कानपुर की एक शांत दोपहर थी 14 जून 2009. शहर के गोविंद नगर इलाके में खड़ी एक कार ने अचानक सबका ध्यान अपनी ओर खींचा. जब पुलिस ने कार का दरवाजा खोला तो अंदर का नज़ारा रूह कंपा देने वाला था. बोरे में ठूंसी एक लाश, शरीर पर जगह-जगह सूजे के गहरे निशान, सिर से लेकर गले तक घाव. पहचान हुई, यह बृजेश गुप्ता थे, जो खुद का लोकल चैनल चलाते थे और शहर में एक ईमानदार पत्रकार के तौर पर जाने जाते थे.
बृजेश की मौत ने पूरे कानपुर के मीडिया जगत को झकझोर दिया. पत्रकार सड़कों पर उतर आए, इंसाफ की मांग उठी. पुलिस जांच में एक ऐसा नाम सामने आया जिसने सबको चौंका दिया. बृजेश के चैनल की एंकर, कनिका ग्रोवर.
कैसे किया था प्लान?
जांच आगे बढ़ी तो खुलासा हुआ कि बृजेश की हत्या सिर्फ पेशेवर ईर्ष्या नहीं, बल्कि निजी रंजिश का नतीजा थी. कनिका और उसके दो भाई सन्नी और मन्नी ने बृजेश की हत्या की साजिश रची थी. इनकी मदद कनिका के रिश्तेदार सुरजीत सिंह ने की. हत्या के बाद बृजेश की रिवॉल्वर गायब थी, जिसे बाद में पुलिस ने इन्हीं के पास से बरामद किया.
बृजेश के भाई प्रभात गुप्ता ने FIR दर्ज कराई और कहा, ;मेरे भाई ने कभी किसी का बुरा नहीं किया, लेकिन इन्हें उसकी सफलता से जलन थी.’ उस दिन से यह मामला कानपुर की अदालत में चलता रहा. गवाह, सबूत, और साल-दर-साल की सुनवाई.
16 साल बाद मिला न्याय
आख़िरकार 16 साल बाद, मंगलवार को अदालत ने इंसाफ सुना दिया. जज राजेश राकेश सिंह की अदालत ने कनिका ग्रोवर, उसके दोनों भाइयों सन्नी-मन्नी और रिश्तेदार सुरजीत को हत्या का दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई. वहीं, कनिका की मां अलका ग्रोवर और चाचा बंटी को पांच साल की सजा दी गई.
एडीजीसी गौरवेंद्र त्रिपाठी ने बताया कि अभियोजन पक्ष ने कुल 10 गवाह पेश किए थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में 25 चोटों का जिक्र था, जिसे अदालत ने मुख्य आधार माना. फैसले के बाद बृजेश के भाई प्रभात ने कहा, ‘हमें देर से सही, लेकिन इंसाफ मिला. अब मैं हाई कोर्ट में अपील करूंगा ताकि इन लोगों को फांसी की सजा हो.’
16 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बृजेश गुप्ता को आखिरकार मिला इंसाफ. एक पत्रकार, जिसने सच्चाई की आवाज़ उठाई थी, और जिसकी हत्या ने पूरी पत्रकारिता को झकझोर दिया था.
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