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अनंत सिंह को टिकट देकर JDU किस मुंह से RJD के ओसामा शहाब जैसों का विरोध करेगी? – JDU given tickets bahubali Anant Singh how talk jungleraj opns2


बिहार की राजनीति पिछले तीन दशकों से बाहुबलियों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. जिस दल के पास जितने बाहुबली होते हैं उसकी सरकार बनाने की गारंटी उतनी ही बढ़ जाती रही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्हें आज की तारीख में सुशासन बाबू की छवि हासिल है उन्होंने खुद अपनी राजनीति चमकाने के लिए बहुत से माफियाओं का समय समय पर सहारा लिया है. पर पिछले दशक से हर दल यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह माफिया से दूरी बनाकर चलता है.

नीतीश कुमार भी सुशासन कुमार की छवि बनने के बाद माफिया नेताओं से दूरी बनाने लगे थे. पर इस बार के विधानसभा चुनावों में वो जिस तरह खुलकर माफिया नेताओं को टिकट दे रहे हैं उससे स्पष्ट हो गया है कि उनका विश्वास डिग गया है. दरअसल 2020 के चुनावों में जेडीयू को बीजेपी और आरजेडी के मुकाबले बहुत कम सीट मिली थी. इसलिए शायद  उन्हें लगता है कि माफिया नेताओं का सहारा ही उनकी नैय्या को संभाल सकता है. दागी नेताओं के लिए बदनाम रही आरजेडी जब तेजस्वी यादव के हाथ में आई तो एक बार ऐसा लगा कि पार्टी माफियाओं से दूरी बना लेगी. तेजस्वी ने अखिलेश यादव की राह पर चलते हुए कुछ माफिया परिवारों से दूरी बनाने की कोशिश भी की. पर सफलता न मिलने पर उन्हें भी माफिया रास आने लगे.

पर अब सवाल उठता है कि जब जेडीयू खुद अनंत सिंह जैसे माफिया टर्न पॉलिटिशयन को मोकामा से टिकट दिया है तो किस आधार पर वे आरजेडी के माफिया नेताओं को टार्गेट कर सकेगी? जदयू ने अपनी पहली लिस्ट में 3 बाहुबलियों को मौका दिया है. मोकामा से अनंत सिंह, एकमा से धूमल सिंह, कुचाएकोट से अमरेन्द्र पांडेय को पार्टी के तरफ से सिंबल दिया गया है. जाहिर है कि अभी कई नाम दूसरी लिस्ट में भी देखने को मिलेंगे. कई माफिया नेता टिकट की वेटिंग में हैं. एनडीए की दूसरी पार्टी बीजेपी भी दागी नेताओं को टिकट देने में पीछे नहीं रहने वाली है. 

दूसरी तरफ आरजेडी ने भी अभी तक जारी लिस्ट में कुल तीन बाहुबलियों को टिकट दिया है. पर आरजेडी तो माफिया को टिकट देने के लिए बदनाम रही है. जंगलराज के नाम पर पिछले तीन लोकसभा चुनावों और 2 विधानसभा चुनावों में जनता ने उसे नकार दिया है. इसलिए सवाल तो एनडीए पर ही उठना चाहिए. 

आरजेडी ने दिवंगत बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन के इकलौते बेटे ओसामा शहाब को रघुनाथपुर विधानसभा सीट से टिकट दिया है. शहाबुद्दीन, जिन्हें ‘साहेब’ के नाम से जाना जाता था, सिवान के कुख्यात अपराधी-राजनेता थे. हत्या, अपहरण और न्यायिक हिरासत में मौत के आरोपों से घिरे रहे. ओसामा की मां हीना शहाब ने अप्रैल में लालू-तेजस्वी से मुलाकात कर इस सीट की मांग की थी. एनडीए जंगल राज के लिए शहाबुद्दी जैसे नेताओं को शह देने के लिए लालू यादव को निशाने पर लेती रही है.यहां तक कि इंडिया ब्लॉक के मंच पर शहाबुद्दीन के परिवार को जगह मिलने पर भी एनडीए के नेता सवाल  उठाते रहे हैं. पर सवाल उठता है कि जब सुशासन की छवि वाले नेताओं को चुनाव जीतने के लिए माफिया नेताओं के शरण में जाना पड़ रहा है तो आरजेडी तो सत्ता में नहीं है, उसकी शिकायत कैसे करेंगे?.

सुशासन बाबू को क्यों माफिया की शरण लेनी पड़ी?

 दरअसल बिहार की राजनीति में बाहुबली किसी भी पार्टी की आवश्यक बुराई होते हैं. ये स्थानीय स्तर पर विकास, सुरक्षा और जातिगत समीकरणों को नियंत्रित करने वाले प्रमुख खिलाड़ी भी हैं. 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) या जेडीयू ने गठबंधन के साथ 101 सीटों पर दांव लगाया है. अभी तक 3 बाहुबलियों को टिकट मिला है. उम्मीद की जा रही है कि कम से कम 3 और बाहुबली परिवारों के लोगों को टिकट दिया जाएगा. 

