प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 75वें जन्मदिन पर पर बहुत सारे लोगों ने सोशल मीडिया पर #MyModiStory शेयर की है, और उनमें एक नाम शाह फैसल का भी है. शाह फैसल जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा से आते हैं, और कश्मीर के पहले आईएएस टॉपर रहे हैं.
मोदी को अरबों लोगों की जिंदगी बदलने वाला मसीहा बताते हुए शाह फैसल ने अपनी जिंदगी की मिसाल दी है. शाह फैसल ने अपनी दर्द भरी दास्तां की झलक भर दिखाई है, और कहा है कि पूरा किस्सा विस्तार से वो कभी और सुनाएंगे. शाह फैसल का कहना है कि जब वो जिंदगी में हर तरफ से निराश हो चुके थे, मोदी ने उनकी नीयत को समझा और बगैर बहुत सोचे समझे बरकत बख्श दी – जैसे खाक से उठाकर फलक पर बिठा दिया.
शाह फैसल ने अपनी छोटी सी स्टोरी के जरिए ये जताने और बताने की कोशिश की है, जैसी कश्मीर के लोगों को कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उम्मीद हुआ करती थी – और खुद को किरदार के तौर पर पेश करते हुए शाह फैसल ने मोदी की कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियत की रवायत बतलाई है.
मोदी के लिए शाह फैसल ने एक खास विशेषण का प्रयोग किया है. priest-king जिसे संत-राजा या ऋषिराज के तौर पर समझा जा सकता है – वैसे मोदी को जिंदगी बदलने का श्रेय देने वाले शाह फैसल की पहले की जिंदगी भी बेहद संघर्षपूर्ण रही है, उसे शाह फैसल ने खुद ही गढ़ा है.
शाह फैसल की #MyModiStory
केंद्र सरकार के मंत्रालय में फिलहाल डिप्टी सेक्रेट्री के रूप में कार्यरत शाह फैसल ने सोशल साइट एक्स पर बड़ा ही भावपूर्ण पोस्ट लिखी है. प्रधानमंत्री मोदी को अरबों लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने वाला बताते हुए, उनको जन्मदिन की बधाई दी है – और अपनी शुभकामनाओं को अपने हिस्से की, अपनी जिंदगी की ‘मोदी की कहानी’ बताई है.
शाह फैसल बताते हैं, मेरी जिंदगी में एक ऐसा वक्त आया, जब मैं खुद को किसी गहरे गड्ढे में गिरा और फंसा हुआ पा रहा था. निजी तौर पर भी, और पेशेवर रूप से भी. मेरी कागजी योग्यता तो जस की तस थी, लेकिन दुनिया काफी आगे निकल चुकी थी… मेरी पहचान धुंधली हो चुकी थी, दोस्त बिछड़ चुके थे और भविष्य के दरवाजे बंद लग रहे थे.
अपनी व्यथा-कथा में शाह फैसल आगे लिखते हैं, कठिन वक्त में मैंने ठान लिया कि सार्वजनिक सेवा में लौटने की एक आखिरी कोशिश करूंगा. मुझे शक था कि शायद ही कोई दोबारा मौका देगा. मन में सवाल भी थे. क्या मेरी पैमाइश कश्मीरी होने के हिसाब से होगी. मुस्लिम होने के हिसाब से होगी?
शाह फैसल ने जो कुछ भी कहा है, लगता है जैसे हर लफ्ज उछल उछलकर ‘मोदी है तो मुमकिन है’ बोल रहे हों, उम्मीद से पहले ही एक दरवाजा मेरे लिए खुला. एक सच्चे दूरदर्शी ने मेरे छोटे से सफर और संघर्षों की कीमत समझी… मेरी नीयत को समझा, जैसे कोई संत राजा देखता है, और माफ कर देता है. मैं कौन हूं ये नहीं, मेरा मकसद क्या है, इसे जानते हुए. ये उनका मौन आशीर्वाद था, मेरा सब कुछ लौटा दिया.
शाह फैसल की अपनी कहानी भी दिलचस्प है
जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले के लोलाब घाटी में पैदा हुए शाह फैसल के पिता शिक्षक थे. 2002 में आतंकवादियों ने उनके पिता की हत्या कर दी थी. शाह फैसल की मां और दादी भी शिक्षक ही थीं. जब उनके पिता की हत्या हुई, शाह फैसल 19 साल के थे.
शाह फैसल 2009 में आईएएस टॉप करने वाले पहले कश्मीरी नौजवान बने. लेकिन 10 साल की सेवा के बाद उनका मन ऊबने लगा. जनवरी, 2019 में शाह फैसल ने कश्मीर के बुरे हालात का हवाला देते हुए भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया.
फरवरी, 2019 में शाह फैसल ने कुपवाड़ा में एक सार्वजनिक सभा की और अपनी राजनीतिक पारी का ऐलान किया. 16 मार्च, 2019 को शाह फैसल ने अपनी राजनीतिक पार्टी JKPM (जम्मू एंड कश्मीर पीपल्स मूवमेंट) के गठन की घोषणा की, थी लेकिन फिर 10 अगस्त, 2020 को ही राजनीति छोड़ने का फैसला करते हुए राजनीति छोड़ देने की भी घोषणा कर दी. ये तभी की बात है जब 5 अगस्त, 2019 के संसद ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म कर दिया.
उसके बाद शाह फैसल ने स्टडी के लिए विदेश का रुख किया लेकिन रास्ते में ही रोक लिया गया, और जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया. बताते हैं कि केंद्र सरकार ने शाह फैसल का इस्तीफा कभी स्वीकार ही नहीं किया, और बाद में खुद शाह फैसल ने वापस ले लिया. अप्रैल, 2022 में मोदी सरकार ने शाह फैसल को बतौर IAS बहाल कर दिया – और फिलहाल केंद्र सरकार को अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
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