Dussehra 2025: बुराई पर अच्छाई का पर्व दशहरा हिंदू धर्म में बहुत ही खास और विशेष माना जाता है. इस बार दशहरा 2 अक्टूबर, गुरुवार के दिन मनाया जाएगा. दशहरा को हम विजयादशमी के नाम से भी जानते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया था, तभी से दशहरा का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
जब भी दशहरा का पर्व आने वाला होता है तो उससे पहले 9 दिन पहले जगहों जगहों पर रामलीला आयोजित की जाती है, जिसमें रामायण से जुड़े खास किस्सों और कहानियों का जिक्र किया जाता है. उन्हीं किस्सों और कहानियों में से एक है रावण का पुष्पक विमान, जिसके बारे में आज हम जानेंगे. रावण के पुष्पक विमान का जिक्र श्री रामचरितमानस के सुंदरकांड में भी किया गया है. तो चलिए जानते हैं कि रावण ने पुष्पक विमान किस्से जीता था और वह पुष्पक विमान किसने बनाया था.
किससे छीना था रावण ने पुष्पक विमान?
दोहा: जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हे।।
एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा।।
भावार्थ- यह दोहा श्रीरामचरितमानस से है, जिसका अर्थ है कि रावण ने राक्षसों को उनकी योग्यता के अनुसार घर बांटकर प्रसन्न किया था, और एक बार उसने कुबेर पर चढ़ाई करके पुष्पक विमान भी जीत लिया था.
श्री रामचरितमानस के इस प्रसंग के मुताबिक, पुष्पक विमान के स्वामी धन के देवता कुबेर थे. इन्हें यह विमान ब्रह्म देवता द्वारा हासिल हुआ था, ताकि वे देवताओं और असुरों के बीच संतुलन बनाए रख सकें. कथानुसार, जब रावण ने कठोर तपस्या करके भगवान शिव से वरदान प्राप्त किए, तो उसकी शक्ति कई गुना बढ़ गई थी. इसके बाद उसने देवताओं पर आक्रमण करना शुरू किया था. इसी दौरान उसने अपने ही भाई कुबेर को युद्ध के लिए चुनौती दी थी. जिसके बाद रावण ने लंका पर हमला कर दिया था, जहां उस समय कुबेर देवता का शासन था.
युद्ध में रावण ने कुबेर को हराकर लंका पर विजय प्राप्त की और साथ ही उसने कुबेर के पास मौजूद पुष्पक विमान भी बलपूर्वक छीन लिया था. इस तरह कुबेर से छिना गया यह विमान रावण के साम्राज्य और शक्ति का प्रतीक बन गया था. जानकारी के मुताबिक, रावण की मृत्यु के बाद भगवान श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी, इसी पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या वापिस लौटे थे.
क्या थीं पुष्पक विमान की विशेषताएं?
रामचरितमानस, रामायण और अन्य ग्रंथों के मुताबिक, पुष्पक विमान को विश्व का प्रथम विमान माना जाता है. जिसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने किया था. यह एक दिव्य विमान था, जो कि इच्छानुसार छोटा-बड़ा हो सकता था और आकाश में मनचाही गति से उड़ भी सकता था.
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