उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव कृष्ण ने बुधवार को राज्य भर के सभी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मानव तस्करी विरोधी (AHT) पुलिस थानों की कार्यप्रणाली को सुदृढ़ बनाने और मानव तस्करी तथा लापता बच्चों के मामलों में त्वरित एवं प्रभावी जांच और बचाव अभियान सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं.
सभी जोनल अपर पुलिस महानिदेशकों, पुलिस आयुक्तों, रेंज महानिरीक्षकों, उप महानिरीक्षकों, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों और पुलिस अधीक्षकों को जारी निर्देशों में, डीजीपी ने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख निर्देश दिए कि एएचटी पुलिस थाने पूरी तरह से सुसज्जित हों और अपने निर्धारित उद्देश्य के लिए विशेष रूप से कार्य करें.
पीटीआई के मुताबिक, मानव तस्करी को एक वैश्विक संगठित अपराध बताते हुए, डीजीपी ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 143 के तहत, धमकी, जबरदस्ती, छल या प्रलोभन के माध्यम से शोषण से जुड़ा कोई भी कार्य, जिसमें व्यक्तियों की भर्ती, परिवहन या आश्रय देना शामिल है, तस्करी माना जाता है.
एक आधिकारिक बयान के अनुसार, उन्होंने कहा कि यौन शोषण, जबरन श्रम, अवैध गोद लेने, भीख मांगने, अंग व्यापार या नशीली दवाओं की तस्करी के लिए महिलाओं और बच्चों के मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
डीजीपी ने कहा, ‘प्रत्येक जिले में एक मानव तस्करी विरोधी इकाई (एएचटीयू) स्थापित की गई है, जिसे अब वाहनों, कंप्यूटरों, कैमरों, वायरलेस सेटों और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचों से सुसज्जित एक पूर्ण पुलिस थाने में उन्नत किया गया है.’
गृह मंत्रालय (MHA) के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए, डीजीपी कृष्णा ने निर्देश दिया कि प्रत्येक एएचटी पुलिस थाने में कम से कम एक निरीक्षक, दो उप-निरीक्षक, दो हेड कांस्टेबल और दो कांस्टेबल होने चाहिए, साथ ही मामलों के भार के आधार पर अतिरिक्त पुलिस बल भी होना चाहिए. उन्होंने कहा कि एएचटी थानों में तैनात अधिकारियों को कानून-व्यवस्था या नियमित गश्त की ड्यूटी में नहीं लगाया जाना चाहिए.
बयान के अनुसार, उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि एएचटी थानों के संसाधनों का उपयोग तस्करी से संबंधित मामलों के अलावा किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
डीजीपी कृष्णा ने आदेश दिया कि मानव तस्करी निरोधक थाने (एएचटी) में आने वाली सभी मानव तस्करी की शिकायतों को बिना किसी देरी के तुरंत प्राथमिकी (FIR) के रूप में दर्ज किया जाए, जिसके बाद तत्काल जांच और तलाशी या बचाव अभियान चलाया जाए.
उन्होंने कहा, ‘अगर किसी स्थानीय थाने में मानव तस्करी से संबंधित शिकायत प्राप्त होती है, तो प्राथमिकी वहीं दर्ज की जानी चाहिए और उसकी एक प्रति शिकायतकर्ता को दी जानी चाहिए. इसके बाद, शिकायतकर्ता को उचित सूचना देते हुए, मामला 24 घंटे के भीतर जिला एएचटी थाने को स्थानांतरित किया जाना चाहिए.’
उन्होंने निर्देश दिया कि स्थानीय थानों में दर्ज गुमशुदा व्यक्तियों के मामले, जिनमें बाद में तस्करी के साक्ष्य सामने आते हैं, उन्हें भी जिला पुलिस प्रमुख या आयुक्त के आदेश पर एएचटी थाने को स्थानांतरित किया जाना चाहिए.
राज्य पुलिस प्रमुख ने यह भी निर्देश दिया कि मानव तस्करी के पीड़ितों को संबंधित विभागों के समन्वय से उचित पुनर्वास, चिकित्सा उपचार, परामर्श, निःशुल्क कानूनी सहायता, आश्रय और मुआवजा प्रदान किया जाए.
उन्होंने एएचटी थाने के अधिकारियों से महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, श्रम, बाल कल्याण समितियों, वन स्टॉप सेंटर, चाइल्डलाइन और जिला बाल संरक्षण इकाइयों के साथ घनिष्ठ समन्वय बनाए रखने को कहा.
आवश्यकता पड़ने पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) या जिला लोक अभियोजक से कानूनी सलाह ली जानी चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि मिशन वात्सल्य योजना के तहत जिलों में 199 परामर्शदाता नियुक्त किए गए हैं – 70 जिला बाल संरक्षण इकाइयों में, 59 चाइल्डलाइन केंद्रों में और 70 वन स्टॉप सेंटरों में. महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन (WCSO) मुख्यालय हर तीन महीने में परामर्शदाताओं की सूची को अद्यतन और प्रसारित करेगा.
डीजीपी ने कहा कि आयुक्तों और जिला पुलिस प्रमुखों को मासिक अपराध बैठकों के दौरान एएचटी से संबंधित मामलों और बचाव कार्यों की समीक्षा करनी चाहिए. सभी जांचों और बचाव कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और नोडल अधिकारियों या अतिरिक्त पुलिस अधीक्षकों द्वारा मासिक रूप से निगरानी की जानी चाहिए.
पुलिस महानिदेशक ने आगे कहा, ‘यदि तस्करी का कोई मामला छह महीने से अधिक समय तक अनसुलझा रहता है, तो जांच और बचाव प्रयासों की विस्तृत तिमाही समीक्षा की जानी चाहिए. बयान के अनुसार, डीजीपी ने तस्करी कानूनों के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और एएचटी कर्मचारियों की क्षमता बढ़ाने के लिए समय-समय पर कार्यशालाओं का भी आह्वान किया.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि तलाशी या बचाव अभियान में किसी भी प्रकार की लापरवाही के लिए मामले को स्थानांतरित करने वाले स्थानीय पुलिस थाने और संबंधित एएचटी अधिकारियों दोनों की कड़ी जवाबदेही तय की जाएगी.
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