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दिल्ली-NCR में भी आया गले लगने का कारोबार, दोस्त बनने का दावा मगर ‘हैप्पी एंडिंग’ को भी तैयार! – cuddle therapy india grwing business cure loneliness ntcpmj


दिल्ली-एनसीआर! करोड़ों की आबादी. कबूतर के जोड़ों की तरह सटे-दुबके मकान कि एक के यहां छींक आए तो दूसरा घर दहल जाए. यहां से वहां तक चेहरे ही चेहरे, आवाजें ही आवाजें. लेकिन इन सबके बीच नीम पर्दा. ऐसा कि एक आंख रोए तो दूसरी आंख को खबर तक न हो. चौड़ी सड़क पर खूबसूरत मुलाकातें कम होती हैं, खूनी हादसे ज्यादा.

इसी अकेलेपन को टारगेट करते हुए कई तरह की दुकानें खुल चुकीं. ऐसी ही एक दुकान है कडल थैरेपी की. यहां कुछ घंटों से लेकर पूरे दिन के लिए साथ रहने और गले लगाने का अलग-अलग चार्ज. 
 
aajtak.in ने अंडरकवर रहते हुए नकली नाम और पेशे के साथ इन कडल थैरेपिस्ट्स से बात की. 
 
मुझे इसी वीकेंड किसी कडल थैरेपिस्ट से मिलना है. क्या आप अरेंज करवा सकेंगी? लेकिन पहले मुझे उनसे बात भी करनी है…! 
 
अरेंज तो हो जाएगा, लेकिन इस हफ्ते नहीं. हमारे सारे मेल थैरेपिस्ट प्री-बुक्ड हैं. 
 
लेकिन मुझे मेल थैरेपिस्ट नहीं, फीमेल प्रोफेनशल चाहिए. 
 
उसमें फायदा नहीं होगा. क्रॉस-जेंडर थैरेपी ज्यादा अच्छी रहेगी. मैं तो आपको यही सलाह दूंगी कि आप अगले वीकेंड के लिए बुक कर लीजिए. बाकी रही बात, तो मैं एक एक्सपर्ट को अभी कनेक्ट कर देती हूं.
 
तजुर्बे में पगी आवाज फोन रखते हुए कहती है- आप आजमाएंगी तो खुद समझ जाएंगी कि मैं ऐसा क्यों कह रही हूं. 
 
कुछ देर बाद रॉनी फोन पर था. कडल एक्सपर्ट. बात शुरू होते ही कहता है- जब आपका फोन आया, मैं वहीं था. मैंने जोर दिया कि इस लेडी को मैं ही डील करूंगा. 
 
ऐसा क्यों?

आपके साथ लॉन्ग टर्म एसोसिएशन दिख रहा है.  फोन-पार हंसती-बांधती आवाज, जो बिना ट्रेनिंग मुमकिन नहीं. 
 
रॉनी! बड़ा अलग नाम है. असल नाम क्या है आपका!

क्लाइंट यही बुलाते हैं.  सधा हुआ लेकिन सपाट जवाब. 
 

cuddle therapy (Photo: Generative AI by Vani Gupta)

रॉनी अपना सही नाम बताने को राजी नहीं. न ही मिलने से पहले वो वीडियो कॉल पर बात करेगा. हमारी नो-पिक्चर पॉलिसी है. फीमेल क्लाइंट्स यही पसंद करती हैं. और ये आपके लिए सरप्राइज भी रहेगा. 

नफीस अंग्रेजी बोलता ये शख्स क्लेम करता है कि उसने आठ साल पहले अमेरिका के टेनेसी से कडल थैरेपी सीखी थी. 
 
उतनी दूर जाकर क्यों?

वहां पहुंचा तो किसी और पढ़ाई के लिए था, लेकिन फिर इस काम के बारे में सुना. कोर्स के बाद वहीं थैरेपी देने लगा. कोविड में लौटा तो यहीं रह गया. 
 
रॉनी तीन घंटे कडलिंग के लिए 4999 रुपये चार्ज करता है. मार्केट में सबसे रीजनेबल हम ही हैं. आपने खुद भी टटोला होगा थोड़ा-बहुत.
 
