बिहार के मुंगेर जिले के हवेली खड़गपुर प्रखंड में स्थित दूधपनिया गांव, गंगटा पंचायत के नक्सल प्रभावित इलाके में, प्राकृतिक सुंदरता और हरे-भरे जंगलों के बीच बसा है. लेकिन इस खूबसूरत नजारे के पीछे एक दर्दनाक सच्चाई छिपी हुई है. गांव के अधिकतर लोग 40 की उम्र पार करते- करते मौत का शिकार हो जाते हैं. यहां रहने वाले ग्रामीणों की जिंदगी लगभग हर दिन धीरे-धीरे खत्म हो रही है.
56 वर्षीय विनोद बेसरा इस गांव के सबसे बुजुर्ग सदस्यों में से एक हैं. साल 2019 से बिस्तर पर पड़े, विनोद ने हर दिन अपने शरीर को कमजोर होते देखा. उन्होंने बताया कि मेरे पूरे शरीर की क्रिया धीरे-धीरे बंद हो रही है. मैंने पटना सहित कई जगह इलाज करवाया लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ. पैर में हल्की चोट के बाद मेरे दोनों पैर और कमर धीरे-धीरे काम करना बंद कर गए. डॉक्टर केवल दवा देते रहे, इससे कोई फायदा नहीं हुआ.
दूधपनिया गांव में फैली रहस्यमयी बीमारी
विनोद की सबसे बड़ी चिंता उनका परिवार था. उनकी पत्नी पूर्णी देवी (43), बेटी ललिता कुमारी (27) और बेटा फिलिप्स कुमार (19) भी धीरे-धीरे इसी बीमारी की गिरफ्त में आ रहे हैं. पूर्णी देवी का कहना है कि बेटी ललिता के शरीर की स्थिति तेजी से खराब हो रही है और 27 वर्ष की उम्र में ही वह बूढ़ी दिखाई देने लगी हैं.
वर्तमान में छह लोग, जिनमें विनोद बेसरा, कमलेश्वरी मुर्मू, छोटा दुर्गा, बड़ा दुर्गा, रेखा देवी और सूर्य नारायण मुर्मू शामिल हैं, पैर और कमर से लाचार हैं. इनमें अधिकांश की उम्र 45 से 55 वर्ष के बीच है. गांव में करीब 25 लोग धीरे-धीरे इसी बीमारी की गिरफ्त में हैं और लाठी के सहारे चल रहे हैं.
40 की उम्र के बाद मरने लगते हैं लोग
गांव के लोगों ने बताया कि बीमारी की शुरुआत 30 साल की उम्र से होती है. सबसे पहले पैरों में दर्द, फिर कमर और उसके बाद शरीर की क्रियाशीलता धीरे-धीरे बंद हो जाती है. कुछ लोग इलाज के लिए पटना तक जाते हैं लेकिन कोई सुधार नहीं होता. बीते एक साल में फुलमनी देवी (40), रमेश मुर्मू (30), मालती देवी (48), सलमा देवी (45), रंगलाल मरांडी (55) और नंदू मुर्मू (50) की मौत इसी बीमारी की वजह से हुई.
गांव के लोग मानते हैं कि समस्या सप्लाई किए गए पानी से बढ़ रही है. पहले वे पहाड़ी झरनों और कुओं का पानी पीते थे, तब यह समस्या कम थी. अब जल की गुणवत्ता और खुराक दोनों संदिग्ध हैं. संजय कुमार, गंगटा पंचायत के सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि पिछले 15 वर्षों से यह समस्या लगातार बढ़ रही है.
स्वास्थ्य विभाग में जांच शुरू की
गांव में जीवन बेहद कठिन है, यहां लोग जंगल से लकड़ी, पत्ते और झाड़ू बेचकर गुजर-बसर करते हैं. सरकार ने बिजली, पानी और सड़क उपलब्ध कराई है, लेकिन रोजगार के साधन नहीं हैं. मुख्य मार्ग और गांव को जोड़ने वाली सड़क जर्जर हो चुकी है. पानी की सप्लाई अनियमित है और लोग बड़े-बड़े बर्तनों में पानी जमा करके रखते हैं.
आज तक की रिपोर्ट के बाद, हवेेली खड़गपुर के सब-डिविजनल अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर डॉ. सुभोद कुमार ने गांव का निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि शुरुआती जांच में हड्डियों और मांसपेशियों की समस्या अधिक देखी गई. उन्होंने उच्च अधिकारियों को पत्र लिखकर डॉक्टरों की टीम भेजने और लोगों की जांच कराने की योजना बनाई. उन्होंने पीएचईडी से पानी की जांच कराने को कहा.
ग्रामीणों ने की साफ पानी और चिकित्सा की मांगी
एसडीएम राजीव रोशन ने बताया कि आज तक के माध्यम से उन्हें पहली बार इस समस्या की जानकारी मिली. उन्होंने मेडिकल टीम भेजी और पानी की जांच के निर्देश दिए. प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, बीमारी संभवतः भूजल और खनिज की कमी से जुड़ी हो सकती है.
गांव के लोग रोजगार नहीं चाहते, केवल पानी की जांच और चिकित्सा सुविधा चाहते हैं. वे चाहते हैं कि बीमारी की वास्तविक वजह का पता चले और लोग स्वस्थ जीवन जी सकें.
हड्डियों और मांसपेशियों की समस्या अधिक
दूधपनिया गांव की इस भयानक स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सरकारी योजनाओं से भी दूर, ग्रामीण कैसे जानलेवा बीमारियों के जाल में फंसे हैं. यहां जीवन 40 की उम्र के बाद सुरक्षित नहीं है और लोगों की पुकार अब सिर्फ जल परीक्षण और इलाज तक सीमित है.
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