बिहार विधानसभा चुनाव की राजनीतिक सरगर्मी के बीच बीजेपी अपने सबसे मजबूत दुर्ग गुजरात को दुरुस्त करने में जुट गई है. मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर गुजरात सरकार के सभी 16 मंत्रियों ने गुरुवार को अपना इस्तीफा दे दिया. शुक्रवार को अब नए तरीके से कैबिनेट का गठन किया जाएगा और राज्यपाल आचार्य देवव्रत मंत्रियों को शपथ दिलाएंगे.
दीपावली से पहले बीजेपी शीर्ष नेतृत्व गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार करने जा रहा है. इस शपथ ग्रहण समारोह में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और महासचिव सुनील बंसल सहित पार्टी के तमाम बड़े नेता शिरकत करेंगे.
गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला मानी जाती है, जहां पिछले 30 सालों से बीजेपी का एकछत्र राज कायम है. इसके बाद भी बीजेपी एक बार फिर 2021 की तरह गुजरात कैबिनेट का नए तरीके से गठन करने जा रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि बीजेपी को गुजरात में सियासी सर्जरी करने की जरूरत क्यों पड़ी या फिर कोई नया राजनीतिक प्रयोग करने का दांव चला है?
1. गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला
गुजरात में बीजेपी समय-समय पर परंपरागत राजनीति से हटकर कई सफल प्रयोग करती रही है और उसका उसे राजनीतिक लाभ भी मिलता रहा है. बीजेपी का ‘नो रिपीट’ फॉर्मूला सबसे ज्यादा हिट रहा. पुराने चेहरे को हटाकर नए चेहरों को मैदान में उतारकर विपक्ष के सारे गणित को बिगाड़ती रही है. गुजरात में सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए बीजेपी इस फॉर्मूले को अपनी ‘प्रयोगशाला’ में कई बार आजमा चुकी है.
गुजरात विधानसभा चुनाव से एक साल पहले बीजेपी ने 2021 में मुख्यमंत्री समेत पूरे कैबिनेट को हटा दिया था. बीजेपी ने पूरी सरकार बदलकर गुजरात के सारे समीकरण बिगाड़ दिए थे. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने गुजरात की 182 में से 156 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था. अब बीजेपी दोबारा से 2027 के चुनाव से दो साल पहले गुजरात सरकार में सियासी सर्जरी करने का दांव चला है.
2. गुजरात में बीजेपी की सियासी सर्जरी?
गुजरात पीएम मोदी और अमित शाह का गृह राज्य है. गुजरात की सत्ता में बीजेपी पहली बार 1995 में सत्ता में आई, जिसके बाद से आजतक काबिज है. तीन दशक से बीजेपी नरेंद्र मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़ रही है. इस तरह से 2027 का चुनाव बीजेपी की साख के साथ-साथ पीएम मोदी की प्रतिष्ठा से जुड़ा है. ऐसे में बीजेपी कोई भी सियासी रिस्क नहीं लेना चाहती है. यही वजह है कि चुनाव से दो साल पहले गुजरात सरकार में सियासी सर्जरी करने का दांव चला.
2021 में बीजेपी ने विजय रुपाणी के नेतृत्व वाली पूरी सरकार बदल दी थी. मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों को एक झटके में हटाकर नए सीएम से लेकर मंत्री तक बना दिए थे. रुपाणी सरकार में कई मंत्री काफी उम्रदराज थे, जिसके चलते सियासी तौर पर एक्टिव नहीं थे. इसके अलावा कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. ऐसे में बीजेपी नेतृत्व ने पूरी सरकार ही बदलकर नए स्वरूप में सरकार की छवि पेश की.
अब बीजेपी ने फिर से वही दांव आजमा रही है, लेकिन इस बार न ही सीएम बदल रही है और न ही सभी मंत्रियों को हटा रही है. 2021 में बनाए गए नए मंत्रियों में ऋषिकेश पटेल, कनुभाई देसाई, कुंवरजी बावलिया, बलवंतसिंह राजपूत, हर्ष संघवी और प्रफुल्ल पनसेरिया को प्रमोशन देकर मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है. इसके अलावा कई नए चेहरों को जगह देकर एक अलग सरकार की इमेज पेश कर सकती है.
