मैथिली ठाकुर का कहना है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से काफी प्रभावित रही हैं, और उनको देखकर ही राजनीति में आने का मन बनाया है. प्रधानमंत्री मोदी को शासन और सत्ता की कमान संभाले 25 साल हो गए, और मैथिली ठाकुर भी 25 साल की हो चुकी हैं. 7 अक्टूबर को मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, जिसे सोशल मीडिया पर शेयर भी किया है.
पांच साल की रही होंगी मैथिली ठाकुर, जब नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. लोक संगीत में धूम मचाने के बाद मैथिली ठाकुर अब अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत करने जा रही हैं. और, मैथिली हाल फिलहाल गीत-संगीत से जुड़ी दूसरी शख्सियत हैं, जिन्हें बीजेपी चुनावी राजनीति में पेश करने जा रही है. हाल ही में भोजपुरी स्टार पवन सिंह ने भी बीजेपी का दामन थामा है, लेकिन उनसे जुड़े विवाद थमने के बजाए आगे बढ़ते ही जा रहे हैं.
मैथिली ठाकुर और पवन सिंह में बड़ा फर्क यही है कि मैथिली निर्विवाद हैं. महिलाओं के सम्मान के मामले में पवन सिंह की छवि काफी खराब है, और इसी के चलते आसनसोल से बीजेपी का टिकट मिलने के बावजूद उनको मैदान छोड़कर बैरंग भागना पड़ा था. पवन सिंह के घर का झगड़ा भी सड़क पर आ गया है, जिसमें पत्नी ज्योति सिंह के आरोपों पर पवन सिंह ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर सफाई भी दी है.
मैथिली के बहाने बीजेपी ब्राह्मण वोट वैसे ही साधने की कोशिश कर रही है, जिस मकसद से पवन सिंह को वाया उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी में लाया गया है. मैथिली सिर्फ ब्राह्मण ही नहीं, बिहार में महिला वोटरों को रिझाने में भी बीजेपी के काम आएंगी. उनकी गायकी को महिलाओं में खासतौर पर खूब पसंद किया जाता है.
मैथिली ठाकुर की बीजेपी के बिहार प्रभारी विनोद तावड़े और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात भी हो चुकी है. खास मुलाकात के दौरान मैथिली के पिता रमेश ठाकुर भी मौजूद थे. रमेश ठाकुर संगीतकार हैं, और बचपन से ही बेटी को संगीत की बारीकियां सिखा रहे हैं.
मैथिली ठाकुर का राजनीति में आना
2023 में चुनाव आयोग ने मैथिली ठाकुर की लोकप्रियता को देखते हुए बिहार का ‘स्टेट आइकन’ बनाया था. उसके बाद मतदाता जागरूकता अभियानों में मैथिली ठाकुर की सक्रिय भूमिका रही है. और, अब वही लोकप्रियता मैथिली ठाकुर को चुनावी राजनीति में दाखिला दिला रही है.
8 मार्च, 2025 को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर दिल्ली में आयोजित नेशनल क्रिएटर्स अवार्ड समारोह में भी मैथिली ठाकुर ने खास मौजूदगी दर्ज कराई थी. तब मैथिली ठाकुर को ‘कल्चर एंबेसडर ऑफ द ईयर अवॉर्ड’ से सम्मानित किया गया था.
मैथिली ठाकुर ने प्रधानमंत्री मोदी की फरमाइश पर एक शिव भजन सुनाया था, जिसे लोगों ने वैसे ही पसंद किया जैसे उनकी परफॉर्मेंस पर तालियां बजाते रहे हैं. कुछ सुनाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने मैथिली से कहा था, ‘आज सुना ही दो, क्योंकि लोग मेरा सुन-सुनकर थक जाते हैं.’
अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय भी प्रधानमंत्री मोदी ने मैथिली ठाकुर की भजन प्रस्तुति की विशेष रूप से प्रशंसा की थी. सोशल मीडिया के जरिए कहा भी था, प्राण प्रतिष्ठा का अवसर भगवान श्री राम के जीवन से जुड़ी घटनाओं की याद दिलाता है, और ऐसी ही एक भावनात्मक घटना मां शबरी से जुड़ी है. साथ ही, मोदी ने मैथिली ठाकुर की प्रस्तुति सुनने का भी आग्राह किया था. प्राण प्रतिष्ठा से पहले मोदी ने बिहार की ही स्वाति मिश्रा का गाया भजन ‘राम आएंगे’ भी शेयर किया था जो खासा लोकप्रिय भी हुआ.