रीजनेबल होने का उसका दावा बिल्कुल हवा-हवाई भी नहीं. कई जगहों पर कडलिंग का चार्ज दस हजार रुपये से शुरू होकर इससे ऊपर भी जाता है. इसमें कई सर्विसेज जुड़ी हुई हैं, जिसमें मसाज से लेकर हीलिंग टच भी शामिल है और सौना बाथ भी. 
 
आपके सेशन में क्या-क्या होगा? मेरा मतलब तीन घंटे कडल करके तो नहीं रह सकते!
 
रॉनी का जवाब अब लंबा होता है…

‘देखिए, ऐसा है कि अगर आप हमारे सेटअप में आएं तो हम इतना ही चार्ज करेंगे. शुरुआत में आइस ब्रेकिंग होगी. एक L शेप सोफा पर बैठकर हम बातें करेंगे. आप जो चाहें, मुझे बता सकती हैं. घर-परिवार-ऑफिस-बेक्रअप.अपनी फैंटेसी भी. जो बात आपने किसी से न कही हो, वो भी मुझे सुना सकती हैं. मेरा काम है जजमेंटल हुए बगैर सुनना’. 
 
‘कई बार यही सेशन इतना लंबा खिंच जाता है कि समय बीत जाता है. इसके बाद अगर क्लाइंट चाहे, और हमारा कैलेंडर इजाजत दे तो हम नेक्स्ट बुकिंग भी कर सकते हैं, या तभी के तभी नया सेशन शुरू कर सकते हैं. जैसे एक बार मेरे पास एक लेडी आई तो तीन घंटे के लिए थी लेकिन पूरा दिन ही साथ रह गई. वो अब भी आती रहती है’. 
 
उस लेडी और अपनी इक्वेशन पर कुछ बता सकेंगे क्या!

ये मैं नहीं बता सकता. कॉन्फिडेंशियलिटी रखनी होती है. लोग बहुत भरोसे से हमारे पास आते हैं. 
 
थोड़ी ना-नुकर के बाद इस प्रोफेशन का पुराना खिलाड़ी आखिर खुलने लगता है. 
 
‘वो चेन्नई से दो साल पहले ही गुड़गांव आई. किसी एमएनसी में काम करती है. यहां रहते हुए लॉन्ग डिस्टेंस टिक नहीं पाया. मुझसे मिली तो दरकी हुई थी. आइस ब्रेकिंग सेशन में उसने कहा कि वो बॉयफ्रेंड के साथ रहने को सबसे ज्यादा मिस करती है’.  
 
‘मैंने होमवर्क किया. उसे क्या पसंद है, क्या नहीं. पुराने रिश्ते में एक दिन कैसे बीतता था. क्या खाती थी. क्या करती थी. अगला वीकेंड हमने बिल्कुल उसी तरह बिताया. साथ फिल्म देखी. उसकी पसंद का खाना खाया. और बातें करते रहे. धीरे-धीरे वो मेरी रेगुलर क्लाइंट हो गई. हां, लेकिन अब तक उसे मेरा, या मुझे उसका असल नाम नहीं पता’. 
 
लेकिन मैं अगर लिखा-पढ़ी करना चाहूं! आधार कार्ड लेना चाहूं तो!

‘कोई दिक्कत नहीं. आप डॉक्युमेंटेशन चाहें तो हो जाएगा. वो आप खुद तय कर लीजिएगा. लेकिन ये काम भरोसे पर चलता है. भरोसे पर ही कोई अपने-आप को किसी अनजान के हाथों छोड़ देता है’. 
 
बहलाने या डराने के लिए इस थैरेपिस्ट को शब्दों की जरूरत नहीं. आवाज का उतार-चढ़ाव ही सब कह देता है. 

cuddle therapy (Photo: Generative AI by Vani Gupta)

आपके सेटअप में क्या-क्या होता है?

