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ये तो गजब इश्क है हिंदी का! ‘स’ और ‘श’ के चक्कर में कव‍ि ने करा डाले मुंह के दो ऑपरेशन – Hindi diwas special story poet kavi abhay singh nirbheek mouth operation ntcpmm


Hindi Diwas 2025: हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. आज ही के दिन 14 सितंबर 1949 को हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा मिला था. 1953 से राजभाषा प्रचार समिति द्वारा हर साल इस खास दिन को मनाया जाने लगा. आज हिंदी द‍िवस पर हम आपको हिंदी प्रेमी कव‍ि की कहानी यहां दे रहे हैं.  

ये कहानी अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश के रहने वाले अभय सिंह की हैं. कव‍िता प्रेमी इन्हें ‘अभय सिंह निर्भीक’ नाम से जानते हैं. इनके पिता व‍िजय बहादुर सिंह सेना में अधि‍कारी थे. निर्भीक कहते हैं कि मैं पैदा देश भक्त‍ि का जज्बा लेकर हुआ था और बड़ा हुआ तो प्यार हिंदी से हो गया. अभय सिंह ने बचपन से ही या यूं कहें कि जब नौवीं कक्षा में थे तभी से हिंदी भाषा पर अच्छा कमांड हो गया था. वो हिंदी में कविताएं लिखने लगे थे. लेकिन मंच पर जाने में उन्हें जो रोक रहा था वो था गलत उच्चारण.

टीचर हमेशा ‘स’ और ‘श’ के उच्चारण पर टोकते थे

अभय अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं कि बचपन में मैं कव‍ि विनीत चौहान को रील वाली कैसेट में सुना करता था. मेरे पास उनके अलीगढ़ नुमाइश की कैसेट थी. ये बात 2004 की है, जब मैं दसवीं में था. तभी से मैंने कव‍िताएं लिखना शुरू कर दिया था. व‍िनीत चौहान को द्रोणाचार्य मानकर मैं उनसे सीख रहा था. तब लेकिन एक ही समस्या सामने आती थी. पढ़ाई और दूसरी एक्ट‍िविटीज में आगे होने के बावजूद हिंदी टीचर हमेशा ‘स’ और ‘श’ के उच्चारण पर टोकते थे. वहीं दोस्तों में अच्छी यारी होने के कारण कोई मुझे ये खामी नहीं बताता था.

पहला कव‍ि सम्मेलन और सामने आया सच

अभय बताते हैं कि 26 नवंबर 2009 में पहला कवि सम्मेलन था. वहां पहली बार एक उर्दू जानकार ने टोका कि आप तलफ्फुज दुरुस्त कर‍िए. फिर धीरे धीरे मंचों पर ये नोट‍िस होने लगा. ये साल 2010 की बात है, मैं एक गोष्ठी में था वहां किसी ने मुझे इसके लिए टोका. तो वहां वहां एक डॉक्टर बैठे थे. ये केजीएमयू के सर्जन डॉ आनंद थे. उन्होंने मुझसे बातचीत की और कहा कि इसमें आपकी गलती नहीं है.

मैं उनसे इलाज कराने पहुंचा तो बताया कि जबड़े की बनावट के कारण आपकी हवा पास हो जाती है. इसी कारण आप का ‘स’ और ‘श’ का उच्चारण साफ नहीं हो पाता. उन्होंने मुझे ऑपरेशन कराने की सलाह दी. फिर मैंने एक बार ऑपरेशन कराया तो उच्चारण क्ल‍ियर नहीं हुआ और फिर दूसरी बार ऑपरेशन करना पड़ा. दो बार ऑपरेशन के बाद स और श में अंतर करना आ गया.

ठुकराईं व‍िदेश की नौकर‍ियां

अभय कहते हैं कि मेरा बैक ग्राउंड इंजीन‍ियर‍िंग का है, मैंने लखनऊ से एमसीए किया है. इसके बाद मैंने बीटेक के बच्चों को डेटा स्ट्रक्चर और नेटवर्क भी पढ़ाया है. इस दौरान मुझे किसी एमएनसी या विदेश में जॉब का ऑफर भी मिला लेकिन हिंदी से मेरे लगाव ने मुझे रोक लिया था. मुझे हमेशा यही लगता था कि अंग्रेजी हमारी मजबूरी है क्योंकि स्क‍िल सब उधर ही जा रही है. लोग अंग्रेजी पढ़कर कार खरीद सकते हैं लेकिन संस्कार हिंदी से ही आते हैं. बस यही वजह थी कि मैंने हर नौकरी ठुकरा दी. आज मैं सिर्फ फुल टाइम कव‍िताएं रचता हूं या फिर कव‍िता पाठ करता हूं.

लाल किले से किया काव्य पाठ

साल 2010 में ऑपरेशन के बाद कुछ दिनों की प्रैक्ट‍िस के बाद अभय सिंह का उच्चारण एकदम स्प्ष्ट हो गया था. साथ ही उनका हौसला भी कई गुना बढ़ गया था. जब लाल किले से वीर रस से सराबोर ‘लोहू से लथपथ घाटी में रोज तिरंगा जलता था…’ कव‍िता सुनाई तो हर तरफ तालियों की गड़गड़ाहट गूंज गई. उसके बाद उन्होंने अपने हिंदी प्रेम पर ‘मानस की हर चौपाई तक, तुलसी जी की कविताई तक, रहिमन की हिन्दी सेवा तक, छंद सवैये से दोहा तक’ कविता ल‍िखी.

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