30 जुलाई 2024 की रात को केरल के वायनाड जिले के मुंडक्कई, चूरालमाला और पुनचिरिमत्तम गांवों में भयानक भूस्खलन हुआ. ये नाजुक पहाड़ियां कीचड़ और चट्टानों के नीचे दब गईं. अब इन जगहों पर हाथी घूम रहे हैं, जहां कभी लोग रहते थे. रिपोर्ट के मुताबिक, 231 शव और 212 शव के टुकड़े मिले और 119 लोग अभी भी लापता हैं.
यह एक ऐसा हादसा था, जो वैज्ञानिकों के अनुसार ‘ग्रे राइनो’ घटना का उदाहरण है- एक ऐसा खतरा जो साफ दिख रहा था, लेकिन सरकारों ने अनदेखा कर दिया.
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ग्रे राइनो क्या है?
ग्रे राइनो का शब्द उन आपदाओं को कहते हैं जो बहुत संभावित और विनाशकारी होती हैं, लेकिन लोग उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं. ब्लैक स्वान से अलग, जहां खतरा अप्रत्याशित होता है, ग्रे राइनो साफ दिखता है लेकिन अनदेखा हो जाता है. वायनाड में यह खतरा सालों से आ रहा था. राज्य को पता था, लेकिन उन्होंने अनदेखा किया.
यह रिपोर्ट 13 सितंबर 2025 को जारी हुई, जो ट्रांजिशन स्टडीज और वेस्टर्न घाट्स समरक्षण समिति द्वारा बुलाई गई पीपुल्स साइंटिफिक स्टडी कमिटी की है.
रिपोर्ट कैसे बनी?
यह स्वतंत्र पैनल 10 महीनों तक जांच करता रहा. इसमें भूवैज्ञानिक सीपी राजेंद्रन, जलवायु विशेषज्ञ एस अभिलाष, जोखिम विश्लेषक सागर धरा, जैव विविधता विशेषज्ञ सीके विष्णुदास, वन वैज्ञानिक टीवी सजीव, चावल संरक्षक चेरुवायल रामन और कार्यकर्ता-वनस्पति विशेषज्ञ स्मिथा पी कुमार जैसे विशेषज्ञ थे.
उन्होंने वर्षा डेटा, भूमि उपयोग में बदलाव और सरकारी प्रतिक्रियाओं का अध्ययन किया. नतीजा साफ है- यह भूस्खलन प्रकृति का अपरिहार्य कार्य नहीं, बल्कि मानवीय हस्तक्षेप और सरकार की लापरवाही का नतीजा था.
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भूस्खलन के कारण: मानवीय गलतियां
वायनाड के ढलान लंबे समय से अस्थिर माने जाते थे. व्यथिरी तालुक (उपजिला), जहां मुंडक्कई और चूरालमाला आते हैं को वेस्टर्न घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल ने इकोलॉजिकली सेंसिटिव एरिया जोन 1 घोषित किया था. हाई-लेवल वर्किंग ग्रुप ने आधे इलाके को संवेदनशील बताया.
दोनों पैनलों ने विकास पर पाबंदी की सिफारिश की, लेकिन सरकारों ने अनदेखा किया. इसके बजाय, बस्तियां फैलीं, प्लांटेशन ऊंचे ढलानों पर चढ़ गए और रिसॉर्ट्स, सड़कें व पर्यटन सुविधाएं बढ़ीं. जो इलाका जलवायु परिवर्तन से होने वाली भारी वर्षा का बफर होना चाहिए था, वह मानवीय कब्जे में बदल गया.
भूस्खलन से 48 घंटे पहले दिखा था खतरा
भूस्खलन से पहले के 48 घंटों में खतरा साफ दिखा. 28 जुलाई को 200 मिमी से ज्यादा और 29 जुलाई को 372 मिमी बारिश हुई. कल्पेट्टा के ह्यूम सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड वाइल्डलाइफ बायोलॉजी ने 2019 के पुत्तुमाला भूस्खलन के बाद 200 गांवों में वर्षा ट्रैक की.
