लगभग एक साल पहले कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी. मामले की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि पश्चिम बंगाल के ही एक और शहर दुर्गापुर में ऐसी ही घटना घटी. यहां एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की स्टूडेंट के साथ गैंगरेप हुआ. छात्रा की गंभीर स्थिति के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान ने आग में घी उड़ेल लिया. घटना पर दुख जताते हुए सीएम ये जोड़ना नहीं भूलीं कि पीड़िता रात में बाहर थी!
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने लगातार कई सालों तक कोलकाता को देश का सबसे सुरक्षित शहर माना. यहां प्रति एक लाख आबादी पर लगभग 90 अपराध दर्ज हुए जो कि बाकियों की तुलना में कम है.
स्टडी कहती है कि साल 2016 से पहले यहां क्राइम ज्यादा था, लेकिन इसके बाद जुर्म की दर कम होने लगी. यहां तक कि महिलाओं के लिए भी इसे चंद सबसे सेफ शहरों में रखा गया. दावा किया गया कि महिलाएं यहां देर रात सुरक्षित आ-जा सकती हैं. लेकिन अब कोलकाता समेत पश्चिम बंगाल के तमाम बड़े शहरों की सुरक्षा व्यवस्था पर डेंट साफ दिख रहा है. खासकर तब, जबकि सीएम जैसे जिम्मेदार पद की तरफ से बयान आ रहा है कि महिलाओं को रात में नहीं घूमना चाहिए, या सुनसान इलाकों में सतर्क रहना चाहिए.
बीते साल अगस्त में कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर की रेप के बाद हत्या कर दी गई. इसके बाद महीनों तक कोलकाता में प्रोटेस्ट होते रहे. पीड़िता के पेरेंट्स ने सीएम पर असंवेदनशीलता के आरोप भी लगाए. इसी साल जुलाई में कोलकाता के ही एक लॉ कॉलेज की स्टूडेंट के साथ गैंगरेप का मामला उछला.
अब दुर्गापुर में मिलती-जुलती घटना हो चुकी. प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की छात्रा का 10 अक्तूबर को गैंगरेप हुआ, जिसके बाद से उसकी स्थिति गंभीर बनी हुई है. महिला सुरक्षा को लेकर पश्चिम बंगाल लगातार घिरने लगा है. यहां तक कि देश के सबसे अपराध-मुक्त शहरों में भी उसका दर्जा कहीं नीचे आ चुका.

क्या कहती है राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट
नेशनल कमीशन फॉर वीमन (NCW) की शाखा नेशनल एनुअल रिपोर्ट एंड इंडेक्स ऑन वीमन्स सेफ्टी (NARI) की ताजा रिपोर्ट आ चुकी है. इसके नतीजे चौंकाते हैं. कोहिमा, विशाखापट्टनम, भुवनेश्वर, मुंबई, गंगटोक और ईटानगर को महिला सुरक्षा में टॉप पर रखा गया. वहीं कोलकाता अब सबसे असुरक्षित इलाकों में शामिल है. कोलकाता की श्रेणी में ही दिल्ली, जयपुर, फरीदाबाद, श्रीनगर और रांची जैसे शहर हैं.
31 शहरों की लगभग तेरह हजार महिलाओं से हुई बातचीत के बाद ये सर्वे अगस्त में रिलीज हुआ. नेशनल सेफ्टी स्कोर से तुलना करते हुए महिलाओं को अपने शहर को ज्यादा बेहतर, बेहतर, कमतर, काफी कम जैसी डिग्रीज पर मार्क करना था. सर्वे में कोलकाता को सबसे असुरक्षित शहर बताया गया. ये तब है, जबकि यौन हिंसा झेल चुकी कम ही महिलाएं उसकी शिकायत करती हैं, या उस पर खुलकर बात भी करती हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो भी मानता है कि एब्यूज की शिकार तीन में से दो महिलाएं उस पर एकदम चुप रह जाती हैं.
