प्यू रिसर्च सेंटर के मुताबिक, दो साल पहले अमेरिका में लगभग डेढ़ करोड़ अवैध प्रवासी थे. हालांकि डोनाल्ड ट्रंप सरकार मानती कि घुसपैठियों की आबादी इससे कहीं ज्यादा है. ट्रंप प्रशासन उनकी छंटनी करने और निकाल-बाहर करने में जुटा है. दूसरी तरफ कई राज्य इसके खिलाफ हैं. वे अवैध प्रवासियों का कागजी पक्ष नहीं ले रहे, बल्कि सड़कों पर आकर उनके लिए प्रदर्शन तक कर रहे हैं.
इन राज्यों को बाहरियों से क्या फायदा है, जो वे इसके लिए सेंटर से भिड़ने लगे?
अनुमानतः कितने अवैध प्रवासी
अवैध प्रवासियों की संख्या को लेकर अलग-अलग संस्थाएं अलग डेटा देती रहीं, लेकिन इतना तय है कि अमेरिका दशकों से तमाम देशों, खासकर युद्ध-आपदा-गरीबी झेलते देशों के लोगों का ड्रीम डेस्टिनेशन रहा. वैध संभव न हो तो लोग अवैध तरीके से यूएस पहुंचने लगे. घुसपैठ के रास्ते जोखिमभरे हैं लेकिन तब भी ड्रीम अमेरिका धुंधला नहीं रहा. पहुंचने के बाद भी कोई ठिकाना नहीं. अवैध प्रवासी होने की वजह से लोगों को पक्का काम नहीं मिल सकता, न ही वे हेल्थ से जुड़ी सुविधाएं ले सकते हैं. इसके बाद भी चाव नहीं घटा.
पहले कार्यकाल से ही ट्रंप मास डिपोर्टेशन की बात करते रहे. अब उनकी आक्रामकता और बढ़ी है. वाइट हाउस पहुंचने के बाद से तेजी से डिपोर्टेशन हो रहा है. हाल में ट्रंप प्रशासन ने दावा किया कि 2 मिलियन अवैध प्रवासी या तो बाहर निकाल दिए गए या स्वेच्छा से देश छोड़ चुके. टारगेट बड़ा है. इसे पूरा करने के लिए सरकार और सख्त हो रही है. इसी बीच तस्वीर में ऐसे राज्य आए, जहां सबसे ज्यादा अवैध प्रवासी रह रहे हैं.

क्या कहती हैं संस्थाएं
प्यू रिसर्च सेंटर ने इसी साल एक रिपोर्ट निकाली. ये कहती है कि कैलिफोर्निया अवैध प्रवासियों का गढ़ है. इसके बाद टेक्सास, फ्लोरिडा, न्यू यॉर्क, न्यू जर्सी और इलिनॉइस का नंबर आता है. ये 6 राज्य ऐसे हैं, जहां घुसपैठिए आराम से रह पाते हैं.
इस कानून ने दी सुरक्षा
कैलिफोर्निया को अवैध प्रवासियों के लिए एक सुरक्षित राज्य माना जाता रहा. इसकी वजह एक खास एक्ट है. कैलिफोर्निया सीनेट बिल 54 के तहत राज्य की एजेंसियां, सेंटर की एजेंसियों को अपने यहां छापा मारने या किसी भी ऐसे एक्शन से रोक सकती हैं, जिससे अवैध प्रवासियों को कोई खतरा हो. यहां तक कि असेंबली बिल 540 के तहत इमिग्रेंट्स यहां की यूनिवर्सिटीज में सरकारी खर्च पर पढ़ाई कर सकते हैं.
लगभग एक दशक पहले बने कानून को कैलिफोर्निया वैल्यूज एक्ट भी कहा जाने लगा. माना गया कि इस राज्य के लोग और प्रशासन बाकियों से ज्यादा संवेदनशील और मानवीय है और वो अवैध तौर पर आए लोगों को भी सुरक्षा का माहौल देना चाहता है.
इसके तहत राज्य और स्थानीय पुलिस को छूट मिल गई कि वे इमिग्रेशन मामले पर फेडरल एजेंसियों से सहयोग न करें. लेकिन अगर कोई अवैध प्रवासी गंभीर अपराध करते हुए पकड़ा जाए, या ऐसा आरोप हो, तब राज्य पुलिस के पास भी उसे खोजने और सौंपने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता.

नियम बनने के साथ ही कैलिफोर्निया की डेमोग्राफी बदलने लगी. जल्द ही देश के कई राज्यों से लोग वहां आने लगे. इसपर वॉशिंगटन ने नाराजगी भी जताई. उसका मानना है कि राज्य या स्थानीय सरकारें फेडरल लॉ को नजरअंदाज न करें. ट्रंप प्रशासन ने राज्य का फंड रोकने तक की धमकी दी. मामला अदालत तक चला गया. तब तय हुआ कि गंभीर अपराध के मामले को राज्य दबा न जाएं, बल्कि फेडरल एजेंसी को बताएं.
अकेली मानवीयता नहीं है कैलिफोर्निया की दरियादिली का राज
अवैध प्रवासी राज्य में चीप लेबर बन चुके हैं. वे खेती करते हैं. मकान-दुकान बनाते हैं. और सर्विस इंडस्ट्री में भी हैं. भारी मेहनत वाले तमाम काम वे कम कीमत पर करने को राजी हो जाते हैं ताकि राज्य से बाहर न किए जाएं. आधिकारिक वर्क परमिट न होने की वजह से वे कोई विरोध भी नहीं कर पाते. इनका जाना स्टेट की इकनॉमी पर सीधा असर डालेगा. इसलिए भी कैलिफोर्निया या इस तरह के कानून वाले सारे राज्यों के लोग ट्रंप के खिलाफ दिखने लगे हैं.
ये राज्य घुसपैठ के एकदम खिलाफ
दूसरी तरफ अलबामा और साउथ डकोटा जैसे राज्य भी हैं. यहां के लोग और प्रशासन, दोनों ही अवैध प्रवासियों के खिलाफ रहा. वे ICE की पूरी मदद करते हैं और खुद ही खोजकर बाहरियों को एजेंसी के हवाले करते रहे. इसकी तह में जाएं तो साफ दिखता है कि ये राज्य शहरी हैं, जहां खेती-किसानी जैसे काम का खास स्कोप नहीं. भारी मेहनत या जोखिमभरे काम कम होने की वजह से यहां चीप लेबर की वैसी जरूरत नहीं दिखी, जैसी कैलिफोर्निया समेत बाकी पांच राज्यों में है. यही वजह है कि यहां प्रवासी आबादी बहुत कम है.
—- समाप्त —-