‘वो सब कुछ, जो एक बेसिक कमरे में चाहिए. एसी-साउंड सिस्टम-काउच-पानी-कॉफी. अगर कोई क्लाइंट नीचे बैठना चाहे तो उसके लिए भी इंतजाम है. अगर इससे अलग भी कुछ चाहिए तो आप पहले से रिक्वेस्ट कर सकती हैं, हम अरेंज कर लेंगे’. 
 
मैं कैसे पक्का करूं कि सब सेफ होगा! कोई रिकॉर्डिंग नहीं होगी और न ही कोई और झंझट!

‘अगर ये डर है तो आप मुझे अपने घर पर बुला सकती हैं, या फिर किसी बाहरी प्रॉपर्टी में जैसे होटल या रिजॉर्ट. आप चाहें तो मेरा फोन भी अलग रखवा लें. फिर तो कोई डर नहीं रहेगा!’ फोन-पार टीज करती हुई हंसी, जैसे कोई पुराना परिचित चिढ़ा रहा हो. 
 
किसी पॉइंट पर अगर मैं कमजोर पड़ जाऊं, ज्यादा आगे बढ़ने लगूं तो आप कैसे मैनेज करेंगे, या फिर इसका उल्टा होने लगे तो मैं क्या कर पाऊंगी! अटकते-अटकते मैं पूछ पड़ती हूं. 
 
‘मुझपर आप भरोसा कर सकती हैं. मैं वहीं तक जाऊंगा, जहां तक हामी मिले. हमें एथिकल टच प्रोटोकॉल सिखाए जाते हैं. आइस ब्रेकिंग के बाद कई सेशन होते हैं, जिसमें हम समझ जाते हैं कि क्लाइंट को क्या चाहिए’. 
 
‘कुछ वक्त हम आंखों में आंखें डालकर बैठे रहेंगे. कुछ देर हाथ पकड़ेंगे. कुछ क्लाइंट साइड हग से शुरुआत करते हैं. कई लोग सीधे स्पूनिंग पर आ जाते हैं. किसे, क्या चाहिए, ये हम थोड़ी देर में ताड़ लेते हैं. आप जिस भी तरह से कडल करना चाहें, सब कुछ वैसा ही होगा’. 
 
‘पहली बार आप कडल न भी करना चाहें तो हम सिर्फ मिलेंगे और बात करेंगे. कई क्लाइंट तो जिंदगीभर का फ्रस्टेशन निकालने के लिए ही हमसे मिलते हैं. एक बार भड़ास निकल जाए, फिर सब स्मूद हो जाता है’. 
 
सब स्मूद यानी…
 
मतलब हैप्पी एंडिंग लेकिन तभी, जब मामला दोतरफा हो. ये दो एडल्ट्स के बीच का किस्सा है. 
 
फिर भी…फर्ज करें कि मैं आपके साथ वल्नरेबल हो जाऊं तो!

‘आप क्या चाहती हैं? आपने कुछ न कुछ सोचा होगा, तभी कॉल किया होगा. हम बेसिकली कडल थैरेपिस्ट ही है. नो इंटिमेसी पॉलिसी पर चलने वाले. लेकिन इंटिमेट टच की वजह से कई बार बात आगे भी निकल सकती है’. 
 
‘अगर क्लाइंट कंफर्टेबल न हो, या हम खुद आगे न बढ़ना चाहें तो एक ब्रेक ले सकते हैं. पांच मिनट के ब्रेक में काफी अंधड़ संभल जाता है. इसके बाद भी कुछ स्पॉन्टेनियस हो जाए तो उसपर जोर नहीं. हां, इतना पक्का है कि पहल हमारी तरफ से नहीं होगी’. 
 
‘एडिशनल सिक्योरिटी के लिए आपको एक नंबर भी दिया जाएगा हमारे सेंटर का. आप वहां कॉल कर सकती हैं. फीमेल क्लाइंट्स अक्सर हमें बाहर की प्रॉपर्टी पर ही बुलाती हैं ताकि उन्हें सेफ लगे’. 
 
और ये कैसे पक्का करेंगे कि हम जिसके साथ हैं, उसे कोई बीमारी तो नहीं?