अयोध्या और राम के बाद मिथिला और सीता माता
मैथिली ठाकुर की लोकप्रियता को भुनाना एक मकसद तो है ही, बीजेपी के लेने की बड़ी वजह उनका मिथिलांचल से आना भी है. वो इलाका जो सीता माता का इलाका माना जाता है. जैसे भगवान श्रीराम का अयोध्या है. 2024 के आम चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार की हार अपनी जगह है, लेकिन बिहार में भी तैयारी वैसी ही लगती है.
8 अगस्त, 2025 को बिहार के सीतामढ़ी में सीता माता मंदिर के लिए भूमिपूजन भी हो चुका है. मंदिर के लिए भूमिपूजन केंद्रीय मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था. बिहार चुनाव के लिए तारीखें तो अब घोषित हुई हैं, माता सीता मंदिर के निर्माण में भी लोग अयोध्या आंदोलन की छवि महूसस कर सकें, बीजेपी ऐसे प्रयासों में पहले से ही जुट गई है. हालांकि, क्रेडिट लेने में कास्ट सेंसस की तरह थोड़ी मुश्किल भी हो सकती है.
क्योंकि सितंबर, 2023 में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में माता सीता के जन्मस्थान के विकास के लिए 72 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी – और ये तब की बात है जब तेजस्वी यादव बिहार डिप्टी सीएम हुआ करते थे.
वैसे बताया गया है सीतामढ़ी के पनौराधाम में 67 एकड़ में बन रहे भव्य मंदिर परिसर का निर्माण महज 11 महीने में ही पूरा हो जाएगा. तब तक बिहार में नई सरकार का गठन भी हो चुका होगा. बिहार में 6 और 11 नवंबर को मतदान होने हैं, और 14 नवंबर को वोटों की गिनती के साथ नतीजे आ जाने की भी अपेक्षा है.
मैथिली ठाकुर और पवन सिंह में फर्क
मैथिली ठाकुर के मुताबिक, बीजेपी में जाना और चुनाव लड़ना भी करीब करीब पक्का है, लेकिन सीट कौन सी होगी अभी ये फाइनल नहीं हुआ है. वैसे मैथिली का कहना है कि वो अपने इलाके से ही शुरुआत करना चाहेंगी. मधुबनी से आने वाली मैथिली ठाकुर बेनीपट्टी विधानसभा क्षेत्र से आती हैं. मैथिली ठाकुर का भले न पक्का हो, लेकिन आम आदमी पार्टी ने बेनीपट्टी से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी ने शुभदा यादव को टिकट दिया है.
मैथिली ठाकुर मैथिल ब्राह्मण हैं, जिसका मिथिलांचल क्षेत्र में खासा प्रभाव और वोट देने वाली आबादी है. मैथिली ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर बीजेपी एक साथ कई निशाने साध सकती है, और मिथिलांचल के साथ साथ पूरे बिहार में संदेश दे सकती है.
जैसे ठाकुर वोटों को साधने के लिए बीजेपी ने पवन सिंह को लिया है, मैथिली ठाकुर के जरिए ब्राह्मण वोट पर खास नजर टिकी है. पवन सिंह 2024 में काराकाट लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे, और अपना चुनाव हार जाने के बाद भी आस-पास की कई सीटों पर पावर स्टार का प्रभाव महसूस किया गया.
लोकप्रियता की बात करें तो पवन सिंह भले ही पावर स्टार कहलाते हों, लेकिन सोशल साइट X पर मैथिली उनसे कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं. पवन सिंह के 152.7 हजार फॉलोवर हैं, तो मैथिली ठाकुर के 197.2 हजार. और, मैथिली पवन सिंह की तरह कभी विवादों में नहीं रही हैं – सिवाय, ‘बिहार में का बा’ के मुद्दे पर नेहा सिंह राठौर के साथ हुई थोड़ी-बहुत नोंक-झोंक के.
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