पब्लिक ट्रांसपोर्ट काफी असुरक्षित हो चुका. सात फीसदी महिलाओं ने माना कि वे सार्वजनिक गाड़ियों में यात्रा करते हुए हिंसा झेल चुकी. वहीं 24 साल के कम उम्र की महिलाओं के लिए ये आंकड़ा दोगुना हो गया. देर रात सफर इस जोखिम को कई गुना बढ़ा देता है.
क्या अवैध प्रवासियों की वजह से हो रही समस्या
कुछ समय से लगातार आरोप लग रहा है कि कोलकाता समेत पूरे राज्य में बाहरियों की आबादी बढ़ी. कथित तौर पर घुसपैठिए बांग्लादेश से आ रहे हैं, जो मुख्यधारा से तालमेल न बिठा पाने पर जुर्म की तरफ बढ़ जाते हैं. स्टेट में घुसपैठियों की सही संख्या बताना मुश्किल है. अलग-अलग स्रोतों के मुताबिक, चूंकि इनमें से कई लोग राज्य से निकलकर देश के दूसरे हिस्सों में फैल जाते हैं, इसलिए सटीक आंकड़ा तय कर पाना संभव नहीं. गृह मंत्रालय ने साल 2022 की रिपोर्ट में कहा था कि भारत-बांग्लादेश सीमा का पोरस होना बड़ी चुनौती बन गई है. इस रास्ते से अवैध माइग्रेशन के साथ-साथ तस्करी जैसी गतिविधियां भी चल रही हैं.

पुलिस बल की कमी भी कारण
राज्य में पुलिस फोर्स की कमी की वजह से सिविक वॉलंटियर स्कीम शुरू की गई. ये आम लोग ही होते हैं, जो पुलिस की मदद करते हैं. जैसे ट्रैफिक, त्योहार, चुनाव या VIP मूवमेंट के समय स्थिति संभालना. ये लोकल लोग होते हैं, जिन्हें भत्ता भी मिलता है. वैसे तो ये स्कीम विन-विन की सिचुएशन क्रिएट करने के लिए लाई गई थी लेकिन इसमें खामियां ज्यादा निकलने लगीं. जैसे ये लोग पुलिस की वर्दी पहनकर पावर प्रैक्टिस करने लगे. आरजी कर अस्पताल में दोषी संजय रॉय खुद वॉलंटियर था. इसके बाद से सवाल उठने लगा कि आबादी के मुताबिक फोर्स बढ़ाने की बजाए क्यों राज्य ने बिना ट्रेनिंग के युवाओं को वॉलंटियर की तरह नियुक्त करना शुरू कर दिया.
दर्ज हुए मामलों पर कार्रवाई कमजोर
राज्य में दर्ज हुए अपराधों पर ट्रायल भी कम है, और उसका कनविक्शन रेट तो और भी कम है. साल 2021 में पुलिस ने महिलाओं के खिलाफ लगभग पौने चार लाख केस रिकॉर्ड किए. इनमें से सिर्फ 5 फीसदी का ट्रायल पूरा हुआ. और दोषी को सजा केवल साढ़े सात सौ मामलों में मिली. यह सारी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सबसे कम है. इस स्थिति से बचने के लिए भी महिलाएं जुर्म के खिलाफ पुलिस तक जाती ही नहीं.
और क्या-क्या बदल रहा कोलकाता में
– शहर के कुछ इलाकों, जैसे सॉल्ट लेक और पार्क स्ट्रीट के आसपास, देर रात पुलिस की मौजूदगी बहुत कम रहती है.
– मेट्रो या बसें रात को जल्दी बंद हो जाती हैं. देर रात लौटने वाली महिलाओं को या तो कैब लेनी पड़ती है या सुनसान रास्तों से गुजरना पड़ता है, जो असुरक्षा बढ़ाता है.
– राज्य की सीमाएं काफी संवेदनशील मानी जाती रहीं, जहां आतंकी संगठनों से मेलजोल के लिए नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी अक्सर ही छापेमारी करती है.
– सीमा से सटे हिस्सों में ड्रग ट्रैफिकिंग की खबरें आती रहीं. मालदा के कलियाचक की तुलना तो अफगानिस्तान से हो चुकी, जहां नशे से लेकर हथियारों की तस्करी होती है.
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