0

नीतीश कुमार क्या ममता बनर्जी की तरह भ्रष्टाचार के आरोपी साथियों को सुरक्षित बाहर निकाल पाएंगे? – nitish kumar colleagues corruption allegation bihar election prashant kishor opnm1


बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 से पहले करीब करीब वैसा ही माहौल बन गया है, जैसा 2016 में पश्चिम बंगाल में देखने को मिला था. जैसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है, तब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने भी ऐसी ही चुनौती खड़ी हो गई थी. 

चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने तो बस कुछ आंकड़े पेश कर बिहार के जेडीयू और बीजेपी नेताओं पर इल्जाम लगाया है, 2016 में तो नारदा न्यूज पोर्टल के मैथ्यू सैमुअल ने तो टीएमसी के कई नेताओं का स्टिंग ऑपरेशन कर दिया था. नारदा स्टिंग के टेप में टीएमसी के मंत्री, सांसद और विधायक की तरह दिखने वाले कई लोगों को रिश्वत लेते दिखाया गया था. 

नीतीश कुमार ने तो खामोशी अख्तियार कर रखी है, लेकिन ममता बनर्जी ने तो तब तूफान ही मचा दिया था. ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ने स्टिंग ऑपरेशन को राजनीतिक साजिश करार दिया था. ममता बनर्जी का आरोप था कि स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो बीजेपी के दफ्तर से जारी किये गए थे.

ममता बनर्जी अपने साथियों को तो अरविंद केजरीवाल की स्टाइल में ‘कट्टर ईमानदार’ बता रही थीं. बीजेपी मुद्दा बनाती रही, लेकिन ममता बनर्जी ने डंके की चोट पर अपने साथियों को चुनाव लड़ाया और जीत सुनिश्चित करने के बाद कुछ को मंत्री भी बनाया था. ये बात अलग है कि बाद मे धीरे धीरे उनमें से कई कानून की गिरफ्त में भी आते चले गए. वैसे भी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई बिल्कुल अलग होती है. राजनीतिक लड़ाई में तो ममता बनर्जी ने साथियों को बचा लिया, लेकिन कानूनी शिकंजे से वे नहीं बच पाए. बचने और बचाने की बात करें तो अरविंद केजरीवाल पूरी तरह फेल हुए. साथियों की जीत पक्की करने की कौन कहे, दिल्ली चुनाव में मनीष सिसोदिया की ही तरह अपने विधानसभा क्षेत्र में भी हार गए.

ममता बनर्जी ने तो भ्रष्टाचार के आरोपों का चुनाव पर तो असर नहीं पड़ने दिया,  लेकिन क्या बिहार विधानसभा चुनाव में भी सब कुछ वैसा ही होगा – क्या नीतीश कुमार भी अपने साथियों को भ्रष्टाचार के आरोपों से सुरक्षित बाहर निकाल पाएंगे?

नीतीश कुमार की चुनौतियां अलग हैं

नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की छवि तो एक जैसी ही है, इमानदार नेता की. बिहार के नेताओं पर भ्रष्टाचार का इल्जाम लगाने वाले प्रशांत किशोर भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार इमानदार नेता हैं. अपनी बात समझाने के लिए वो नीतीश कुमार की पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसा बताते हैं. मनमोहन सिंह की इमानदारी की दुहाई देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ‘रेनकोट पहन कर नहाने’ की संज्ञा दी थी. 

फिर भी, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी में काफी फर्क है. नीतीश कुमार बीजेपी की गठबंधन की सरकार चलाते हैं, और ममता बनर्जी उसी बीजेपी से लड़कर लगातार चुनाव जीतती आ रही हैं. नीतीश कुमार के लिए राहत की बात इतनी ही है कि बीजेपी के नेता भी प्रशांत किशोर के निशाने पर आ चुके हैं. 

सम्राट चौधरी के खिलाफ तो दूसरा ही मामला है, जबकि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अशोक चौधरी तो पहले ही हथियार डाल चुके हैं. अशोक चौधरी का कहना है कि वो कानून की जगह जनता की अदालत में जाएंगे. हो सकता है, वो अब विधानसभा चुनाव लड़ने के बारे में सोच रहे हों, क्योंकि काफी दिनों से तो वो विधान परिषद के रास्ते ही सत्ता में बने हुए हैं.

