एक बार पटना के सदाकत आश्रम में ही कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने बताया था, देश भर में राहुल गांधी के बाद कांग्रेस में कोई लोकप्रिय नेता है, तो वो कन्हैया कुमार हैं. उनको सब सुनना चाहते हैं. उनको लोग पसंद करते हैं. देश भर से उनकी डिमांड आ रही है. और, वही कन्हैया कुमार फिलहाल बिहार के चुनावी सीन से गायब लगते हैं. अगर वो महत्वपूर्ण जगहों पर, महत्वपूर्ण मौकों पर नहीं नजर आते, तो भला क्या समझ में आएगा?
इसी साल मार्च महीने में कन्हैया ने बिहार में ‘पलायन रोको नौकरी दो यात्रा’ निकाली थी. लेकिन, जब राहुल अपनी वोटर अधिकार यात्रा लेकर निकले तो कन्हैया कुमार को पटना में राहुल-तेजस्वी की गाड़ी पर नहीं चढ़ने दिया गया. पूरी यात्रा में कन्हैया नेपथ्य में ही नजर आए थे. राहुल गांधी को कन्हैया कुमार को 2024 में दिल्ली से लोकसभा का चुनाव इसीलिए लड़ाना पड़ा था क्योंकि बेगूसराय के लिए लालू यादव की मंजूरी नहीं मिल पाई थी.
कन्हैया कुमार क्या कर रहे हैं
पटना में आयोजित पंचायत आज तक के मंच पर कन्हैया कुमार भी पहुंचे थे. ‘बिहार में कांग्रेस कितनी असरदार’ सेशन में कन्हैया कुमार ने महागठबंधन में सीटों की खींचतान से लेकर तेजस्वी यादव के साथ उनकी केमिस्ट्री तक, कई सारे सवाल पूछे गए – लेकिन हर किसी के मन में सबसे बड़ा सवाल यही था कि कन्हैया कुमार आजकल क्या कर रहे हैं?
कन्हैया कुमार ने बताया, ‘हम तो टिकट बांट रहे हैं आजकल.’
और लगे हाथ ये भी बता दिया कि पंचायत आजतक के मंच पर नहीं बैठे होते तो क्या कर रहे होते?
बोले, ‘कमिटमेंट कर दिए थे कि यहां आएंगे… नहीं तो हम अभी किसी की नॉमिनेशन रैली में होते.’
क्या तेजस्वी-लालू की नाराजगी की कीमत चुका रहे हैं
कन्हैया कुमार तिहाड़ जेल से छूटने के बाद 2016 में जब बिहार पहुंचे तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मिले. लेकिन, सबसे ज्यादा चर्चा उनकी लालू यादव से मुलाकात की हुई थी. कन्हैया कुमार के लालू यादव के पैर छूने की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई, और लोगों ने काफी तीखी प्रतिक्रिया जताई थी.
कन्हैया कुमार सितंबर, 2021 में सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे. और, महीने भर बाद ही अक्टूबर में वो कांग्रेस के ही दो युवा साथियों के साथ पटना पहुंचे थे. तब बिहार में तारापुर और कुशेश्वर स्थान विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले थे. कन्हैया कुमार के साथ गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल भी थे. तब हार्दिक पटेल कांग्रेस में हुआ करते थे, लेकिन बाद में बीजेपी में चले गए.
कभी लालू यादव का पैर छूने वाले कन्हैया कांग्रेस दफ्तर सदाकत आश्रम में पूरी तरह बदले नजर आए थे. लालू यादव और तेजस्वी यादव से कड़ी नाराजगी के पीछे और भी वजहें रही होंगी, लेकिन ज्यादा गुस्सा 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका विरोध ही लगा. महागठबंधन में सीपीआई को एक भी सीट नहीं मिली, तो पार्टी ने कन्हैया कुमार को अकेले अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया था. लेकिन विरोध का आलम ये था कि तेजस्वी यादव ने उनके खिलाफ आरजेडी का उम्मीदवार भी खड़ा कर दिया था.
कांग्रेस का दामन थामने के बाद पहली बार पटना पहुंचे कन्हैया कुमार के निशाने पर लालू यादव ही सबसे आगे नजर आ रहे थे. जाहिर है, लालू यादव के साथ साथ तेजस्वी यादव भी निशाने पर रहे. बगैर लालू और तेजस्वी का नाम लिए कन्हैया कुमार कह रहे थे, 30 साल में उन लोगों ने कांग्रेसी वोटर के लिए क्या किया, जवाब वो दें. कन्हैया कुमार का कहना था, दुख की बात ये है कि एक पढ़ा-लिखा इंसान लठैत वाली भाषा बोलता है.
कन्हैया कुमार ने कहा, ‘भाजपा के खिलाफ जो लड़ना चाहते हैं, वो कांग्रेस के साथ होंगे… जो ऐसा नहीं चाहते हैं, वो केवल गुणा-गणित करते रहेंगे… एक पढ़ा लिखा इंसान लठैत वाली भाषा बोलता है, ये दुख की बात है… वो हमारे कांग्रेस प्रभारी के बारे में भी बोलता है.’
असल में, कन्हैया कुमार लालू यादव की बात कर रहे थे. उन दिनों भक्तचरण दास कांग्रेस के बिहार प्रभारी हुआ करते थे, और लालू यादव ने उनको ‘भकचोन्हर’ कह कर संबोधित किया था. कुछ दिनों के लिए कांग्रेस नेतृत्व और आरजेडी के बीच माहौल तनावपूर्ण हो गया था, जिसे बाद में लालू यादव ने सोनिया गांधी को फोन करके संभाल लिया था.
कांग्रेस और आरजेडी का साथ तो अब भी बना हुआ है, दोनों इंडिया ब्लॉक के बिहार चैप्टर महागठबंधन के बैनर तले विधानसभा का चुनाव भी लड़ रहे हैं, लेकिन कन्हैया कुमार को कदम कदम पर लालू और तेजस्वी यादव के कोपभाजन होने की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है.
कन्हैया कुमार अच्छा बोलते हैं. और, जयराम रमेश का ही कहना है कि लोग उनको सुनना चाहते हैं – तो क्या यही वजह है कि कांग्रेस ने कन्हैया कुमार को नेता की जगह ‘प्रवक्ता’ बना दिया है जो जगह जगह कांग्रेस का बचाव करते रहते हैं.
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