‘हां. ये एक सवाल है. अगर हम नो इंटिमेसी पर स्टिक रहे तो डर नहीं है. फिर भी कोई चाहे तो टेस्ट कराए जा सकते हैं. लेकिन चेकअप का खर्च क्लाइंट को देना होगा. लॉजिस्टिक भी उसका होगा और अपॉइंटमेंट की माथापच्ची भी’. 
 
‘कुछ ग्राउंड रूल्स हमारे भी हैं, जैसे हाइजीन. क्लाइंट को अगर स्किन की बीमारी हो या किसी भी तरह का फैलने वाला इंफेक्शन हो तो हम कडल की बजाए बातचीत ही सजेस्ट करते हैं. हमारे एग्जीक्यूटिव ‘डूज-डोन्ट्स’ भी शेयर करते हैं. हम चाहेंगे कि हमारा क्लाइंट साफ-सुथरा हो. या जिस सेटअप में वो हमें बुला रहा हो, वहां हाइजीन की दिक्कत न हो’. 
 
‘मैं खुद सफाई और कपड़ों को लेकर काफी पर्टिकुलर रहता आया हूं. बातचीत से समझ आ जाता है कि किस क्लाइंट को कैसा मूड चाहिए. हम उसी मुताबिक कपड़े पहनकर जाते हैं. चूंकि इसमें फिजिकल टच ही एक थैरेपी है तो इस पर ध्यान देना पड़ता है’.

 cuddle therapy (Photo: Generative AI by Vani Gupta)
 
बेदाग दिखते इस प्रोफेशन में कई आड़ी-तिरछी चीजें भी हैं.
 
सालों से हीलिंग टच के जरिए अकेलापन दूर कर रहा रॉनी कई बार खुद भी मुसीबत में पड़ चुका है.

वो बताता है- ‘अमेरिका में तो कडलिंग आम है. वहां लोग आमतौर पर एक-दूसरे को छूते नहीं, सिवाय प्रोफेशनल हैंड-शेक के. एक क्लाइंट आई जो लंबे वक्त से न किसी रिश्ते में थी, न ही परिवार साथ था. कडल करते ही वो हावी होने लगी. तब पता चला कि वो ट्रांसजेंडर थी और ट्रांजिशन से गुजर रही थी. मैं कंफर्टेबल नहीं था. उसे समझाया. लेकिन बात नहीं बनी. तब जैसे-तैसे मैं उसके फ्लैट से निकल सका’. इसके बाद मैंने आइस ब्रेकिंग में ही सीधे सवाल शुरू कर दिए. वहां इसे कोई बुरा नहीं मानता’. 
 
‘भारत आया तो और नए तजुर्बे हुए. यहां लोग इसे सीधे सेक्स वर्क से जोड़ देते हैं. लेकिन ये ऐसा है नहीं. हम अकेले लोगों के दोस्त बनते हैं, और उसके बदले चार्ज करते हैं.

यहां कडलिंग का विज्ञापन किया तो उल्टे-सीधे फोन आने लगे. कई बार क्लाइंट हमें कोई एड्रेस देते. हम वहां पहुंचते तो कोई मिलता ही नहीं था. हम कॉल करते तो फोन बंद बताता. या फिर क्लाइंट कह देती कि उसने अपना इरादा बदल दिया है. कई धक्के खाए, फिर तय किया कि हम बुकिंग अमाउंट पहले ही लिया करेंगे’. 
 
लगभग आधे घंटे की बात में रॉनी कई टेक्निकल टर्म्स इस्तेमाल करता है, जैसे मेमोरी रीबूट, पुश दी सेंसिटिव, ट्रॉमा हैंडलिंग और एक्सेस बार. पूछने पर वो हरेक शब्द का मतलब भी बताता है. उतनी ही तसल्ली से. और फिर उसी अंदाज में चिढ़ाता भी है- इतना इंटरव्यू तो मेरा किसी क्लाइंट ने नहीं लिया!
 
मिलने का तय करने से पहले मैं कुछ वक्त चाहती हूं. 
 
