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जन सुराज पार्टी क्यों चाहती है कि प्रशांत किशोर बिहार चुनाव न लड़ें – why prashant kishor not contesting bihar assembly election opnm1


प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान में शुरू से ही अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक स्टाइल की छाप महसूस की जा रही थी. ऐसे बहुत सारे ट्रिक हैं, जो पहले अरविंद केजरीवाल ने अपनाए थे, और बाद में प्रशांत किशोर ने. एक उदाहरण तो राजनीतिक विरोधियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाना भी है. 

प्रशांत किशोर के मामले में शुरू में ही एक अलग बात देखने को मिली. अरविंद केजरीवाल के लगाए भ्रष्टाचार के आरोपों के खिलाफ नेताओं ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, और अरविंद केजरीवाल को लिखित माफी मांगकर जान छुड़ानी पड़ी थी, लेकिन प्रशांत किशोर के मामले में अलग ही मामला देखने को मिला.

बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने प्रशांत किशोर को नोटिस तो भेजा था, लेकिन मामला आगे बढ़ाने की जगह खुद ही यू-टर्न ले लिया. देखें तो प्रशांत किशोर इस मामले में अरविंद केजरीवाल से बीस नजर आते हैं. जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार भी इलाके के लोगों के फीडबैक के बाद ही चुने जाने का दावा है, अरविंद केजरीवाल भी ऐसा करते आए हैं. 

लेकिन, चुनाव लड़ने के मामले में अरविंद केजरीवाल से प्रशांत किशोर पिछड़ते हुए नजर आने लगे हैं. प्रशांत किशोर किशोर ने चुनाव लड़ने को लेकर खूब हवा बनाई, लेकिन अब पीछे हट गए हैं. चुनाव मैदान में उतरने के मामले में तो प्रशांत किशोर के मुकाबले अरविंद केजरीवाल बहुत ज्यादा आगे नजर आते हैं. 

अपने पहले ही चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की 15 साल से मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को उनकी सीट पर ही चैलेंज करके शिकस्त दे डाली थी. ये ठीक है कि 2025 के दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल को हार का मुंह देखना पड़ा, लेकिन 2014 में वो वाराणसी जाकर तब बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को भी चैलेंज किया था. और, वोट भी कोई कम नहीं मिले थे – लेकिन प्रशांत किशोर तो मैदान में उतरने का नाम ही नहीं ले रहे हैं. 

दावे तो बड़े बड़े किए गये थे

नीतीश कुमार से लेकर तेजस्वी यादव तक के खिलाफ चुनाव लड़ने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर ने हथियार डाल दिया है, और इसके लिए जन सुराज पार्टी के फैसले को बहाना बनाया है. नीतीश कुमार का तो मान लेते हैं, वो अब चुनाव नहीं लड़ते. मुख्यमंत्री बने रहने के लिए वो विधान परिषद की सदस्यता लेते हैं, लेकिन तेजस्वी यादव तो तीसरी बार राघोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने जा रहे हैं. तेजस्वी यादव ने पूरे परिवार के साथ जाकर नामांकन भी कर दिया है. 

चुनाव अभियान पर निकलने से पहले प्रशांत किशोर ने पिछले ही हफ्ते कहा था, मैं राघोपुर जा रहा हूं… वहां के लोगों से मिलकर उनकी राय लूंगा.

प्रशांत किशोर ने तो यहां तक दावा किया था कि अगर वो राघोपुर से चुनाव लड़े तो तेजस्वी यादव को दो सीटों से चुनाव लड़ना पड़ेगा. प्रशांत किशोर का कहना था, ‘तेजस्वी यादव का वही हश्र होगा जो राहुल गांधी को अमेठी में हुआ था.’ 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी भी यूपी की अमेठी और केरल की वायनाड लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे. राहुल गांधी को अमेठी में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने हरा दिया था.

लेकिन जब जन सुराज पार्टी के उम्मीदवारों की सूची आई तो मालूम हुआ राघोपुर से चंचल सिंह को टिकट दे दिया गया है. प्रशांत किशोर के करगहर से भी चुनाव लड़े की संभावना जताई जा रही थी, जहां से भोजपुरी सिंगर रितेश पांडेय को जन सुराज पार्टी का टिकट मिला है – अब तो प्रशांत किशोर ने खुद ही बोल दिया है कि वो विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं. 

प्रशांत किशोर का कहना है, पार्टी ने फैसला किया है कि मुझे विधानसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहिए… इसलिए पार्टी ने तेजस्वी यादव के खिलाफ राघोपुर से अन्य उम्मीदवार की घोषणा की है… ये पार्टी के व्यापक हित में लिया गया फैसला है… अगर मैं चुनाव लड़ता तो इससे मेरा ध्यान आवश्यक संगठनात्मक कार्यों से हट जाता.

क्या प्रशांत किशोर को किसी बात का डर है?

