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बिहार चुनाव: NDA और महागठबंधन में सीट शेयरिंग में हो रही देरी… कहां फंसा है पेच? – bihar assembly election nda mahagathbandhan seat sharing dispute ntc


बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर एनडीए और महागठबंधन दोनों का पेच फंसा हुआ है. दोनों तरफ़ एक-एक किरदार ऐसे हैं, जो बड़े दलों की नाक में दम किए हुए हैं. हालांकि एनडीए की तरफ़ तो दो किरदार हैं- एक चिराग पासवान की पार्टी, जबकि दूसरी HAM पार्टी है. दोनों पार्टियों के सर्वे-सर्वा केंद्र में मंत्री भी हैं.

यही हाल महागठबंधन का भी है. वहां भी सीट बंटवारे को लेकर मामला फंसा हुआ है. मुकेश सहनी की पार्टी जो शुरू में 60 सीटों की मांग कर रही थी, अब 30 सीटों से कम पर चुनाव लड़ना नहीं चाहती. पिछली बार 29 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले वामपंथी दल इस बार 40 से 45 सीटों की मांग कर रहे हैं. 

पिछले चुनाव में 144 सीटों पर ताल ठोकने वाली आरजेडी 135 से नीचे नहीं जा रही है, हालांकि कांग्रेस की तरफ़ से पिछले चुनाव  के मुक़ाबले सीट कम करके 55 से 60 सीटों की मांग की गई है. फिर भी मुकेश सहनी के लिए 30 सीट निकालना काफ़ी मुश्किल लग  रहा है. इतना ही नहीं, मुकेश सहनी डिप्टी सीएम का पद भी मांग रहे हैं.

आम तौर पर बड़े दल जानबूझकर सीट बंटवारे में देरी करते हैं, ताकि उनके सहयोगी दलों पर अंत में दबाव डालकर अपने मुताबिक़ सीट दी जाएं, लेकिन इस बार ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है. इसका बड़ा कारण ये है कि इस बार केंद्र में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं है. और दूसरा प्रशांत किशोर का फैक्टर प्रेरणा स्रोत बना हुआ है, जो अपने दमखम पर 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा कर रहे हैं. 

पहले बात एनडीए की करें तो एनडीए में अभी सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है, बीजेपी और जेडीयू की बात हो चुकी है, लेकिन सीटों की संख्या अभी तय नहीं हुई है. अगर घटक दलों की बात करें तो दोनों दल इस बात पर सहमत है कि 30 से 35 सीटों को चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा में बांटा जाए.

हालांकि कैंडिडेट्स की जो लिस्ट बीजेपी ने सहयोगी दलों से मांगी थी, उसमें चिराग पासवान की LJP(R) ने 45 उम्मीदवारों की लिस्ट थमा दी. वहीं उपेंद्र कुशवाहा ने 20 तो जीतनराम मांझी ने 18 सीटों के लिए उम्मीदवारों का नाम दे दिया.

हकीकत में चिराग पासवान ने सीटों की संख्या को लेकर कोई डिमांड नहीं की है, लेकिन उनकी पार्टी मानती है कि सीटों के बंटवारे को लेकर कोई न कोई फॉर्मूला तय होना चाहिए. अगर लोकसभा के हिसाब से सीटें बांटें तो भी एक लोकसभा 6 सीटों के बराबर है. ऐसे में चिराग को 30 सीटें मिलनी ही चाहिए. उसी तरह मांझी को 6 सीट मिलनी चाहिए. ऐसे में सवाल ये है कि उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव नहीं जीते थे, तो उन्हें कितनी सीटें मिलनी चाहिए? बीजेपी और जेडीयू ने 12-12 सीटें जीतीं हैं, तो उनकी 72-72 सीटों की संख्या बनती है, लेकिन ये तर्कसंगत नहीं लगता. इस हिसाब से 180 सीटों का ही हिसाब बनता है.

वैसे हर बार बिहार में जेडीयू ज़्यादा सीटों पर चुनाव लड़ती रही है, लेकिन इस बार बीजेपी का ज़्यादा सीटों पर लड़ने का विचार है. इसके पीछे तर्क ये है कि बीजेपी पिछली बार 110 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 74 सीटें जीती थीं, जबकि जेडीयू 115 में से 43 सीटें जीत पाई थी. मतलब बीजेपी का स्ट्राइक रेट अच्छा है. हालांकि ये बात भी सही है कि पिछली बार चिराग पासवान की वजह से जेडीयू को 35 सीटों का नुकसान भी हुआ था.

जहां तक महागठबंधन का सवाल है तो कभी 60 सीटों का डिमांड करने वाली वीआईपी पार्टी कम से कम 30 सीटों पर लड़ना चाहती है, लेकिन उसे 20 से 22 सीटों से ज़्यादा मिलने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में मुकेश सहनी का रूख क्या होगा, ये देखने वाली बात है. पिछले चुनाव में वह सीटों को लेकर ही महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए में चले गए थे, लेकिन इस बार तेजस्वी यादव किसी भी क़ीमत पर ये नहीं होने देना चाहेंगे. भले ही आरजेडी के कुछ कैंडिडेट्स को वीआईपी के टिकट पर चुनाव क्यों न लड़ाना पड़े.

जहां तक दोनों गठबंधनों के सीट शेयरिंग का सवाल है, तो समय को देखते हुए इसका जल्द से जल्द निदान ढूंढना पड़ेगा. अगले 24 से 48 घंटों के बीच मामला निपट सकता है. क्योंकि आज रात दिल्ली में चिराग पासवान से बीजेपी नेताओं की बात हो सकती है. वहीं, कांग्रेस चुनाव समिति की बैठक के बाद गुरुवार को महागठबंधन भी सीटों की घोषणा कर सकता है.

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