रॉनी इसपर राजी हैं. वे कहता है- आप वक्त लीजिए. चाहें तो मुझसे दोबारा भी बात कर सकती हैं. आवाज में इत्मीनान, जो शायद ट्रेनिंग से आया हो, या तजुर्बे से. या भरोसे से.
 
यहां ये बताना जरूरी है कि देश में  कोई रेगुलेटरी बॉडी नहीं, जो कडल थैरेपी को मान्यता या लाइसेंस देती हो. अगर कोई प्रोफेशनल कडलिंग ऑफर करे तो ये अक्सर होलिस्टिक थैरेपी के नाम पर होता है. इसपर कोई कानूनी निगरानी नहीं. ऐसे में यहां कई ग्रे एरिया हैं.

cuddle therapy (Photo: Generative AI by Vani Gupta)
 
पुलिस इसे सेक्स वर्क की तरह देख सकती है.

इससे बचने के लिए थैरेपिस्ट खुद के बनाए कोड ऑफ कंडक्ट और बॉउंड्री रूल्स पर काम करते हैं. वे अपना एड देते हुए साफ कर देते हैं कि वे नो इंटिमेसी पॉलिसी मानते हैं. लेकिन अगर कभी दो एडल्ट्स के बीच कंसेंट से कुछ हो जाए तो इसमें किसी का दखल नहीं. 
 
सेफ्टी प्रोटोकॉल समझने के लिए हम एक और सेंटर पर कॉल करते हैं. वहां की एग्जीक्यूटिव छूटते ही कहती हैं – ‘हमारे सेंटर पर कई और सर्विसेज चल रही हैं, जैसे हम हीलिंग सेशन देते हैं. मसाज देते हैं. कडलिंग के लिए हमारे पास एक अलग फ्लैट है. वहां ही क्लाइंट और थैरेपिस्ट मिलते हैं’. 
 
‘रही बात सेफ्टी की, तो उसकी आप फिक्र मत कीजिए. जितना डर आपको रहेगा कि शूट हो रहा है, उतना ही खतरा हमारे थैरेपिस्ट को भी रहेगा कि उसका चेहरा न दिख जाए. हमारे यहां कैमरा नहीं होता. वैसे भी इसमें कडलिंग होती है. अगर कहीं इंटिमेसी जैसा लगे तो आप ब्रेक ले सकती हैं. पांच मिनट वॉक कर लीजिए. या गहरी सांस ले लीजिए’. 
 
फोन रखते हुए एग्जीक्यूटिव कहती हैं- आप चाहें तो एक बार हमारे स्ट्रेंजर्स मीट प्रोग्राम में आ जाइए. ये अक्सर होता रहता है. यहां अनजान लोग मिलते और एक-दूसरे को कडल करते हैं. 
 
गले लगाकर सोग हरने वाली ये थैरेपी सुनने-बोलने में जितनी मासूम लगती है, उतनी है नहीं.

वेलनेस थैरेपी की आड़ में कई बार गड़बड़ियां भी हो सकती हैं. जैसे किसी शिकायत पर सेंटर पर पुलिस आ जाए और सबको एक तराजू में तौलने लगे.
 
इसके कानूनी पहलू क्या हैं, इसे समझने के लिए हमने कड़कड़डूमा कोर्ट के सीनियर एडवोकेट मनीष भदौरिया से बात की.
 
वे कहते हैं- ‘जब तक सब कुछ नियम के मुताबिक हो रहा हो, अपराध नहीं है. जैसे हमारे यहां दो वयस्कों में कंसेंट से साथ यौन रिश्ता गलत नहीं. लेकिन अगर ये पब्लिक प्लेस पर हो, ब्रोथल में हो, माइनर इनवॉल्व हों या किसी से जबर्दस्ती हो, तो ये गंभीर अपराध है. मसाज पार्लर पर छापेमारी की खबरें अक्सर आती हैं क्योंकि ये मसाज की आड़ में सेक्स वर्क कर रहे हैं’.
 
