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मैथिली ठाकुर का अलीनगर सीट से चुनाव जीतना क्यों नहीं है आसान, ये तीन समीकरण होंगे निर्णायक? – folk singer maithili thakur bjp ali nagar seat darbhanga rjd yadav brahman ntcpbt


लोक गायिका मैथिली ठाकुर ने आधिकारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सदस्यता ले ली है. अब बीजेपी ने मैथिली ठाकुर को बिहार चुनाव की रणभूमि में उतार दिया है. बुधवार को पार्टी ने दूसरी लिस्ट जारी की, जिसमें मैथिली को अलीनगर से टिकट दिए जाने का ऐलान किया है. 

इससे पहले मैथिली ने दो में से किसी एक सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की थी- मधुबन जिले की बेनीपट्टी या दरभंगा जिले की अलीनगर विधानसभा सीट. बीजेपी बेनीपट्टी से अपने उम्मीदवार का पहले ही ऐलान कर चुकी थी.

अब सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी ने मैथिली को अलीनगर से टिकट तो दे दिया, लेकिन उस सीट से लोक गायिका की चुनावी राह क्यों आसान नहीं है?

दरअसल, अलीनगर विधानसभा सीट 2020 के चुनाव में बीजेपी की गठबंधन सहयोगी रही मुकेश सहनी की अगुवाई वाली विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के हिस्से में थी. वीआईपी के टिकट पर मिश्रीलाल यादव चुनाव मैदान में उतरे और जीते थे. बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. चुनाव से कुछ महीने पहले एक पुराने मामले में दो साल की सजा सुनाए जाने के बाद मिश्रीलाल यादव की विधायकी चली गई थी.

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अलीनगर में बीजेपी को चाहिए नया चेहरा

दरभंगा की एक अदालत ने 27 मई को मारपीट के एक पुराने मामले में मिश्रीलाल यादव को दो साल की सजा सुनाई थी. जून महीने में ही बिहार विधानसभा सचिवालय ने यादव की सदस्यता रद्द करने से संबंधित नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया था. इसके बाद यह तय हो गया था कि इस सीट पर एनडीए से कोई नया चेहरा मैदान में उतरेगा. पिछले चुनाव में जीत का अंतर करीबी रहा था, ऐसे में बीजेपी को इस बार यह सीट बरकरार रखने के लिए नया, मजबूत चेहरा चाहिए और मैथिली को विधायकी का टिकट.

पिछली बार करीबी फाइट में जीता था एनडीए

बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव (2020) में इस सीट पर एनडीए को कड़े मुकाबले में जीत मिली थी. वीआईपी कोटे से एनडीए के उम्मीदवार मिश्रीलाल यादव को 61 हजार 82 वोट मिले थे. आरजेडी के बिनोद मिश्रा 57 हजार 981 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे थे. कड़े मुकाबले में एनडीए उम्मीदवार को 3101 वोट के करीबी अंतर से जीत मिली थी. सीट बंटवारे के बाद यह सीट वीआईपी के खाते में जाने के बाद बीजेपी यह कहते हुए मिश्रीलाल को टिकट दिलवाया था कि मुकेश सहनी के पास मजबूत उम्मीदवार नहीं है.

अब्दुल बारी सिद्दिकी दो बार रहे हैं विधायक

अलीनगर सीट के अतीत की बात करें तो यह सीट आरजेडी का गढ़ रही है. 2008 के परिसीमन में मीनागाछी विधानसभा सीट के कुछ हिस्से दरभंगा ग्रामीण विधानसभा सीट में मर्ज कर दिए गए थे और बाकी बचे हिस्सों को लेकर अलीनगर सीट अस्तित्व में आई. 2008 में इस सीट का भूगोल भी बदला और साथ ही बदल गए सामाजिक समीकरण भी. कभी नागेंद्र झा, मदन मोहन झा जैसे कांग्रेस के कद्दावर ब्राह्मण चेहरों की सीट रहा यह क्षेत्र आरजे़डी का गढ़ बनकर उभरा.

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मीनागाछी सीट से ललित कुमार यादव तीन बार विधायक रहे. तब आरजेडी के कद्दावर नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी बिहार विधानसभा में बेनीपुर का प्रतिनिधित्व करते थे. परिसीमन के बाद अलीनगर सीट अस्तित्व में आते ही बदले समीकरण देख सिद्दीकी ने इस सीट का रुख कर लिया और 2010, 2015 के चुनाव में विजयी रहे.

2020 में आरजेडी के दांव ने चौंकाया

साल 2020 के चुनाव में आरजेडी ने अलीनगर में ब्राह्मण कार्ड चला. पार्टी ने बिनोद मिश्रा को उम्मीदवार बनाया. आरजेडी के ब्राह्मण दांव को काउंटर करने के लिए एनडीए ने यादव दांव चल दिया. आरजेडी को करीबी लड़ाई में मात मिली, लेकिन जातीय समीकरणों का उलट-पुलट हो गया था. आरजेडी जहां बीजेपी के कोर ब्राह्मण वोट में सेंध लगाने में सफल रही थी. वहीं, एनडीए के उम्मीदवार को भी यादव वोट मिले थे.

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बीजेपी के लिए ब्राह्मण चेहरा जरूरी क्यों

बीजेपी को 2020 के चुनाव में यह भरोसा था कि ब्राह्मण वोटर आरजेडी के साथ नहीं जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अलीनगर विधानसभा क्षेत्र में यादव और ब्राह्मण, दोनों जातियों के मतदाताओं की तादाद लगभग बराबर है. आरजेडी अगर यादव वोट बैंक को अपने पाले में एकजुट रखने के साथ ब्राह्मण वोट में सेंध लगा पाती है, तो उसके जीत की संभावनाएं बढ़ सकती हैं.

बीजेपी 2020 के चुनाव से सीख लेकर इस बार सतर्क है और ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगा सकती है. मैथिली ठाकुर ब्राह्मण हैं और जाति से परे हर वर्ग के लोगों में लोकप्रिय हैं. बीजेपी को यह भी लगता है कि वह हर जाति-वर्ग की महिलाओं का समर्थन भी हासिल कर सकती हैं.

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