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प्रशांत किशोर ने अपनी पहली चाल से ही महागठबंधन और NDA दोनों को उलझा दिया! – prashant kishore jan suraj party first candidate list caste politics nda mahagathbandhan ntcpkb


बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के साथ ही प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी जन सुराज ने अपने पत्ते खोल दिए हैं. जन सुराज पार्टी ने गुरुवार को अपने 51 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है. पीके ने टिकट बँटवारे में जातीय समीकरण का जिस तरह से दाँव खेला है, वह सत्ताधारी एनडीए की सियासी चिंता में डालने के साथ विपक्षी महागठबंधन की उलझन बढ़ा सकता है.

चुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर उतरे प्रशांत किशोर बिहार चुनाव में ख़ुद को तुरुप का इक्का साबित करना चाहते हैं. पीके किंगमेकर नहीं बल्कि बिहार के किंग बनने का सपना संजोए हुए हैं. विधानसभा चुनाव के लिए प्रशांत किशोर ने जिस तरह से उम्मीदवार उतारे हैं, उसके ज़रिए एनडीए और महागठबंधन दोनों के परंपरागत वोटबैंक में सेंधमारी लगाने का संदेश दे दिया है.

जन सुराज पार्टी ने सबसे ज़्यादा अति-पिछड़ी जाति (ईबीसी) और अगड़ी जाति को टिकट देकर भाजपा और जेडीयू की टेंशन बढ़ाई तो मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर क़द्दावर मुस्लिम चेहरे को उतारकर महागठबंधन के लिए परेशानी खड़ी कर दी है. इस तरह से पीके के निशाने पर बिहार में एनडीए और महागठबंधन दोनों हैं.

पीके ने किस जाति पर खेला कितना दांव?

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प्रशांत किशोर ने टिकट बंटवारे में जातीय समीकरणों का पूरा ध्यान रखा है. जन सुराज पार्टी ने 51 उम्मीदवारों की पहली सूची में सबसे ज़्यादा तवज्जो अति-पिछड़े वर्ग (ईबीसी) को दिया है. जन सुराज ने 17 टिकट अति-पिछड़ी जाति को दिया है. इसके अलावा, 11 टिकट ओबीसी जातियों को दिए हैं.

जन सुराज पार्टी ने पहली सूची में 8 मुस्लिमों को टिकट दिया है तो सात टिकट अनुसूचित जाति को सुरक्षित सीटों पर दिए हैं. इसके अलावा पीके ने 8 टिकट सवर्ण जातियों के उम्मीदवारों को दिए हैं, जिसमें भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ शामिल हैं. इस तरह से प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव में अपना सियासी दाँव चला है.

बिहार की 63 फ़ीसदी आबादी ईबीसी और ओबीसी की है, जिसके चलते पीके ने टिकट वितरण में सबसे ज़्यादा अहमियत इन दोनों वर्गों को दी है. इसके बाद अल्पसंख्यक समुदाय और फिर दलित व सवर्ण जातियों पर भरोसा जताया है.

भाजपा-जेडीयू की पीके ने बढ़ाई टेंशन?

बिहार में क़रीब 36 फ़ीसदी मतदाता ईबीसी वर्ग से हैं. 2005 से लेकर 2020 तक हुए चार विधानसभा चुनावों में सत्ता की चाबी इसी ईबीसी वर्ग के पास रही है. इस तरह क़रीब दो दशक से इसी वोटबैंक के सहारे नीतीश कुमार सत्ता के धुरी बने हुए हैं. इसके अलावा बिहार में अगड़ी जाति का 15 फ़ीसदी वोट है, जिसमें पीके ने 8 प्रत्याशी उतारे हैं. अति-पिछड़ा वर्ग और अगड़ी जाति का वोट एनडीए को एकमुश्त 2005 से मिलता आ रहा है.