बाहुबलियों को टिकट देना, कहने को तो यह कदम जेडीयू की उस रणनीति का हिस्सा है जिसमें महागठबंधन के बाहुबलियों को काउंटर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जैसे पप्पू यादव, अशोक महतो, भाई वीरेन्द्र या चंद्रशेखर प्रसाद के प्रभाव को काउंटर करने के लिए जेडीयू अपने बाहुबलियों को मैदान में उतार रही है. बिहार में बाहुबलियों की भूमिका न केवल चुनावी है, बल्कि वे वोटरों को मोबिलाइज करने, बूथ कैप्चरिंग रोकने और स्थानीय विवादों को सुलझाने में शासन प्रशासन पर भी भारी पड़ते हैं. 

जेडीयू का यह दांव एनडीए को मजबूत करने का प्रयास है, जहां भाजपा के साथ मिलकर वे 2020 की हार (महागठबंधन को 125 सीटें) को पलटना चाहते हैं. लेकिन क्या यह रणनीति सफल होगी?  

अनंत सिंह की जरूरत क्यों पड़ी?

अनंत सिंह ने 2015 में निर्दलीय और 2020 में (पत्नी नीलम देवी) आरजेडी के टिकट पर जीत हासिल की. हालांकि इसके पहले वे जनता दल यूनाइटेड से चुनाव लड़ कर विधायक बन चुके थे. 2020 में आरजेडी के टिकट पर विधायक बने पर 2024 में नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने के बाद अनंत सिंह ने जेडीयू का दामन थाम लिया . अब एक बार फिर वो जेडीयू के टिकट पर मोकामा से चुनाव लड़ रहे हैं.

बाहुबली से जेडीयू उम्मीदवार तक अनंत कुमार सिंह का उदय बिहार की ग्रामीण राजनीति का प्रतीक है. 1969 में मुंगेर जिले के लदमा गांव में जन्मे अनंत सिंह ने 1990 के दशक में अपराध की दुनिया में कदम रखा. उनके बड़े भाई दिलीप सिंह, जो आरजेडी से विधायक रहे, ने उन्हें राजनीतिक पटरी पर लाने में मदद की. अनंत सिंह की ताकत उनके ‘छोटे सरकार’ वाले छवि में है. मोकामा जैसे क्षेत्र में, जहां अपराध दर ऊंची है, वे स्थानीय लोगों के लिए मसीहा हैं. उनके समर्थक 1,000 वाहनों के रोड शो और 1.25 लाख गुलाब जामुन बांटकर नामांकन में उत्साह दिखाया. लेकिन उनके नाम से विवाद भी कम नहीं है. मर्डर, एक्सप्लोसिव्स और यूएपीए के केस होने के बावजूद जेडीयू ने उन्हें अपनाया. क्योंकि आरजेडी के बाहुबलियों को उनके जैसे बाहुबली नेता ही चुनौती दे सकते हैं.

जेडीयू की रणनीति: बाहुबली vs बाहुबली

जेडीयू के समर्थक अनंत सिंह को टिकट देने के पीछे आंख के बदले आंख की रणनीति की बहाना बनाते हैं.यह एनडीए की कमजोरी को मजबूती में बदलने का प्रयास है या एनडीए की मजबूती को कमजोर करने का प्रयास है यह चुनाव परिणामों में ही सामने आयेगा.

मोकामा में आरजेडी के बाहुबली तत्व अनंत सिंह के आने से बंट जाएंगे. अनंत का 30 साल पुराना दबदबा उन्हें ‘किंगमेकर’ बनाता है. 2020 में आरजेडी टिकट पर जीतकर उन्होंने साबित किया कि वे बूथ स्तर पर मजबूत हैं. जेडीयू का दावा है कि अनंत से 60,000 से अधिक वोट पक्के हैं, जो आरजेडी के 40,000 वोटों को काटेगा.

अनंत सिंह भूमिहार जाति से हैं, जो बिहार में 3-4% वोटर हैं. आरजेडी भूमिहारों को तेजस्वी के नेतृत्व में लुभा रही है (जैसे सुनील सिंह को टिकट देकर), लेकिन अनंत का एनडीए समर्थन भूमिहार वोट को भाजपा-जेडीयू की ओर मोड़ेगा. 

 बाहुबलियों की ताकत बूथ मैनेजमेंट में है. अनंत सिंह के 1,000 वाहनों वाले रोड शो ने दिखाया कि वे कार्यकर्ताओं को एकजुट कर सकते हैं. उम्मीद की जा रही है कि जेडीयू अभी कई अन्य बाहुबलियों को भी टिकट दे सकती है. 

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