बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने 9 अक्टूबर 2025 को एक ऐसा वादा किया है जो उनके विरोधियों के लिए किसी सदमे से कम नहीं है. उन्होंने वादा किया कि यदि तेजस्वी सरकार बनी तो हर परिवार को एक सरकारी नौकरी दी जाएगी. तेजस्वी ने कहा, एनडीए ने 20 सालों में युवाओं को नौकरी नहीं दी, हम 20 दिनों में कानून लाएंगे और 20 महीनों में इसे लागू कर देंगे.
जाहिर है कि उनके विरोधी कह रहे हैं कि बिहार के करीब ढाई करोड़ परिवारों को 20 महीने में सरकारी नौकरी देना मजाक नहीं, भद्दा मजाक है. जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर तंज कसते हुए कहते हैं कि पूरे देश में 2 करोड़ नौकरी देने का वादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरा नहीं कर पाए तो बिहार में केवल 20 महीने में साढ़े तीन करोड़ सरकारी नौकरी देना का वादा केवल मूर्खता के सिवा कुछ नहीं है. तेजस्वी यादव के इस दावे में कितना दम है आइए आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर समझते हैं.
बिहार की जनसांख्यिकी
बिहार की जनसंख्या 2025 में अनुमानित 13.10 करोड़ है. 2023 में हुए जातिगत सर्वे के अनुसार राज्य में कुल परिवारों (घरों) की संख्या लगभग 2.76 करोड़ है. इसी सर्वे के आधार पर बिहार की 1.57 प्रतिशत आबादी सरकारी नौकरी करती है. इस हिसाब से यानी करीब 20 लाख लोग सरकारी नौकरी में हैं.
हालांकि बिहार सरकार ने अभी हाल ही में जो सरकारी कर्मचारियों का डीए बढ़ाया था उसके हिसाब से राज्य में 48 लाख सरकारी कर्मचारी हैं. मान लीजिए एक नौकरी पेशा आदमी पर कम से कम डेढ़ आदमी आश्रित है तो इस तरह कुल परिवारों में 75 लाख परिवारों को नौकरी नहीं देनी होगी. यानि कि अभी भी कम से कम सवा दो करोड़ लोगों को नौकरी देनी होगी.
2025 में कुल वैकेंसी 64,559 बताई जा रही हैं, जो विभिन्न विभागों (जैसे BPSC, BSSC, पुलिस, स्वास्थ्य) में बंटी हैं. नीतीश सरकार ने दावा किया है कि 2020 से अब तक कुल 12 लाख नौकरियां दी गई हैं. तेजस्वी का 20 महीनों में 2.25 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा तो बजट, संसाधनों और प्रशासनिक क्षमता से परे है. खासतौर पर जब वर्तमान में बिहार में उपलब्ध सरकारी नौकरियां सालाना 50,000 से 1 लाख रुपए के बीच होती हैं.
नौकरी ही नहीं, सैलेरी भी तो देनी होगी
2.25 करोड़ नौकरियां (औसत वेतन 3.20 लाख/वर्ष) देने पर कम से कम 7.52 लाख करोड़ प्रति वर्ष खर्च आएगा. हालांकि सरकारी नौकरियों में औसत सैलरी सलाना 3 लाख 20 हजार से अधिक ही होती है. फिर भी यह मान लिया जाए कि कम से कम 25 हजार महीने की नौकरी भी तेजस्वी देते हैं तो इतना खर्च तो आएगा ही.
2025-26 में बिहार का कुल बजट ₹2.5 लाख करोड़ है. इससे तीन गुना खर्चीला है तेजस्वी का वादा. बिहार की GDP 10.97 लाख करोड़ रुपये है. यह खर्च GDP का 68.5% है, जो आर्थिक रूप से असंभव है. बिहार में सरकारी कर्मचारियों (लगभग 5 लाख) पर सालाना खर्च ₹50,000 करोड़ के लगभग है. 2.25 करोड़ नौकरियां मौजूदा खर्च का 150 गुना हैं. इस हिसाब से देखा जाए तो तेजस्वी यादव ने बिहार और बिहारवासियों के साथ एक भद्दा मजाक किया है.
तेजस्वी का वादा चुनाव जिताऊ जुमला बनकर उलटा न पड़ जाए
तेजस्वी का वादा बेरोजगारों के लिए लुभावना तो है, लेकिन उसका आर्थिक पक्ष बहुत कमजोर है. यह मुद्रास्फीति, कर्ज और विकास पर असर डालेगा. भर्ती प्रक्रिया (परीक्षा, साक्षात्कार, सत्यापन) में सालों लगते हैं. BPSC जैसी एजेंसियां पहले से बैकलॉग से जूझ रही हैं. 20 महीनों में इतनी भर्तियां? यह प्रशासनिक आपदा पैदा करेगी. विपक्ष इसे मूर्खतापूर्ण बता रहा है, जबकि तेजस्वी इसे ‘आर्थिक न्याय’ कहते हैं. लेकिन 2020 का वादा अधूरा रहने से युवाओं में अविश्वास है. न्यूज एजेंसी IANS-मैट्रिज के एक सर्वे के अनुसार बिहार के 61% युवा नौकरी के वादों पर भरोसा नहीं करते.
बिहार में 80% रोजगार कृषि पर निर्भर है, जो मौसमी है. निजी निवेश कम (5.7% विनिर्माण), और कौशल विकास (कुशल युवा कार्यक्रम) अपर्याप्त है. हर परिवार को सरकारी नौकरी का वादा इन मूल समस्याओं को नजरअंदाज करता है.
यह वादा युवा असंतोष को भुनाने का प्रयास है, लेकिन अव्यावहारिक होने से इसके ‘मजाक’ बन जाने का अंदेशा है. हर परिवार को नौकरी का वादा बिहार की बेरोजगारी (युवाओं में 10.8%) को हल करने की कोशिश है. बिहार को जरूरत है कौशल विकास, निजी निवेश और कृषि सुधार की न कि चुनावी स्टंट्स की. युवा मतदाता (7.4 करोड़ में 40%) को यह समझना चाहिए कि वादे सुनने से ज्यादा, कार्यान्वयन देखना चाहिए.
राहुल गांधी ने भी कोशिश की थी NYAY देने की
जिस तरह तेजस्वी हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा कर रहे हैं, ऐसा ही कुछ राहुल गांधी ने 2019 में किया था. वे तब न्यूनतम आय योजना (NYAY) लेकर आए थे, जिसमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले हर परिवार को 12 हजार रुपए महीना देने का वादा किया गया था. जानकारों ने आंकलन किया तो पता चला कि 5.4 करोड़ परिवार गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं. जिन्हें NYAY के तहत 7,77,000 करोड़ प्रति वर्ष देने होंगे. यानी, राहुल गांधी चाहते थे कि वार्षिक जीडीपी का 4.40 प्रतिशत मुफ्त बांट दिया जाए. नतीजा ये हुआ कि राहुल के वादे को लोकसभा चुनाव में अनसुना कर दिया गया.
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