कतर और तुर्किए की मध्यस्थता से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तत्काल संघर्ष विराम पर हो गया है। दोनों देशों ने दोहा में सीजफायर पर सहमति जताई। इस बीच तालिबान सरकार के रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब ने दोहा से एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने साफ कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन या उसकी सुरक्षा में किसी भी तरह की दखल की अनुमति नहीं दी जाएगी।
प्रेस वार्ता में दोहा वार्ता को लेकर उन्होंने कहा कि डूरंड रेखा से जुड़ा मुद्दा समझौते में शामिल नहीं है, क्योंकि यह ऐसा मुद्दा है जो सीधे अफगान जनता से जुड़ा हुआ है। दोहा से प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए मुजाहिद ने जोर देकर कहा कि डूरंड रेखा काल्पनिक है और समझौते के किसी भी हिस्से में इस पर चर्चा नहीं हुई। उन्होंने आगे कहा कि यह मुद्दा देशों के बीच का मामला है।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान समझौते पर बयान
मौजूदा समझौते पर बात करते हुए मुजाहिद ने कहा कि तुर्की में होने वाली अगली बैठक में इस समझौते की “कार्यान्वयन प्रणाली” पर चर्चा होगी। पाकिस्तान के दोबारा हमला ना करने या समझौते का उल्लंघन न करने की गारंटी के बारे में एक सवाल के जवाब में, उन्होंने कहा पाकिस्तान ने “दो अन्य देशों की मौजूदगी में” अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।
मालूम रहे कि सीजफायर के पालन और शांति समझौते की शर्तों पर विचार करने के लिए 25 अक्तूबर के दिन तुर्किए में अगली बैठक है। वहीं रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि अगर पाकिस्तान की तरफ से कोई हमला किया जाता है, तो वे जवाबी कार्रवाई करेंगे।
व्यापार और शरणार्थी मुद्दे पर भी चर्चा
अफगान रक्षा मंत्री ने कहा कि समझौते के तहत दोनों देशों के बीच व्यापार फिर से सामान्य होगा। शरणार्थियों के मुद्दे पर उन्होंने कहा, “हमने अफगान शरणार्थियों की स्थिति पर चर्चा की और इस बात पर जोर दिया कि उनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए।”
क्या है डूरंड रेखा?
1893 में ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच बनी यह रेखा हिंदूकुश पर्वत से गुजरती है। इसे ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी मॉर्टिमर ड्यूरंड और अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान के बीच हुए समझौते से तय किया गया था। लगभग 2,670 किलोमीटर लंबी यह रेखा चीन से लेकर ईरान की सीमा तक फैली है।
1947 में पाकिस्तान की आजादी के बाद यह रेखा पाकिस्तान को विरासत में मिली, लेकिन तब से ही अफगानिस्तान इस सीमा को मान्यता नहीं देता है। पश्तून समुदाय ने भी इस रेखा का विरोध किया है।
तुर्किए ने संघर्षविराम का स्वागत किया, कतर की मध्यस्थता की सराहना
तुर्किए ने रविवार (19 अक्तूबर ) को अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्षविराम समझौते का स्वागत किया है। यह समझौता तुर्किए और कतर की मध्यस्थता में दोहा में हुआ। तुर्किए के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर जारी बयान में कहा, “हम स्वागत करते हैं कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान ने तुर्किए और कतर की मध्यस्थता में संघर्षविराम पर सहमति जताई है, और दोहा में हुई बातचीत के दौरान दोनों देशों ने शांति और स्थिरता को मजबूत करने के लिए तंत्र स्थापित करने का निर्णय लिया है।”
Regarding the Ceasefire Between Afghanistan and Pakistan https://t.co/HNC0a0REXu pic.twitter.com/VabeZImwkk
— Turkish MFA (@MFATurkiye) October 19, 2025
मंत्रालय ने आगे कहा, “हम कतर के प्रयासों की सराहना करते हैं, जिसने इन वार्ताओं की मेजबानी भी की।” तुर्किए ने यह भी स्पष्ट किया कि वह दोनों “भाईचारे वाले देशों” के बीच स्थायी शांति और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रयासों का समर्थन जारी रखेगा।