बेशक चुनावी राजनीति में प्रशांत किशोर ने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया है, लेकिन वो दूसरों के कंधों पर बंदूक रख कर ही सही निशाना साध पाते हैं. अब तक उनको अपने दम पर निशाना साधने का अनुभव नहीं है. लेकिन, ये अनुभव भी तो चुनाव मैदान में उतरने के बाद ही हो पाएगा. जब चुनाव लड़ेंगे ही नहीं तो अनुभव कहां से होगा.

1. चुनाव मैदान में लड़ने के लिए उतरना होता है, हार या जीत के लिए नहीं. लेकिन, प्रशांत किशोर ने ये जोखिम नहीं उठाने का फैसला किया है. निश्चित तौर पर वो खुद को वैसी गारंटी नहीं दे पा रहे होंगे, जो अब तक अपने क्लाइंट को देते रहे हैं. अरविंद केजरीवाल भी जब पहली बार चुनाव मैदान में उतरे होंगे, जीत का भरोसा ही होगा, गारंटी तो उनको भी नहीं मिली होगी. खुद से या किसी और से. 

2. तेजस्वी यादव जिस राघोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, वो लालू यादव के परिवार का गढ़ रहा है. लालू यादव और राबड़ी देवी दोनों ही राघोपुर से विधायक रह चुके हैं. तेजस्वी यादव के लिए बिहार में बहुमत हासिल करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन राघोपुर से किसी के लिए अचानक मैदान में उतर कर हराना संभव नहीं लगता. 

3. ये ठीक है कि अमेठी भी गांधी परिवार की गढ़ मानी जाती रही है, लेकिन स्मृति ईरानी को भी पहली बार 2014 के आम चुनाव में हार का मुंह ही देखना पड़ा था. और वैसे भी प्रशांत किशोर और स्मृति ईरानी में बहुत पड़ा फर्क है. हारने के बावजूद स्मृति ईरानी पूरे पांच साल अमेठी में डटी रहीं, और राहुल गांधी ऐसी बातों से बेफिक्र हो गए थे. 

4. प्रशांत किशोर भले ही बिहार में बदलाव की आवाज बन कर उभरे हों, लेकिन उनकी छवि बहुत बदली नहीं है. अब भले ही अरविंद केजरीवाल की छवि पहले जैसी नहीं रह गई हो, लेकिन शुरू में तो वो भ्रष्टाचार के खिलाफ नायक बन कर उभरे थे. हो सकता है अरविंद केजरीवाल से लोगों के निराश होने की कीमत भी प्रशांत किशोर को चुकानी पड़ रही हो.

5. प्रशांत किशोर ने चुनाव लड़ने का दावा वापस लेकर लोगों को ये सोचने का मौका दे दिया है कि वो हार के डर से अपने कदम पीछे खींच लिए. और, ये लोगों के दिमाग में तब तक बनी रहेगी, जब तक कि प्रशांत किशोर खुद को साबित नहीं कर देते. 

प्रशांत किशोर के चुनाव न लड़ने के फैसले पर आरजेडी प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, ये सब राजनीति में पानी के बुलबुले की तरह हैं… हवा निकल गई… समाज सेवा करने आए थे, सबके बस की राजनीति नहीं है… लोगों को पता चल गया कि तेजस्वी यादव के नाम की सुनामी है. वो चुनाव क्या लड़ेंगे, पहले ही हार गए. कहने का कुछ भी कह दें, लेकिन उनकी हवा निकल गई.

प्रशांत किशोर के हार मानने का पैमाना

प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी के लिए बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों का टार्गेट तय किया है. कम से कम 150 सीटें. एक इंटरव्यू में प्रशांत किशोर ने कहा है कि अगर इससे कम सीटें आईं तो ये उनकी हार जैसा होगा. 

जन सुराज पार्टी के नेता का कहना है, मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं, या तो हम शानदार जीत हासिल करेंगे, या फिर बुरी तरह हारेंगे… मैं लगातार कहता रहा हूं कि मुझे या तो 10 से कम सीट मिलने की उम्मीद है या 150 से ज्यादा… बीच की कोई संभावना नहीं है.

प्रशांत किशोर कहते हैं, अगर हम अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो हमें बिहार को बदलने और इसे देश के 10 सबसे उन्नत राज्यों में शामिल करने का जनादेश मिलेगा… अगर अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं, तो इसका मतलब होगा कि लोगों ने हम पर पर्याप्त भरोसा नहीं दिखाया है… और हमें अपने समाज और सड़क की राजनीति जारी रखनी होगी.

प्रशांत किशोर ने पेशा भले बदल लिया हो. भले ही वो चुनाव रणनीतिकार से राजनीति के मैदान में कूद पड़े हों, लेकिन अब भी ज्यादा भरोसा उनको चुनाव लड़ाने में ही है, न कि खुद लड़ने में. मानना पड़ेगा, चुनाव लड़ने के कहीं ज्यादा भरोसे और हिम्मत की जरूरत होती है. 

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