अब ये नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि अशोक चौधरी और सम्राट चौधरी सहित आरोपों के दायरे में आ चुके साथी नेताओं बचाने की कोशिश करते हैं, या बलि चढ़ा देते हैं. जिस तरह से अशोक चौधरी ने सरेंडर कर दिया है, प्रशांत किशोर की बातों को लोग और भी गंभीरता से लेंगे. 

बात सिर्फ आरोप के दायरे में आए नेताओं पर ही असर तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि प्रशांत किशोर के निशाने पर तो नीतीश कुमार ही हैं. बाकी नेता तो नीतीश कुमार को घेरने के बहाने भर हैं. तेजस्वी यादव भी नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार का पितामह तक बता चुके हैं – देखा जाए तो नीतीश कुमार की चुनौतियां ममता बनर्जी से अलग तो हैं ही. 

बिहार में भ्रष्टाचार मुद्दा बनेगा क्या?

ये तो है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भ्रष्टाचार का मुद्दा उछाल दिया गया है, लेकिन क्या ये यूं ही बना रहेगा और चुनावी मुद्दा भी बनने जा रहा है? अभी ये मुद्दा सवालों के घेरे से ही नहीं निकल पाया है. और, प्रशांत किशोर के बाद वाले बयानों को देखें तो मामला उलझा हुआ भी लगता है. 

प्रशांत किशोर को जितना आक्रामक अशोक चौधरी और सम्राट चौधरी के खिलाफ देखा गया है, उतना ही मंगल पांडेय और दिलीप जायसवाल के मामले में नहीं समझा जा रहा है. सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर लोग काफी संख्या में रिएक्ट कर रहे हैं. लेकिन, जब प्रशांत किशोर के सामने ये सवाल उठता है, तो वो पहले से ही तैयार नजर आते हैं. 

प्रशांत किशोर का कहना होता है, जब तक गलती नहीं मानोगे, तब तक किस्त जारी होता रहेगा… मंगल पांडेय मान गए, चुप हो गए, हाथ-पैर जोड़ लिए… मतलब ये नहीं है कि उनसे समझौता हो गया… फाइल किनारे रख दिया है… जन सुराज की व्यवस्था बनेगी तो वो फाइल खुलेगी… जनता ने देख लिया कि ये आदमी भ्रष्ट है, अपनी गलती मान लिया है, चुप्पी साध लिया है… दिलीप जायसवाल ने सरेंडर कर दिया है.

जन सुराज पार्टी ने सत्ता में आने पर प्रशांत किशोर ने कहा है, बिहार के 100 सबसे ज्यादा भ्रष्ट नेताओं और अफसरों की जांच कराई जाएगी, और उनकी लूटी हुई संपत्ति छीन कर सरकारी खजाने में जमा कर दी जाएगी. 

अपना स्टैंड साफ करते हुए प्रशांत किशोर ने एक कार्यक्रम में बताया, हम कोई जांच एजेंसी नहीं हैं… अशोक चौधरी ने 200 करोड़ की चोरी की है या 2000 करोड़ की है, ये हमको नहीं पता… हम उतनी जानकारी देते हैं कि इनका चेहरा नंगा हो जाए… ये मान लें, तो हम छोड़ देंगे… छोड़ इस नजरिए से देंगे कि जनता को पता चल गया… अब निर्णय जनता को करना है. 

और पूछ बैठते हैं, अभी हम चुनाव छोड़कर जांच करने लगें?

प्रशांत किशोर को अपनी रणनीति तय करने का पूरा हक है. लेकिन, भ्रष्टाचार के आरोपों का क्या होगा? प्रशांत किशोर क्या मीडिया की सुर्खियां बनने के लिए राजनीतिक विरोधियों पर आरोप लगा रहे हैं. और, जैसा अशोक चौधरी ने कदम उठाया है, उसके बाद वो चुप हो जाएंगे – फिर तो वोटिंग का वक्त आने तक लोग सब भूल चुके होंगे.
 

—- समाप्त —-