में अपराध, अपहरण, रंगदारी और संगठित माफिया का बोलबाला था. सामाजिक न्याय, समाज के हाशिये पर पड़े वर्ग को आवाज देने का वादा कर 1990 में सत्ता में आए लालू यादव पर भ्रष्टाचार, जातिवाद, तुष्टिकरण, अपराध संरक्षण और बिगड़ती कानून व्यवस्था के आरोप लगने लगे.
 
बीबीसी हिंदी के लिए लंबे तक बिहार को कवर कर चुके वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर  कहते हैं, “चूंकि हाईकोर्ट ने जंगलराज शब्द का इस्तेमाल किया था, जंगलराज को उस समय के विपक्ष ने उठा लिया, और जब भी उनको उस समय के शासन काल पर आक्षेप लगाना होता था, तो इस शब्द का सहारा लिया जाता.”
 
ठाकुर ने कहा कि, ” लालू-राबड़ी का जो 15 वर्षों का जो दौर था इस दौरान ऐसा भी वक्त आया जब किडनैपिंग की घटनाएं बहुत बढ़ गई थीं. इनकी राज्य ही नहीं पूरे देश में चर्चा होने लगी कि बिहार में फिरौती के लिए अपहरण हो रहा है और इसे इस राज्य की सरकार का संरक्षण हासिल है. विपक्ष को जब अपहरण की इन घटनाओं पर टिप्पणी करनी होती थी तो वे जंगलराज का इस्तेमाल करते थे.”
 
2005 का विधानसभा चुनाव याद कीजिए. नीतीश ने ‘जंगलराज’ शब्द को लपक लिया. उन्होंने इसी शब्द के इर्द-गिर्द अपना चुनावी चक्रव्यूह रचा और ‘जंगलराज’के राजनीतिक मुहावरे के बनाम ‘सुशासन’ का नारा दिया.
 
सुशील मोदी ने जंगलराज मेटाफर को कैपिटलाइज किया
 
चारा घोटाले को सामने लाने में बड़ा रोल निभाने वाले दिवंगत सुशील कुमार मोदी बिहार बीजेपी के ऐसे नेता थे जिन्होंने ‘जंगलराज’ के मेटाफर को कैपिटलाइज किया और इसे लालू शासन से जोड़ते रहे.
 
नीतीश ने ‘जंगलराज’ के खिलाफ नैरिटव सेट किया और कहा, “अब बिहार को ‘जंगलराज’ से निकालकर सुशासन देना है.” 2005 में बिहार में लालू राज के 15 साल हो चुके थे. ये सामाजिक-राजनीतिक बदलाव का लंबा वक्त था. ये बदलाव का दौर था. 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी केंद्र से विदा हो चुके थे. 2005 में लालू की बारी थी.  
 
सामाजिक मसीहा से अराजक प्रशासक की छवि
 
लालू के लिए इस नैरेटिव का नुकसान ये हुआ कि उनकी ‘सामाजिक मसीहा’ की छवि पर ‘जंगलराज’ का लेबल हावी हो गया. उनकी छवि ‘अराजक प्रशासक’ के रूप में बदलने लगी.
 

लालू यादव को बिहार में पिछड़ों को राजनीति की मुख्यधारा में लाने का श्रेय दिया जाता है.

नवंबर 2005 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की जीत ने इस नैरिटिव को पब्लिक सपोर्ट दे दिया. बिहार की जनता ने ‘सुशासन’ का मॉडल चुना. RJD सत्ता से बाहर थी.  
 
लालू के दो सालों का दबदबा
 
मणिकांत ठाकुर कहते हैं, “उसी दौर में लोगों ने देखा कि लालू जी के दो साले साधु यादव और सुभाष यादव का दबदबा था. लालू जी के शासन को अगर सबसे ज्यादा बदनामी मिली तो इन दोनों भाइयों की वजह से. इनके कुछ ऐसे कारनामे थे जो लोगों की नजर पर तैर जाते थे. जैसे कि रंगदारी, उगाही. ये सारा कुछ होने लगा. आगे चलकर अपहरण के अलावा सड़कों की हालत खराब हो गई, कई तरह की परेशानियां लोगों को होने लगी. सब मिला जुलाकर लोगों ने ‘जंगलराज’ कहना शुरू किया.
 
1990 से 2004 तक बिहार में अपराध की कई ऐसी वारदातें हुईं जिसकी चर्चा पटना से लेकर दिल्ली तक हुई. इनमें चंपा विश्वास बलात्कार कांड, पटना का शिल्पी गौतम हत्याकांड, शोरूम से कारों की लूट, जातीय सेनाओं की जंग और सामूहिक हत्याएं, डॉक्टरों की किडनैपिंग, व्यवसायियों के पलायन ने खूब सुर्खियां बटोरी.
 
तब 7 साल के थे तेजस्वी, अब 20 साल बाद भी…
 
इन घटनाओं ने ‘जंगलराज’ की टिप्पणी को बिहार की राजनीति में स्थायी रुप से राजनीतिक मुहावरे के रुप में स्थापित कर दिया.  समय के साथ ‘जंगलराज’ शब्द का न्यायिक संदर्भ लोगों की स्मृति से खत्म हो गया और ये एक शक्तिशाली राजनीतिक मुहावरा बन गया.
 
हालांकि मणिकांत ठाकुर यह भी कहते हैं कि लालू राबड़ी शासन के संदर्भ में इसका पहली बार इस्तेमाल हुआ. वर्ना ऐसा नहीं है कि इस शब्द को पहली बार सुना गया. जंगलराज एक मुहावरा है जिसका इस्तेमाल लोग तब करते हैं जहां अराजकता हो, जहां कानून का राज न हो और इसे वहां की सत्ता और सरकार का संरक्षण हासिल हो. इन आरोपों के संदर्भ में जंगलराज का इस्तेमाल किया गया.
 
पटना हाई कोर्ट ने जब ‘जंगलराज’ की टिप्पणी की थी तो तेजस्वी यादव 7 बरस के थे. एक छोटे ब्रेक को छोड़कर बिहार में आरजेडी 20 साल से सत्ता से बाहर है. अब आरजेडी की कमान युवा तेजस्वी के हाथों में है. लेकिन लालू-राबड़ी का ‘जंगलराज’ जुमला एनडीए के लिए इतना ताकतवर राजनीतिक हथियार है कि 20 साल बाद भी तेजस्वी यादव को परेशान करता रहता है.  

—- समाप्त —-