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क्या है ताजमहल संकन खजाना, जो समुद्र में मिला था? उसमें क्या-क्या निकला… – silver coins discovered in srilanka tajmahal sunken treasure pvpw


दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल अक्सर अपनी खूबसूरती के कारण सुर्खियों में रहता है. सफेद मार्बल की यह इमारत मुगल साम्राज्य के इतिहास की गवाह है. लेकिन क्या आप मुगल बादशाह औरंगजेब के जमाने के खजाने के बारे में जानते हैं, जिसे ताजमहल संकन ट्रेजर कहा जाता है? चलिए जानते हैं कि यह क्या है.

क्या है ताजमहल संकन ट्रेजर?

ताजमहल संकन ट्रेजर चांदी के सिक्कों का एक गुच्छा है, जिन्हें औरंगजेब के शासनकाल के दौरान साल 1702 में गुजरात के सूरत से जारी किया गया था. यह मुगल साम्राज्य से जुड़ा हुआ इकलौता खजाना है, जिसे अब तक खोजा गया हो. ताजमहल का निर्माण करवाने वाले इस साम्राज्य से संबंधित होने के कारण इसे ताजमहल संकन ट्रेजर कहा जाता है.

श्रीलंका में डूबे हुए जहाज से बरामद हुआ खजाना

साल 1961 में श्रीलंका जा रहे एक जहाज का मलबा खोजा गया था. माना जाता है कि सूरत के रास्ते स्पाइस रूट  होकर श्रीलंका जा रहे एक व्यापारी का यह जहाज साल 1702 में आए एक समुद्री तूफान में डूब गया था. एक हजार सिक्कों के इस खजाने को मशहूर साइंस फिक्शन लेखक आर्थर सी. क्लार्क ने अपने फोटोग्राफर दोस्त माइक विल्सन के साथ मिलकर इसी जहाज से बरामद किया था.

हालांकि इसे मलबा मिलने के दो साल बाद यानी साल 1963 में श्रीलंका के ग्रेट बेसेस रीफ पर खोजा गया था. मलबे के बीच कंक्रीट की लेयर में यह सिक्के दबे हुए थे. इन सिक्कों के सामने की ओर हो रही डिजाइन से पता चलता है कि इन्हें सूरत में साल 1701 और 1702 के बीच औरंगजेब के 45वें और 46वें शासनकाल के दौरान ढाला गया था. ग्रेट बेसेस की खोज तक इन सिक्कों के कोई अन्य उदाहरण नहीं मिलते.

ओरिजिनल थैलों में मौजूद है खजाना

इन्हें संग्रहित करने वाली कैनन बीच ट्रेजर कंपनी के अनुसार कुछ सिक्के अभी भी ओरिजनल थैलों में ही आपस में जुड़े हुए हैं. आर्थर क्लार्क ने अपनी पर्सनल कलेक्शन से यह सिक्के इस कंपनी को सौंपे थे.

लिखी जा चुकी है दो किताबें

आर्थर ने अपने डाइविंग और इस खोज के अनुभव पर दो किताबें- ‘ट्रेजर ऑफ द ग्रेट रीफ’ (1964) और उसका रिवाइज्ड एडिशन ‘इंडियन ओशियन ट्रेजर’ (1972) लिखी हैं. इसके अलावा इस खजाने को अमेरिकी शो पॉन स्टार्स  में भी दिखाया जा चुका है.

लेखक से पहले स्कूबा डाइवर थे आर्थर क्लार्क

ज्यादातर लोग क्लार्क को सैटेलाइट कम्युनिकेशन के लिए नोबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट होने और  ‘2001: ए स्पेस ओडिसी’ समेत सौ अन्य किताबों के लेखक के तौर पर जानते हैं, लेकिन लगभग साल 1956 तक, वो एक कुशल स्कूबा डाइवर बन चुके थे और अंडरवाटर एक्सप्लोरेशन के बारे में भी लिखते थे.

एक साल के लिए टला मिशन

यह खोज साल 1962 के लिए तय हुई थी, लेकिन क्लार्क को पोलियो होने के बाद इसे एक साल के लिए टाल दिया गया. उनके ठीक होने पर टीम ने मिशन वापस शुरू किया. सिक्कों के अलावा रीफ से कई कलाकृतियां (artefacts) भी बरामद की, लेकिन वे सब कुछ अपने साथ नहीं ला सके.

क्लार्क ने बाद में अमेरिका के स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के मैरीटाइम क्यूरेटर मेंडल पीटरसन से संपर्क कर सिक्कों का एक गुच्छा म्यूजियम को दान कर दिया.

पहले थे तीन, अब बचे सिर्फ दो गुच्छे

साल 1963 में क्लार्क की टीम ने इन चांदी के सिक्कों के तीन गुच्छे खोजे थे, जिनमें से एक अमेरिका के म्यूजियम में, एक श्रीलंका के कोलंबो स्थित म्यूजियम में और एक गुच्छा क्लार्क के परिवार की पर्सनल कलेक्शन में शामिल था.

लेकिन साल 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के दौरान श्रीलंका के म्यूजियम में मौजूद सिक्के समुद्र में डूब गए और फिर नहीं मिल सके, इसलिए अब इस खजाने के दो ही गुच्छे बचे हैं.

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