जंगल में हर तरफ सन्नाटा था… सिर्फ पत्तों की सरसराहट थी. इसी सन्नाटे को तोड़ती एक हल्की-सी चीख सुनाई दी. राहगीर ठिठक कर रुके… कान लगाए… आवाज फिर आई. गौर किया तो यह किसी मासूम के रोने की आवाज थी. वे पत्थर नवजात के ऊपर नहीं… मां की ममता और बाप की अक्ल पर रखे थे.
लोग उस आवाज की तरफ दौड़े. पत्थरों के ढेर के नीचे से जिंदगी की पुकार सुनाई दे रही थी. जब ग्रामीणों ने पत्थर हटाए, तो वहां एक नन्हा-सा बच्चा था. उसकी आंखें अभी पूरी तरह खुली भी नहीं थीं… चेहरा मिट्टी से सना हुआ… लेकिन सांसें चल रही थीं. तीन दिन का वो नवजात, जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहा था.
गांव वालों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी. धनोरा चौकी प्रभारी और उनकी टीम मौके पर पहुंची. बच्चे को गोद में उठाते ही सबकी आंखें भर आईं. किसी ने कपड़े से उसे ढका, किसी ने बोतल से दूध पिलाने की कोशिश की. फिर फौरन स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया गया. डॉक्टरों ने कहा- गनीमत है, बच्चा सुरक्षित है. लेकिन सवाल बड़ा था- आखिर किसने अपने ही बच्चे को जंगल में पत्थरों के नीचे छोड़ दिया?
पुलिस ने जांच शुरू की. सुराग मिले और फिर सामने आई वह सच्चाई, जिसने सबको हिला दिया. आरोपी कोई और नहीं, बल्कि बच्चे के अपने माता-पिता थे. जांच में सामने आया कि यह मासूम अपने ही माता-पिता द्वारा छोड़ दिया गया था.
आरोपी पिता का नाम बबलू डांडोलिया है, जो सिधौली का रहने वाला है और नांदनवाड़ी के प्राथमिक विद्यालय में सरकारी शिक्षक है. सरकारी नियमों के मुताबिक चौथे बच्चे के जन्म पर उनकी नौकरी पर असर पड़ सकता था. पुलिस ने आरोपी को पकड़कर पूछताछ की तो उसने खुलासा किया कि यह उनका चौथा बच्चा था.
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नौकरी जाने के डर से उसने पत्नी राजकुमारी डांडोलिया के साथ यह कदम उठाया. आरोपी के मुताबिक, उनके तीन बच्चे हैं- एक आठ साल का, दूसरा छह साल का और तीसरा चार साल का, जिनमें एक लड़का और दो लड़कियां हैं. चौथे बच्चे के जन्म से उन्हें डर था कि उनकी सरकारी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी. इस डर ने उन्हें इतना अंधा कर दिया कि उन्होंने अपने ही नवजात को पत्थरों के नीचे दबा दिया.
अमरवाड़ा एसडीओपी कल्याणी बरकडे ने कहा कि सूचना मिली कि रोड घाट के जंगल में नवजात शिशु मिला है. चौकी प्रभारी ने तुरंत मौके पर जाकर बच्चे को सुरक्षित किया और प्राथमिक उपचार के बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया. माता-पिता के खिलाफ केस दर्ज कर एक्शन लिया गया.
टीआई अनिल राठौर ने कहा कि शुरुआती जांच में आरोपी पिता ने जुर्म कबूल कर लिया है. नांदनवाड़ी के जंगल में बच्चे को पत्थरों के नीचे दबाने की योजना पिता ने बनाई थी. नवजात अस्पताल में है. डॉक्टरों की टीम ने कहा है कि बच्चे की स्थिति स्थिर है. उसे समाज कल्याण विभाग की निगरानी में रखा गया है. इस घटना ने लोगों को दहला दिया. मासूम की जान बच गई, लेकिन सवाल है कि कैसे माता-पिता अपने बच्चे को छोड़ सकते हैं. ग्रामीणों ने पुलिस की तत्परता की सराहना की है.
लोग हैरान थे कि जिनके कंधों पर बच्चों को शिक्षा देने की जिम्मेदारी है, वही अपने बच्चे के सबसे बड़े गुनहगार कैसे बन गए? अब बच्चा जिला अस्पताल में सुरक्षित है, वहीं आरोपी मां-बाप सलाखों के पीछे हैं. यह कहानी सिर्फ छिंदवाड़ा की नहीं, बल्कि उन तमाम सवालों की है, जो समाज से पूछती है- क्या नौकरी, क्या डर, क्या दबाव इतना बड़ा हो सकता है कि ममता का गला घोंट दे? शुक्र है कि मासूम बच गया, वरना शायद यह सच्चाई हमेशा पत्थरों के नीचे दबकर रह जाती.
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