‘यह इममॉरल ट्रैफिक प्रिवेंशन एक्ट (ITP) में आता है. पैसे लेकर यौन संबंध नहीं बनाया जा सकता. जब तक कडल थैरेपी दी जा रही है, इंटिमेसी नहीं है, तब तक कोई समस्या नहीं. लेकिन इससे आगे जाएं तो केस हो सकता है. कडलिंग सेंटर पर छापा पड़े और कुछ अनैतिक लगे तो दोनों पक्षों से बात की जाएगी. अगर लड़की बयान दे कि वो तो थैरेपी के लिए आई थी, या थैरेपिस्ट थी, जिसे फंसाया गया तो लड़के और सेंटर पर केस चल सकता है. यहां लड़की का बयान ही अहम है’.

cuddle therapy (Photo: Generative AI by Vani Gupta)
 
इस बारे में हमने पुलिस अधिकारियों से भी बात करने की कोशिश की. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के एक अधिकारी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कडलिंग पर कई बातें बताते हैं.
 
‘इसे वैसे तो वेलनेस अप्रोच की तरह लिया जा रहा है, लेकिन अगर इसकी आड़ में सेक्स वर्क की खबर मिले तो हम एक्शन लेते हैं. फिर रेड भी पड़ेगी, पीड़िता की शिकायत पर FIR भी होगी और जरूरत पड़े तो उसे मुआवजा भी दिया जाएगा. नाबालिग शामिल हो तो पॉक्सो के तहत कार्रवाई होगी’.
 
तो क्या आपके पास इस तरह के मामले आ रहे हैं?

‘नहीं, कडलिंग के कवर के सहारे अवैध काम के तो नहीं, लेकिन मसाज सेंटरों के बूते सेक्स वर्क काफी हो रहा है. पुलिस की इस पर नजर भी रहती है’.
 
कडलिंग में दो वयस्क सहमति से इंटिमेट हो जाएं तब पुलिस इसे किस तरह से देखती है?

‘ये इस पर तय होता  है कि क्या यह मामला इनडिविजुअल है. अगर पीड़ित पक्ष अपना कंसेंट देते हुए दूसरे पक्ष का बचाव करे तो कोई मामला नहीं बनेगा. लेकिन अगर ऐसे मामले लगातार हो रहे हैं तो जाहिर है कि कडलिंग सेंटर को ब्रोथल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. तब निश्चित तौर पर एक्शन लिया जाता है’.
 
मनोवैज्ञानिक इस बारे में एकदम अलग राय रखते हैं.
 
एमजीएम कॉलेज इंदौर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ उज्ज्वल सरदेसाई ऐसी थैरेपी को कॉम्प्लिकेटेड मानते हैं.

वे कहते हैं- ‘ये सही है कि कडलिंग से ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन रिलीज होता है, लेकिन पैसे देकर किसी अनजान शख्स से कडल करना अकेलापन दूर करने की बजाए मुसीबतें दे सकता है’.
 
‘कुछ सेकंड्स के लिए डिप्रेशन के मरीज को गले लगाना अलग बात है, और थैरेपी के नाम पर घंटों साथ रहना अलग. ऑक्सीटोसिन तो इसमें भी निकलेगा लेकिन बात सेक्सुअल एक्टिविटी तक जा सकती है. ये लॉन्ग टर्म में कन्फ्यूजन लाएगा कि अकेलापन दूर करने के लिए यही तरीका ठीक है’.  

‘यह भी हो सकता है कि सेशन के दौरान किसी एक को, दूसरे से लगाव हो जाए. अगली बार अगर वो न मिले तो इमोशनल हेल्थ ज्यादा बिगड़ने लगेगी, बजाए बेहतर होने के’.

अकेलापन! पुराने गुस्से की तरह बार-बार जोर मारता हुआ. शहर-ए-दिल्ली इस मर्ज की भी दवा देता है. यहां ढेरों साथी मिलेंगे, जो गले भी लगाएंगे और आंसू भी पोंछेंगे- लेकिन घंटों के हिसाब से. वक्त खत्म- साथ खत्म.  ये रेफ्रिजरेटेड दोस्ती है- ठंडी और बासी. कडल थैरेपी के व्यापारी भले इसे मौसम के पहले फलों की तरह ताजा बताएं. 

—- समाप्त —-