3. नगर निगम चुनाव जीतने का प्लान
भूपेंद्र पटेल सरकार में सियासी सर्जरी कर बीजेपी 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले 2026 में होने वाले शहरी निकाय चुनाव को जीतने की रणनीति बना रही है. बीजेपी के सामने इन चुनावों में अपने सियासी दबदबे को बरकरार रखने की चुनौती है. अहमदाबाद से लेकर वडोदरा, सूरत, राजकोट समेत कई नगर निगमों में चुनाव होंगे. गुजरात में बीजेपी शुरुआत से लेकर अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी विस्तार में अधिक मजबूत है, ऐसे में बीजेपी इन चुनावों में कोई भी नुकसान नहीं उठाना चाहती है.
बीजेपी ने गुजरात में सीआर पाटिल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर जगदीश विश्वकर्मा को प्रदेश संगठन की कमान सौंपी है. विश्वकर्मा अभी तक भूपेंद्र पटेल सरकार में सहकारिता मंत्री थे. इस आगामी निकाय चुनाव से पहले बीजेपी आलाकमान ने संगठन से सरकार में बदलाव का निर्णय लेकर एक सियासी आधार रखना चाहती है.
2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर गुजरात की बनासकांठा सीट खोने और हाल ही में हुए उपचुनाव में विसावदर सीट पर आप के गोपाल ईटालिया की जीत से बीजेपी को सियासी झटका लगा है. इससे निपटने के लिए बीजेपी गुजरात में अपने सियासी दुर्ग को दुरुस्त करने का दांव चल रही है ताकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बढ़ते सियासी प्रभाव को समय रहते रोक सके.
4. AAP-कांग्रेस के प्रभाव को रोकने का दांव
दिल्ली की सत्ता से बाहर होने के बाद आम आदमी पार्टी ने अपना फोकस गुजरात पर किया है तो कांग्रेस 2024 के बाद से ही एक्टिव है. पिछले 6 महीनों में राहुल गांधी पांच बार गुजरात का दौरा कर चुके हैं. कांग्रेस अपने संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने की कवायद में जुटी है ताकि 2027 में सत्ता में लौट सके.
राहुल गांधी ने हाल ही में गुजरात कांग्रेस के जिला और शहर अध्यक्षों को भरोसा दिलाया था कि आपके लिए मैं बैठा हूं और वादा किया था कि आने वाले समय में वे हर विधानसभा क्षेत्र का दौरा करेंगे. यही नहीं, राहुल गांधी ने संसद में बहस के दौरान बीजेपी नेताओं को जोर देकर कहा था कि वे अब गुजरात में बीजेपी को हराने जा रहे हैं. वहीं, आम आदमी पार्टी जिस तरह से फोकस किया है, उससे बीजेपी को अपने किले को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है.
5. जातीय- क्षेत्रीय समीकरण साधने का प्लान
सौराष्ट्र की विसावदर सीट को आम आदमी पार्टी ने जीतकर बीजेपी को टेंशन में डाल दिया था तो कांग्रेस का गुजरात में सक्रिय आदिवासी बेल्ट में बीजेपी की तकलीफ बढ़ा सकता है. नए मंत्रिमंडल के गठन में इन दोनों क्षेत्रों को तवज्जो मिल सकती है. ऐसे में बीजेपी आदिवासी बेल्ट को साधने के लिए सरकार में डिप्टी सीएम जैसा प्रयोग भी कर सकती है.
गुजरात में विधानसभा की 27 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं जबकि आदिवासियों का प्रभाव राज्य की 40 सीटों पर है. इसके अलावा सौराष्ट्र क्षेत्र में पहले से नाराजगी है तो राजपूत समाज लंबे समय से भाजपा से नाराज चल रहा है. इस तरह बीजेपी के लिए गुजरात में सियासी सर्जरी कर नए सोशल इंजीनियरिंग बनाने की जरूरत महसूस हो रही थी. इसीलिए बीजेपी ने भूपेंद्र पटेल कैबिनेट को नए तरीके से गठन करने की रणनीति अपनाई है ताकि गुजरात में अपने सियासी वर्चस्व को बरकरार रख सके.
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