जन सुराज पार्टी ने अपने 51 में से 25 टिकट अति-पिछड़ी और सवर्ण जातियों को दिए. इस तरह 50 फ़ीसदी टिकट अति-पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) और सवर्णों को देकर भाजपा और जेडीयू की उलझन बढ़ा दी है. पीके ने अपनी सूची में अति-पिछड़ा वर्ग, जो नीतीश कुमार का आधार रहा है, को सर्वाधिक 31 फ़ीसदी टिकट दिए हैं, जिसके ज़रिए माना जा रहा है कि उन्होंने एनडीए के कोर वोटबैंक में सेंधमारी का दाँव चला है.

सवर्ण जातियों (ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, कायस्थ) को भागीदारी के हिसाब से टिकटों में हिस्सेदारी दी है, लेकिन इसके ज़रिए पीके ने बिहार चुनाव में ज़बरदस्त तरीक़े से रणनीति सेट करने का दाँव चला है. बेगूसराय से सुरेंद्र सहनी को उम्मीदवार बनाना पीके की सोची-समझी रणनीति मानी जा रही है, क्योंकि इस सीट से भूमिहार कैंडिडेट लगातार जीत रहे हैं.

पीके ने निषाद प्रत्याशी को उतारकर ईबीसी वोटों को साधने का दाँव चला. भूमिहार, ब्राह्मण समाज के जो युवा जन सुराज से जुड़े हैं, वह तो पीके को वोट देंगे ही, साथ में अगर ईबीसी जुड़ता है तो गेम बदल सकता है. इसी तरह से पीके ने बाकी सीटों पर सियासी ताना-बाना देखकर दाँव चला है ताकि जीत का परचम फ़हरा सकें. पीके अगर ईबीसी और सवर्ण वोटों में सेंध लगाने में सफ़ल रहते हैं तो भाजपा और जेडीयू का खेल बिगड़ सकता है.

महागठबंधन की कैसे पीके बढ़ा रहे चिंता?

प्रशांत किशोर ने मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर क़द्दावर मुस्लिम चेहरे को उतार कर महागठबंधन की चिंता बढ़ा दी है. जन सुराज पार्टी ने अपनी पहली सूची में 8 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं. इसके अलावा, पीके ने चार यादवों को भी टिकट दिया है. यादव और मुस्लिमों को महागठबंधन का कोर वोटबैंक माना जाता है. प्रशांत किशोर ने इन दोनों समुदाय से 12 प्रत्याशी दिए हैं, जिन्हें चुन-चुन कर ऐसी सीट से उम्मीदवार बनाया है, जहाँ पर वह प्रभावी हैं.

2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने मुस्लिम वोट बैंक के मामले में महागठबंधन को सीमांचल में कड़ी चुनौती दी थी. इस बार ओवैसी की योजना सीमांचल के अलावा मुस्लिम प्रभाव वाली सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारने की है. ऐसे में प्रशांत किशोर ने पहली सूची में सीमांचल की तीन सीटों (सिकटी, अमौर और बैसी), कोसी की महिषी और मिथिलांचल की दो सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.

सीमांचल की सिकटी, अमौर और बैसी सीट पर मुस्लिम मतदाता बहुसंख्यक हैं, जबकि बेनीपट्टी, महिषी और दरभंगा में मुस्लिम 20 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हैं. ऐसे में एआईएमआईएम और जन सुराज के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने का दाँव महागठबंधन के लिए सियासी नुक़सान न साबित हो जाए.

पीके द्वारा कुर्मी, कुशवाहा और यादव समुदायों को समान संख्या में टिकट देकर जन सुराज ने नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव के वोटबैंक में सेंध लगाने की रणनीति अपनाई है. इस तरह पहली लिस्ट से जन सुराज ने एक बात साफ़ कर दी है कि वह राजनीति के पारंपरिक ढांचे को तोड़ने निकली है. ऐसे में देखना है कि पीके अपनी सियासी चाल से किसका चुनावी खेल बिगाड़ते हैं.

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