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तालिबान से लड़ाई, बलूचिस्तान-पीओके में विद्रोह…क्या आजादी के बाद से सबसे नाजुक मोड़ पर है PAK? – pakistan multiple crisis taliban balochistan pok ntcpmj


पाकिस्तान में भीतर-बाहर हर तरफ घमासान मचा हुआ है. अफगान सीमा पर तालिबान के हमले बढ़ रहे हैं, बलूचिस्तान में बगावत स्थाई रूप ले चुकी और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में लोग लगातार सड़कों पर उतर रहे हैं. इकनॉमी से लेकर विदेश नीति पहले ही चरमराई हुई थी. हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान अपने इतिहास के सबसे अस्थिर दौर में दाखिल होता लग रहा है. 

पाकिस्तान और तालिबान शासित अफगानिस्तान चार दिन चली हिंसक झड़पों के बाद हमले रोकने पर सहमत हो गए. बुधवार शाम से 48 घंटों के लिए युद्धविराम लागू हो गया. इस संघर्ष ने दोनों के बीच नफरत को एक झटके में सामने ला दिया. सोशल मीडिया पर कई वीडियोज वायरल हो रहे हैं, जिसमें दिख रहा है कि तालिबानी लड़ाकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के साथ कथित तौर पर बर्बरता की. हालांकि वीडियो की सच्चाई की पुष्टि नहीं हो सकी, लेकिन काबुल और इस्लामाबाद में बैर खुलकर दिखने लगा. 

दोनों के बीच झगड़ा क्या है

पाकिस्तान ने हमेशा चाहा कि काबुल की सरकार उसके लिए नर्म भाव रखे. तालिबान जब सत्ता में आया, तो उसकी उम्मीदें बिखरती दिखीं. इस्लामाबाद का आरोप है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के कई लीडर काबुल में शरण ले चुके और वहां से पाकिस्तान को अस्थिर कर रहे हैं. तालिबान इससे इनकार करता है. टीटीपी के हमलों की आड़ में पाक ने अफगानिस्तान पर हमले शुरू कर दिए. इसके बाद से कन्फ्लिक्ट शुरू हो गया. वैसे दोनों के बीच रार की बड़ी वजह डुरंड रेखा है. इस सीमा बंटवारे को काबुल गलत मानता है और अक्सर ही इस बात पर तनाव उभरता रहता है. 

हाल में तालिबान विदेश मंत्री की भारत यात्रा ने पाकिस्तान को यकीन दिला दिया कि तालिबान भी उसके दुश्मन से हाथ मिला रहा है. इसके बाद और भड़क उठा. 

दोनों के बीच झड़पें पहले भी हुईं लेकिन सीमित स्तर पर. अब ये ज्यादा संगठित हो रही हैं.

taliban foreign minister amir khan muttaqi (Photo- PTI)
तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी ने हाल में भारत यात्रा की. (Photo- PTI)

किस बात पर नाराज हैं बलूच

बलूचिस्तान ने अलग ही पाकिस्तान की नाक में दम किया हुआ है. यह पाकिस्तान की कुल जमीन का सबसे बड़ा हिस्सा है, जहां कुदरत काफी मेहरबान रही. यहां गैस, खनिज जैसी कीमतें खदानें हैं. फिर भी वहां गरीबी, बेरोजगारी और राजनीतिक उपेक्षा का स्तर सबसे ज्यादा है. माइनिंग के लिए वहां लोकल लोगों को प्रमोट करने की बजाए चीन से करार कर लिया गया. इन तमाम वजहों से बलूच गुस्सा भड़कने लगा. 

वैसे बलूच राष्ट्रवाद कोई नई सोच नहीं. चालीस के दशक से अब तक कई बार बगावतें हुईं. लेकिन हाल के सालों में इसका रूप और धार दोनों बदल गए हैं. पहले ये आंदोलन सीमित भौगोलिक दायरे में था, अब इसका फैलाव बढ़ा है. अब इसके टारगेट सिर्फ सेना के ठिकाने नहीं बल्कि विदेशी प्रोजेक्ट भी हैं.

