2025 के शांति नोबेल पुरस्कार का ऐलान हो चुका है. वेनेजुएला की मुख्य विपक्षी नेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता मारिया कोरिना मचाडो को इसके लिए चुना गया है. उन्हें 338 नामांकित उम्मीदवारों में से चुना गया है. नोबेल कमिटी ने कहा है कि वो लोकतंत्र की सच्ची आवाज बनकर उभरी है, जिसके कारण उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने के लिए इस पुरस्कार का विजेता माना गया. लेकिन नॉर्वे में अब सुगबुगाहट है कि ट्रंप उनके देश से बदला ले सकते हैं.
58 साल की मचाडो ने साल 1992 में एक ऐसे फाउंडेशन की स्थापना की थी, जो सड़क पर रहने वाले बेसहारा बच्चों की मदद करती है. इसके 10 साल बाद जब वेनेजुएला में चुनावी धांधली चरम पर थी, तब भी उन्होंने एक संगठन बनाया और निष्पक्ष चुनावों की मांग को जन आंदोलन में बदल दिया. इस जन-आंदोलन का ही नतीजा था कि वो साल 2010 के संसदीय चुनावों में रिकॉर्ड वोटों से जीतीं और उन्हें वहां की राजनीतिक पार्टियों ने निशाना बनाना शुरू कर दिया.
सबसे पहले साल 2014 में उन्हें वेनेजुएला की सरकरा ने उनके पद से निष्कासित कर दिया. इसके बाद साल 2023 में जब उन्होंने राष्ट्रपति चुनावों में अपनी उम्मीदवारी का दावा किया तो उन्हें ऐसा करने से भी रोका गया. इसके अलावा इसी दौरान जब उनकी जान को सबसे ज्यादा खतरा था, तब भी वो देश छोड़कर भागीं नहीं और अपने फैसले से वेनेज़ुएला में लोकतंत्र की उम्मीद को जिंदा रखा और आखिर में गिरफ्तारी से भी वो घबराई नहीं. इसी संघर्ष को देखते हुए नोबेल कमिटी ने ये तय किया कि वो एक साहसी और समर्पित शांति समर्थक हैं, जो बढ़ते अंधकार में लोकतंत्र की मशाल को जलाए रखे हुए हैं और इसीलिए उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार का असली विजेता माना जाएगा.
लेकिन इसी फैसले के साथ ये भी तय हो गया कि राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा जबकि वो खुद 12 बार ये पुरस्कार मांग चुके थे. अब बड़ी बात ये है कि नॉर्वे के अखबारों में ये लिखा जा रहा है कि अब राष्ट्रपति ट्रंप नॉर्वे से बदला लेने के लिए क्या क्या कर सकते हैं?
द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक, नॉर्वे के एक अखबार ने लिखा है कि राष्ट्रपति ट्रंप बदला लेने के लिए तीन फैसले ले सकते हैं. पहला- वो नॉर्वे पर टैरिफ बढ़ा सकते हैं, जो अभी 15 फीसदी है. दूसरा- वो ये मांग सकते हैं कि नाटो संगठन में नॉर्वे अपने योगदान को बढ़ाए वर्ना अमेरिका नॉर्वे को सुरक्षा की गारंटी नहीं देगा और तीसरा- राष्ट्रपति ट्रंप नॉर्वे को शत्रु देश यानी दुश्मन देश भी घोषित कर सकते हैं.
वहीं, नॉर्वे की सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी ने भी कहा है कि नॉर्वे को राष्ट्रपति ट्रंप के बदले के लिए तैयार रहना चाहिए. पार्टी का कहना है कि नोबेल कमेटी एक स्वतंत्र निकाय है और इस पर नॉर्वे की सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. लेकिन ये पार्टी मानती है कि राष्ट्रपति ट्रंप इस बात को नहीं समझते और वो खुद को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलने के लिए नॉर्वे की सरकार को ही जिम्मेदार मानेंगे.
द गार्डियन की ही रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई महीने में राष्ट्रपति ट्रंप ने नॉर्वे के पूर्व नाटो महासचिव और मौजूदा वित्त मंत्री को फोन किया था और उनसे ये पूछताछ की थी कि नोबेल शांति पुरस्कार की चुनाव प्रक्रिया कहां तक पहुंची है. और इसी में ये भी लिखा है कि संयुक्त राष्ट्र के अपने भाषण में राष्ट्रपति ट्रंप ने दुनिया के सात युद्ध रुकवाने का दावा किया था लेकिन इन्हें लेकर भी विवाद है और ये दावा शायद नोबेल कमिटी ने भी सही नहीं माना.
वहीं, भारत तो पहले दिन से कह रहा है कि हमारे युद्ध को रुकवाने में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं थी और राष्ट्रपति ट्रंप के दावे पर नोबेल कमिटी ने भी विश्वास नहीं किया. इस वक्त नॉर्वे की सरकार में राष्ट्रपति ट्रंप का ऐसा खौफ है कि वो सार्वजनिक रूप से ऐसे बयानों को बार-बार दोहरा रही है कि नोबेल कमिटी पूरी तरह स्वतंत्र है और सरकार का उससे कोई लेना-देना नहीं है. ये बयान इसलिए दिए जा रहे हैं ताकि अगर राष्ट्रपति ट्रंपु नाराज हों तो वो नॉर्वे की सरकार को निशाना ना बनाएं. सोचिए क्या एक शांतिदूत ऐसा होता है, जिसे एक पुरस्कार नहीं मिलने पर पूरे देश की सरकार उससे ऐसा खौफ खाए.
अब जब राष्ट्रपति ट्रंप को ये पुरस्कार नहीं मिला है तो नॉर्वे की सरकार को डर है कि राष्ट्रपति ट्रंप नॉर्वे से कच्चा तेल और गैस खरीदने वाले देशों को ऐसा करने से रोक सकते हैं और सोशल मीडिया पर राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक तो ये लिख रहे हैं कि अमेरिका को नॉर्वे पर वीजा प्रतिबंध लगा देने चाहिए. और अब कुछ लोग इस बात को भी मुद्दा बना रहे हैं कि नॉर्वे फिलिस्तीन से हमदर्दी रखता है और इसलिए राष्ट्रपति ट्रम्प को जानबूझकर ये पुरस्कार नहीं दिया गया.
असल में नॉर्वे के Sovereign Wealth Fund ने Caterpillar नाम की उस कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान किया है, जिसकी मशीनें गाजा में फ़िलिस्तीनी घरों को गिराने में इस्तेमाल होती हैं. अब इसी को राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थक मुद्दा बना रहे हैं और ये कह रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप का नोबेल शांति पुरस्कार राजनीति का शिकार हुआ है. हालांकि अमेरिका के बाकी लोगों की राय को आप देखेंगे तो आपको ये पता चलेगा कि अमेरिका के ज्यादातर लोग खुद नहीं मानते थे कि राष्ट्रपति ट्रम्प नोबेल शांति पुरस्कार के हकदार नहीं है. वॉशिंगटन और इप्सोस के सर्वे में 76 फीसदी लोगों ने कहा था कि राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलना चाहिए.
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