कुछ राजा और शाही परिवार के लोग ऐसे थे, जिन्हें लगता था कि उनका शरीर मानव मांस के अलावा किसी और चीज से बना हुआ है. ऐसे लोग अपने शरीर को कांच से बना मानते थे. इन्हें लगता था कि इनका पूरा शरीर या शरीर के अंदर कुछ अंग कांच के बने हुए हैं. ऐसे में इनकी हरकतें अजीबोगरीब हो जाती थी. उस जमाने में इसे ‘कांच का भ्रम’ कहा गया.
हिस्ट्री एक्स्ट्रा के मुताबिक, ऐसी ही एक कहानी फ्रांसीसी शाही चिकित्सक आंद्रे डू लॉरेन्स (1558-1609) की केसबुक में दर्ज है.एक महान राजा, जो खुद को कांच से बना समझते थे. हालांकि, उन्होंने अपने केसबुक में इस रोग से पीड़ित कई शाही लोगों का उल्लेख किया है. कुछ मरीजों का मानना था कि उनका पेट कांच का है और वे बैठ नहीं सकते. एक को यकीन हो गया था कि उसकी छाती पारदर्शी है और दूसरे उसे सीधे देख सकते हैं.
फ्रांस के राजा चार्ल्स VI थे इस रोग से पीड़ित पहले शख्स
ऐसे वहम से शायद सबसे प्रसिद्ध पीड़ित फ्रांस के चार्ल्स VI (1368-1422) थे. राजा किसी को भी अपने पास आने नहीं देते थे, न ही खुद को छूने देते थे. वह विशेष रूप से मजबूत कपड़े पहनते थे ताकि उनका नाज़ुक शरीर न टूटे.
हिस्ट्री चैनल के मुताबिक, राजा चार्ल्स VI 11 वर्ष की आयु में फ्रांस की गद्दी पर बैठे थे. वह सुंदर, न्यायप्रिय और करिश्माई व्यक्तित्व वाले थे. उन्होंने 1388 में अपने भ्रष्ट शासकों से सत्ता संभालने के बाद सुधारवादी प्रयासों का नेतृत्व किया था. इन कार्यों के कारण उन्हें चार्ल्स ‘बिलवर्ड’ नाम दिया था, लेकिन 1392 में, उन्हें एक मानसिक विकार हो गया.
शरीर को टूटने से बचाने के लिए पहनते थे लोहे के कपड़े
उन्हें लगने लगा कि वह पूरी तरह से कांच के बने हैं. इसके बाद उनकी हरकतें असामान्य हो गईं. वह खुद को टूटने से बचाने के लिए घंटों तक बिना हिले-डुले मोटे कंबल में घिरे रहते थे. जब उन्हें हिलना डुलना होता था, तो वह एक विशेष वस्त्र में चलते थे. इसमें उनके कांच के अंगों की रक्षा के लिए लोहे से बनी पसलियां होती थी.
उनकी अजीब हरकतों ने उन्हें पागल करार दे दिया था
राजा की ऐसी हरकतों की वजह से उन्हें चार्ल्स ‘बिलवर्ड’ यानी चार्ल्स ‘प्रिय’से चार्ल ‘पागल’ कहा जाने लगा. मध्य युग और 17वीं शताब्दी तक ऐसे लोगों के उल्लेख मिलते हैं जो मानते थे कि उनके हृदय, पैर और सिर कांच के हैं. फ्रांस के कार्डिनल रिचेल्यू के एक संबंधी, निकोल डू प्लेसिस भी इसी भ्रम से ग्रस्त थे.
इस राजकुमारी को भी था ‘कांच का भ्रम’
ऐसी ही बीमारी 1840 के दशक के अंत में बवेरिया के राजा लुडविग प्रथम की 23 साल की बेटी राजकुमारी एलेक्जेंड्रा अमेली में देखने को मिली. एक दिन वह अपने पारिवारिक महल के गलियारों से गुजर रही थीं. उनके रिश्तेदारों ने देखा कि वह सामान्य से भी ज्यादा अजीब व्यवहार कर रही थी. एलेक्जेंड्रा अमेली दरवाजों से निकलकर गलियारे में बच-बचकर चल रही थी. वह दबे पांव चल रही थीं और ध्यान से अपने शरीर को घुमा रही थीं, ताकि कोई चीज उन्हें छू न ले.
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एलेक्जेंड्रिया को लगता था उसके पेट में कांच का पियानो है
जब उनसे परिवार के दूसरे लोगों ने पूछा कि वह क्या कर रही है, तो राजकुमारी ने बताया कि उसने अभी-अभी एक अनोखी चीत खोजी है. बचपन में, उसने पूरी तरह से कांच से बना एक विशाल पियानो निगल लिया था. अब वह उसके अंदर पूरी तरह से सुरक्षित है और किसी भी अचानक हरकत से टूट सकता है. इस राजकुमारी को भी ‘कांच का भ्रम’ था.
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19वीं सदी तक खत्म हो गया ये रोग
यह मनोवैज्ञानिक बीमारी, जिसका पहली बार मध्य युग में उल्लेख हुआ था, 19वीं सदी के अंत में लगभग लुप्त होने से पहले काफी आम हो गई थी. यह इतनी प्रसिद्ध थी कि इसका उल्लेख रेने डेसकार्टेस , डेनिस डिडेरो और विद्वान रॉबर्ट बर्टन के 1621 के चिकित्सा संग्रह, एनाटॉमी ऑफ मेलानचोली में भी मिलता है.
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