बलूच लिबरेशन आर्मी ने चीन के नागरिकों और इंजीनियरों को निशाना बनाना शुरू किया. इससे पाकिस्तान के लिए दोहरा संकट पैदा हुआ- एक तरफ राजनीतिक अस्थिरता और दूसरी तरफ विदेशी निवेशकों का भरोसा टूटना.

PoK हमेशा से ही रहा नाखुश

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में भी बलूचिस्तान की तरह ही असंतोष है. पाकिस्तान ने इसे जबरन अपने से जोड़े रखने का भ्रम तो पाल रखा है लेकिन बराबरी नहीं दे पा रहा. बीते दो सालों में यहां कोई महीना नहीं बीता, जब प्रोटेस्ट न हुए हैं. यहां के लोग बिजली-पानी जैसी बेसिक सुविधाओं से भी वंचित हैं, ऐसे में राजनीतिक पहुंच की तो बात ही क्या करें. आर्थिक और राजनीतिक उपेक्षा से जन्मा ये गुस्सा पाकिस्तान की ऐन सीमा को हिला रहा है. 

pakistan afghanistan border conflict (Photo- PTI)
सीमा विवाद के चलते पाकिस्तान और अफगानिस्तान बॉर्डर से लोग पलायन कर रहे हैं. (Photo- PTI)

पहली बार सेना भी दिख रही खलनायक

बाहरी मोर्चों के साथ-साथ पाकिस्तान का अंदरुनी ढांचा भी चरमराया हुआ है. राजनीति जैसे डरे हुए राजा की गद्दी बन चुकी, जिसमें बार-बार उठापटक हो रही है. जनरल असिम मुनीर की कमान में सेना अब भी सबसे ताकतवर संस्था तो है, लेकिन जनता का भरोसा तेजी से घटा. सोशल मीडिया पर भी इसकी झलक दिख जाती है. पहली बार पाकिस्तान में खुले आम जनरल्स गो होम जैसे नारे लगाए जा रहे हैं. 

ये सब कुछ तब भी संभल जाता, अगर देश की अर्थव्यवस्था मजबूत रहती, लेकिन यहां वो भी आईएमएफ जैसी संस्थाओं के रहम पर चल रही है. कुल मिलाकर, इस्लामाबाद अब जो झेल रहा है, वो आजादी के बाद से उसके लिए सबसे नाजुक वक्त है. पाकिस्तान पर दांव खेलता चीन भी अब पैसे डूबने के डर से नए इंफ्रास्ट्रक्चर पर उस तरह निवेश नहीं कर रहा, जैसे कुछ साल पहले किया करता था. 

तब क्या पाकिस्तान फिर से बंट सकता है

पीछे लौटें तो पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) का अलग होना कोई अचानक हुई घटना नहीं थी. लगातार तीन दशक तक हुए भेदभाव के बाद ये विस्फोट हुआ, और इतना भयंकर हुआ कि बंटवारे पर जाकर रुका. आज की स्थिति कुछ हद तक मिलती-जुलती है. सरकार पूरी तरह सेना के भरोसे टिकी है. विदेश नीति वैसे ही कमजोर है. अमेरिकी राष्ट्रपति जरूर मिल-बैठ रहे हैं लेकिन साथ देने के लिए वो भी तैयार नहीं दिखते. यहां तक कि सऊदी अरब और UAE जैसे पारंपरिक सहयोगी भी अब ठंडापन बरत रहे हैं. 

हालांकि बंटवारा सिर्फ असंतोष या हिंसा से नहीं होता. इसके लिए कई शर्तें हैं

– सेंटर का कंट्रोल काफी कमजोर पड़ जाना

– देश के भीतर समानांतर ढांचा तैयार होना

– अंतरराष्ट्रीय समर्थन या मान्यता मिलना

फिलहाल पाकिस्तान के हालात इस ओर इशारा कर रहे हैं कि अगर हालात पर काबू नहीं पाया गया तो फंक्शनल यूनिटी टूट सकती है. मतलब, देश दिखेगा एक, लेकिन चलेगा अलग-अलग हिस्सों की शर्तों पर. ये वैसा ही है कि जैसे आपसी लड़ाई में घर में रसोई बंट जाए लेकिन दिखावे के लिए संयुक्त परिवार ही बना रहे. 

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