डोनाल्ड ट्रंप ने आने के आठ महीनों के भीतर ही काफी उठा-पटक मचा दी. अपने मास डिपोर्टेशन प्लान के तहत वे घुसपैठियों को तो बाहर भेज ही रहे हैं, साथ ही अमेरिका आने वालों को भी कई छलनियों से फिल्टर किया जाने लगा. इसकी जद में भारतीय भी आए. अमेरिका में कड़े हो चुके वीजा नियमों के बीच चीन का जिक्र आ रहा है. वो अपने यहां के-वीजा में और छूट देने लगा. काबिल लोग इसके जरिए बीजिंग जा सकेंगे. क्या भारतीयों के लिए ये यूएस जितना ही पसंदीदा विकल्प हो सकता है?
थोड़ा के-वीजा के बारे में जानते चलें
चीन में फिलहाल 10 से ज्यादा वीजा कैटेगरी हैं. के-वीजा इससे अलग है. साइंस, एजुकेशन और कल्चर में पढ़ाई कर चुके लोग इस वीजा के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इसमें काफी छूट मिलती है. जैसे किसी भी अच्छी यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए लोग इसके जरिए चीन आ सकते हैं. ये जरूरी नहीं कि उनके हाथ में पहले से नौकरी हो. वे आने के बाद तय समय तक जॉब खोज सकते हैं. जरूरत पड़ने पर सरकार भी इसमें मदद करेगी.
चीन में बढ़ रही आवक-जावक
अमेरिकी दरवाजे बंद होने के बीच चीन के कपाट खुलना अच्छा ऑप्शन हो सकता है. चीनी मीडिया ने नेशनल इमिग्रेशन एडमिनिस्ट्रेशन के हवाले से लिखा है कि साल 2025 तक चीन से आने-जाने वाली तीन करोड़ अस्सी लाख से भी ज्यादा यात्राएं हुईं, इनमें 13 करोड़ यात्राएं वीजा फ्री थीं, जो अपने में रिकॉर्ड है.
केवल भारत को देखें तो दिल्ली स्थिति चीनी एंबेसी ने माना कि साल के पहले चार महीनों में ही 85 हजार से ज्यादा वीजा जारी किया गया. दो साल पहले पूरे सालभर में कुल एक लाख अस्सी हजार लोग भारत से चीन गए. इससे तुलना करें तो समझ आता है कि भारत से चीन यात्रा का ग्राफ ऊपर जा रहा है.

शंघाई से लेकर चीन के कई इलाकों में आईटी पार्क बन चुके, जो सिलिकॉन वैली की तर्ज पर हैं. ऐसे में कोई हैरानी नहीं, अगर अमेरिका से हारे भारतीय चीन जाने लगें. लेकिन यह काफी हद तक इसपर निर्भर करता है कि आम चीनी नागरिक भारतीयों के बारे में क्या सोचते हैं.
पॉलिटिकल स्तर पर क्या है तस्वीर
चीन और भारत में सीमा-विवाद तो पहले से था, लेकिन साल 2020 से ये और गहरा गया. अब अमेरिकी मार के बीच दोनों देश करीब आते दिख रहे हैं. दरअसल, ट्रंप ने दोनों ही पर भारी टैरिफ लगा दिया. इसके बाद से कयास लग रहा है कि दोनों आपस में मिलकर बाजार और खपत की समस्या सुलझा लेंगे और अमेरिका पर अपनी जरूरत कम से कम करते जाएंगे. बीते दिनों दोनों देशों के नेताओं की मुलाकात हुई. इसके बाद ट्रंप की कमेंट भी आई थी कि चीन की वजह से भारत और रूस उससे दूर जा रहे हैं.
ये तो खैर राजनीतिक और व्यापारिक पहलू हुआ, सामाजिक पहलू इससे अलग है.
चीन के लोगों में भारत को लेकर अलग तरह का ठंडापन है. जैसे चीन एक कम्युनिस्ट देश रहा, जहां तकनीकी तौर पर देखें तो अमेरिकियों से नफरत होनी चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है. अमेरिकी टूरिस्ट्स को लेकर वे ज्यादा खुले हुए हैं. कई सर्वे बताते हैं कि चीन में 8% से 25% लोग ही भारत को लेकर अच्छी राय रखते हैं. बाकी लोग या तो तटस्थ होंगे, या कुछ ठंडापन लिए होंगे.
क्यों है ये दूरी
– सेंसरशिप की वजह से चीन में सीमा विवाद उसी तरह से आम लोगों के सामने पहुंचता है, जैसा सरकार चाहे. ऐसे में जाहिर तौर पर भारत की छवि ठीक नहीं दिखेगी.
– चीनी मीडिया भारत को अक्सर या तो प्रतिद्वंद्वी के रूप में दिखाता है, या फिर न्यूट्रल टोन में. पॉज़िटिव स्टोरीज़ बहुत कम जाती हैं.
– वहां आम लोगों का भारतीयों से रोजमर्रा में खास मेलजोल नहीं. खानपान और भाषा के फर्क के चलते वे सोशल लाइफ में ज्यादा मेलजोल नहीं रखते.

क्या कहती है चीन के लोगों पर हुई स्टडी
सेंटर फॉर इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड स्ट्रैटजी और त्सिंघुआ यूनिवर्सिटी ने साल 2023 में एक स्टडी की थी. चाइनीज आउटलुक ऑन इंटरनेशनल सिक्योरिटी नाम से अध्ययन में पौने तीन हजार से ज्यादा चीनी नागरिकों से बातचीत हुई. इसमें केवल 8% लोगों ने भारत को फेवरेबल कंट्री बताया. लगभग 42% ने खुद को भारत के लिए तटस्थ बताया, जबकि बाकी ने नकारात्मक सोच जाहिर की.
क्यों भारतीयों के लिए चीन में बसना थोड़ा मुश्किल
अमेरिका या अंग्रेजी बोलने वाले पश्चिम में बसना आसान है, बनिस्बत चीन के. यहां बोली को लेकर एक किस्म की कट्टरता है, जो कई एशियाई देशों में मिल जाएगी. ऐसे में पढ़ने या काम के लिए गए भारतीय खुद को अलग-थलग पाते हैं.
शुरू में लगता है कि चीन में काम करना आसान और ग्लैमरस होगा, लेकिन वहां का सख्त वर्क कल्चर,और लोकल लोगों से दूरी उन्हें थका देती है. लोगों को ऑफिस के इनर सर्कल में वो जगह नहीं मिल पाती. कई भारतीय टूरिस्ट चीन में घूमने-फिरने को उतना सेफ नहीं पाते. ऐसे में कई बार लोग तय समय से पहले ही लौट आते हैं, जो कि अमेरिका के मामले में एकदम उलट है.
आम चीनियों की राजनीतिक सोच भी भारत को लेकर गर्मजोशी से भरी हुई नहीं. पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत ने जब पाकिस्तान के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चलाया, तब चीन नैरेटिव वॉर खेलने लगा. उसकी तरफ से ढेरों ऐसे वीडियो बने, जिसमें पाकिस्तान को भारत से बेहतर दिखाया गया. सोशल मीडिया पर हुई ये ट्रोलिंग भी भारत के लिए चीन की सोच को दिखाती है.
—- समाप्त —-