आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पापांकुशा एकादशी कहा जाता है. आज ये शुभ व्रत रखा जा रहा है. पापांकुशा दो शब्द पाप और अंकुश शब्द से मिलकर बना है. एकादशी तिथि 2 अक्टूबर शाम 7 बजकर 10 मिनट से लेकर 3 अक्टूबर 2025 को शाम 6 बजकर 32 मिनट पर खत्म होगी.
पापांकुशा एकादशी का महत्व
पापांकुशा एकादशी चौबीस एकादशियों में से एक विशेष और अत्यंत पुण्यदायी एकादशी मानी जाती है. यह एकादशी अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत करने और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है. यही कारण है कि इसे “पापों पर अंकुश लगाने वाली एकादशी” भी कहा जाता है.
पूजन विधि और नियम
इस दिन जौ, मसूर, चना, चावल, उड़द, मूंग आदि अनाजों का सेवन करना चाहिए. इस दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए.
एकादशी के दिन सबसे पहले उठकर स्नान करें, पीले स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें. उन पर रोली, अक्षत , पीले फूल, धूप , दीप और फल और मिठाई अर्पित करें.
व्रत के लाभ
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से जाने अनजाने में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. इस व्रत को करने से जन्म-मरण के बंधन से भी मुक्ति मिलती है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सुख और समृद्धि आती है. इस दिन किए गए दान का भी खास महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन दान करने से व्रत का फल और अधिक बढ़ जाता है.
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