Durga Puja 2025 : चारों तरफ दुर्गा पूजा की धूम है. ये त्योहार विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और देश के अन्य कई हिस्सों में मनाया जाता है. दुर्गा पूजा का उत्सव नवरात्र के पांचवें दिन से शुरू होकर दशमी तक चलता है. इस दौरान विभिन्न पूजा पंडालों की स्थापना की जाती है, जहां मां दुर्गा की सुंदर मूर्तियों की पूजा और सजावट की जाती है.
नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है और बुराई पर अच्छाई की विजय का जश्न मनाया जाता है. इन पूरे नौ दिन मां दुर्गा की प्रतिमा खास आकर्षण का केन्द्र होती है. मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए कहीं पांच तो कहीं दस तरह कि मिट्टी ली जाती है. आपको जानकर हैरानी होगी कि मां की प्रतिमा को बनाने के लिए वेश्यालय के आंगन की मिट्टी का प्रयोग किए जाने की भी परंपरा है. लेकिन ऐसा क्यों किया जाता है, आइए इसके पीछे की कहानी जानते हैं.
क्यों ली जाती है वेश्यालय से मिट्टी?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक वेश्या मां दुर्गा की बड़ी भक्त थी. लेकिन समाज में उसके साथ होने वाले तिरस्कार और अपमान ने उसे दुखी और हताश बना दिया था. मां दुर्गा ने उसकी सच्ची श्रद्धा और भक्ति को देखकर एक वरदान दिया. मां ने कहा कि जब तक मेरी प्रतिमा में वेश्यालय की मिट्टी शामिल नहीं की जाएगी, तब तक मैं उस मूर्ति में वास नहीं करूंगी”.
क्या हैं दूसरे कारण?
इसके अलावा, मां दुर्गा की मूर्तियों में वेश्यालय की मिट्टी के इस्तेमाल के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक धारणाएं जुड़ी हुई हैं. इनमें से एक प्रमुख मान्यता यह है कि जब कोई पुरुष किसी वेश्यालय में प्रवेश करता है, तो वह अपनी सारी पवित्रता, पुण्य और गुण उस स्थान की चौखट के बाहर छोड़ देता है. वहीं से लौटते समय वह अपने साथ पाप का बोझ लेकर आता है. इसलिए कहा जाता है कि वेश्यालय के चौखट के बाहर की मिट्टी पवित्र हो जाती है.
खासतौर से वेश्याओं के घर के बाहर की मिट्टी को अनेक पुरुषों के पुण्यों से भरी हुई माना जाता है. इसी कारण से, इस मिट्टी का इस्तेमाल मां दुर्गा की मूर्तियों में किया जाता है. इसे देवी की शक्ति और करुणा का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि मां दुर्गा पवित्रता और सच्ची भक्ति के माध्यम से किसी भी पाप और दोष को शुद्ध कर सकती हैं.
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