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कभी फौज का प्यारा था, अब भस्मासुर… PAK सरकार की नाक में दम करने वाला तहरीक-ए-लब्बैक कौन है? – Pakistan army proxy Tehreek e Labbaik Islamabad Lahore march nation hostage Israel gaza ceasefire ntc


पाकिस्तान में आज जो हालात हैं, वह एक पुरानी कहावत को सच साबित करते हैं – “जो बोएगा वही काटेगा.” लाहौर में हिंसक झड़पें और इस्लामाबाद का किले में तब्दील होना दिखाता है कि पाकिस्तान अपनी ही बनाई समस्या में फंस गया है. इसके पीछे तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) नाम का एक कट्टरपंथी संगठन है, जो कभी पाक फौज का ‘प्यारा’ था.

सबसे दिलचस्प बात यह है कि TLP को खुद पाकिस्तानी फौज ने बनाया और पाला था. मकसद था नागरिक सरकारों को दबाने के लिए एक ‘सड़क की ताकत’ तैयार करना. यह वही तरीका है जो पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के साथ अपनाया था. लेकिन अब यही ‘पालतू कुत्ता’ अपने मालिकों को ही काटने लगा है.

लंदन स्थित पाकिस्तानी मानवाधिकार कार्यकर्ता आरिफ आजकिया का कहना है, “TLP, लश्कर-ए-तैयबा की तरह ही पाक आर्मी की बनाई हुई संगठन है. फौज ने इसे घरेलू राजनीति में हेरफेर के लिए बनाया था.” अब वही संगठन पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बन गया है.

शनिवार को लाहौर में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) का एक विशाल विरोध प्रदर्शन जारी है. इस प्रदर्शन में हजारों समर्थक शामिल हुए हैं और इस्लामाबाद की ओर मार्च कर रहे हैं. इस हिंसक प्रदर्शन के दौरान टीएलपी के 11 समर्थकों की मौत हो गई है.

फौज का दोहरा खेल

2015 में बना यह संगठन बार-बार पाकिस्तान को तकलीफ़ देता रहा है. 2017 में इन्होंने इस्लामाबाद की 21 दिन की घेराबंदी की. मजेदार बात यह है कि जब भी यह संगठन उत्पात मचाता है, पाक फौज ‘बिचौलिए’ की भूमिका निभाती है और इनके साथ डील करती है.

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2017 के प्रदर्शनों के दौरान एक सीनियर फौजी अफसर को TLP प्रदर्शनकारियों को पैसे बांटते हुए देखा गया था – जो साफ दिखाता है कि यह सब कितना नियोजित था. उस समय तत्कालीन कानून मंत्री ज़ाहिद हामिद को इस्तीफा देना पड़ा था.

गाजा-इजरायल के बीच हुए सीजफायर पर सरकार के समर्थन के खिलाफ सड़कों पर TLP का बवाल (Photo: AFP)

इमरान खान का TLP प्रेम

सबसे शर्मनाक बात यह है कि 2021 में इमरान खान की सरकार ने TLP पर से प्रतिबंध हटा दिया था. हुआ यह कि TLP के मुखिया सआद रिज़वी को आतंकवाद विरोधी कानून के तहत जेल में डाल दिया गया था. लेकिन हज़ारों TLP समर्थकों ने लाहौर से इस्लामाबाद तक ‘लॉन्ग मार्च’ निकाला. इस हिंसा में 20 से ज्यादा लोग मारे गए, जिसमें 10 पुलिसकर्मी भी शामिल थे.

पाक फौज की मध्यस्थता से इमरान खान की सरकार ने TLP के साथ गुप्त समझौता किया. परिणाम – सआद रिज़वी और 2000 से ज्यादा TLP कार्यकर्ता रिहा कर दिए गए. यह वही इमरान खान था जो भारत को आतंकवाद के बारे में उपदेश देता रहता था.

2018 चुनावों में TLP का इस्तेमाल

इंडियन काउंसिल ऑन ग्लोबल रिलेशंस की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 के चुनावों में TLP का इस्तेमाल पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (PML-N) को कमज़ोर करने के लिए किया गया था, ताकि इमरान खान का रास्ता साफ हो सके. यानी TLP ने ISI के इशारे पर काम किया.

धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग

TLP की रणनीति बेहद चालाकी भरी है. यह ‘खतम-ए-नबुव्वत’ (पैगंबर की अंतिमता) जैसे भावनात्मक मुद्दों का सहारा लेता है. पाकिस्तान में धार्मिक भावनाओं को हथियार बनाने की यह परंपरा कोई नई नहीं है – यही तो भारत के खिलाफ भी किया जाता रहा है.

लाहौर में TLP ने जमकर मचाया बवाल (Photo: AFP)

पाकिस्तान का आत्मघाती रास्ता

अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट में साफ लिखा है, “TLP ने अपनी ताकत का स्वाद चख लिया है और सीख गया है कि इसे कैसे इस्तेमाल करना है – राज्य के खिलाफ नहीं, बल्कि उनकी सेवा में जो पर्दे के पीछे से असली नियंत्रण रखते हैं.”

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पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अयूब मिर्ज़ा का कहना है, “आज जो अराजकता दिख रही है, वह धर्म को हथियार बनाने के दशकों का अपरिहार्य परिणाम है. पाकिस्तान अब अपने ही अंतर्विरोधों के बोझ तले दब रहा है.”

फ्रैंकनस्टाइन का राक्षस

यह स्थिति उस फ्रैंकनस्टाइन की कहानी जैसी है जिसका बनाया हुआ राक्षस उसे ही खत्म करने पर आमादा हो गया. पाकिस्तानी फौज ने TLP को नागरिक सरकारों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए बनाया था, लेकिन अब यही संगठन पूरे पाकिस्तान को अस्थिर कर रहा है.

इनपुट: गौरव कुमार

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