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उन्होंने मॉडल बनाया कि अगर दो दिनों में 600 मिमी से ज्यादा बारिश हो, तो मुंडक्कई खतरे में है. यह सीमा टूट गई, लेकिन चेतावनी प्रभावी ढंग से जारी नहीं की गई. केरल स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के पास मेओप्पाडी पंचायत के लिए कोई साइट-विशिष्ट योजना नहीं थी. निकासी सिर्फ एक वॉर्ड तक सीमित रही, बाकी गांवों को खतरा बरकरार रहा. अगर बेसिक इमरजेंसी प्रोटोकॉल होते, तो जानें बच सकतीं.
जंगलों का नुकसान और विकास
वायनाड में कभी 1,800 वर्ग किमी से ज्यादा जंगल थे, लेकिन 2018 तक दो-तिहाई हिस्सा कॉफी, चाय और इलायची प्लांटेशन में बदल गया. नदियों के किनारे वनों की कटाई से ढलान अस्थिर हो गए. पानी सोखने की क्षमता कम हो गई. नदियों के किनारे, खासकर पुननापुझा में वनों की कटाई हुई.सड़कें नाजुक पहाड़ियों में बिना उचित ड्रेनेज के काटी गईं. खनन और निर्माण ने पहाड़ियों को काटा.
पर्यटन का दबाव बढ़ा: बिना पर्यावरण जांच के पहाड़ियां एडवेंचर के लिए जिप राइड्स और होमस्टे का अड्डा बनीं.
भूस्खलन का पैमाना विशाल था. इसकी ऊर्जा एक बड़े केरल जिले के मासिक बिजली खपत जितनी थी. कीचड़, बोल्डर और उखड़े पेड़ घाटियों को बहा ले गए, गांव मिनटों में मिट गए. आज मुंडक्कई या चूरालमाला में सिर्फ भूरे निशान बाकी हैं. भूवैज्ञानिक सी पी राजेंद्रन कहते हैं कि यह विज्ञान को अनदेखा करने का क्लासिक केस है. पिछले दशक की हर रिपोर्ट ने ढलानों की अस्थिरता बताई, लेकिन भूमि उपयोग बदला ही गया.
संस्थाओं की विफलता
रिपोर्ट किसी को बख्शती नहीं. इंडिया मेटियोरोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने वर्षा पूर्वानुमान में सुधार किया, लेकिन भूस्खलन-प्रोन क्षेत्रों के लिए हाइपर-लोकल पूर्वानुमान नहीं हैं. राज्य डिजास्टर अथॉरिटी ने पुत्तुमाला और कवलप्पारा हादसों से सबक नहीं लिया, वॉर्ड-लेवल निकासी योजना नहीं बनी. स्थानीय सरकारें असहाय रहीं.
पुनर्वास प्रयासों ने घाव नहीं भरे. राज्य कल्पेट्टा के एलस्टोन टी एस्टेट में मॉडल टाउनशिप बना रहा है, लेकिन मुआवजा कम है. परिवार छोटे प्लॉट-घर मांग रहे हैं, लेकिन खेती योग्य जमीन चाहते हैं. सरकार ने पुनर्वास को सिर्फ घर बनाने तक सीमित कर दिया, कर्ज, आय हानि और मानसिक आघात को भुला दिया.
आगे का रास्ता
रिपोर्ट सिर्फ आलोचना नहीं, समाधान भी सुझाती है. स्थानीय पंचायतों को इमरजेंसी प्लान बनाने का अधिकार दें. मौसम पूर्वानुमान को एक किलोमीटर ग्रिड तक अपग्रेड करें. इकोलॉजिकली सेंसिटिव क्षेत्रों में लापरवाह विकास रोकें. वेस्टर्न घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल की सिफारिशों को लागू करें. केरल अगले 20 वर्षों में पूर्ण डीकार्बोनाइजेशन का वादा करे. सक्रिय भूस्खलन वाले जगहों से बस्तियां हटाएं, चाहे राजनीतिक रूप से मुश्किल हो.
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