उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में पौने दो साल का समय है, लेकिन सियासी गठजोड़ और राजनीतिक समीकरण अभी से बनाए जाने लगे हैं. साढ़े तीन दशक से राज्य की सत्ता से बाहर कांग्रेस 2027 से पहले ख़ुद को मज़बूत करने और अपनी सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त करने की कवायद शुरू कर रही है. इसके लिए कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की उन जातियों को साधने का प्लान बनाया है, जिनके सहारे भाजपा (बीजेपी) अपना 14 साल का वनवास ख़त्म करने में कामयाब रही है.
कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में जातीय सम्मेलन शुरू करने का प्लान बनाया है. अक्टूबर के तीसरे हफ़्ते से कांग्रेस अलग-अलग क्षेत्रों में अति-पिछड़ी जातियों के अलग-अलग सम्मेलन करने की रूपरेखा बनाई है, ताकि अपने जाति समीकरण को मज़बूत बना सके.
कांग्रेस 15 जातियों के अलग-अलग सम्मेलन करेगी, जिसमें मौर्य, निषाद, बिंद, राजभर, कुर्मी, चौहान, प्रजापति और पाल जैसी गैर-यादव ओबीसी जातियां शामिल हैं. इसी तरह पासी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि जैसी गैर-जाटव दलित जातियों के सम्मेलन करने की योजना बनाई गई है.
कास्ट पॉलिटिक्स पर उतरी कांग्रेस
कांग्रेस लंबे समय तक जाति की राजनीति का विरोध करती रही और ख़ुद को सर्वजन की पार्टी बताती रही, लेकिन नब्बे के दशक में राम मंदिर आंदोलन और मंडल कमीशन के चलते उसका पूरा समीकरण गड़बड़ा गया. कांग्रेस के कोर वोटबैंक माने जाने वाले ब्राह्मण-ठाकुर भाजपा में चले गए, मुस्लिम सपा में और दलित बसपा के साथ हो गए. इसके अलावा जो ओबीसी की जातियाँ थीं, वे अलग-अलग पार्टियों में बंट गईं, जिसके चलते कांग्रेस सत्ता से बाहर ही नहीं बल्कि सियासी हाशिए पर पहुंच गई.
2024 के लोकसभा चुनाव में सपा के साथ मिलकर लड़ने का सियासी लाभ कांग्रेस को मिला और वह छह सीटें जीतने में सफ़ल रही. इसके बाद से कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं और उसे 2027 में अपने लिए सियासी संभावना दिख रही है. इसके चलते कांग्रेस ने अपने सियासी आधार को मज़बूत करने के लिए जाति की राजनीति के रास्ते पर चलने का फ़ैसला किया है, क्योंकि 2024 में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर सियासी लाभ मिला है. यही वजह है कि अब कांग्रेस अलग-अलग जातियों को साधने के लिए सम्मेलन शुरू कर रही है.
किन जातियों पर कांग्रेस का फ़ोकस?
उत्तर प्रदेश कांग्रेस ओबीसी के अध्यक्ष मनोज यादव ने कहा कि पार्टी इकाई अक्टूबर में जातीय सम्मेलन शुरू करेगी. अति-पिछड़ी जातियों के अलग-अलग सम्मेलन किए जाएंगे, जिसमें मौर्य, कुशवाहा, बिंद, प्रजापति, लोहार, पासी और निषाद जैसी जातियों पर ख़ास फ़ोकस होगा. उन्होंने कहा कि भाजपा उत्तर प्रदेश में आठ साल और केंद्र में 11 साल से सत्ता में है. दलित और ओबीसी की जातियों की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है, उनके परंपरागत कारोबार ख़त्म हो गए हैं. सरकार रोज़गार के लिए उनको कोई मौक़ा उपलब्ध नहीं करा सकी.
मनोज यादव कहते हैं कि रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट सरकार सार्वजनिक नहीं कर रही है. सरकार उसे पेश कर दे तो पता चल सके कि उनकी सामाजिक स्थिति क्या है और आरक्षण का लाभ कितना मिला है. भाजपा ने तमाम ओबीसी जातियों को धर्म के नाम पर बरगलाकर सिर्फ़ ठगा है. इस बात को अब दलित और ओबीसी समाज बाख़ूबी समझ रहा है. इस तरह अब उनके हक़ और इंसाफ़ की लड़ाई कांग्रेस ने लड़ने का फ़ैसला किया है. कांग्रेस ने सामाजिक न्याय की लड़ाई को लड़ने का फ़ैसला किया है.
बीजेपी के नक्शेकदम पर कांग्रेस
कांग्रेस इस बात को समझ गई है कि उत्तर प्रदेश में अगर दोबारा से खड़े होना है तो अपनी सोशल इंजीनियरिंग को दुरुस्त करना होगा. सपा के साथ गठबंधन होने के चलते कांग्रेस यादव और मुस्लिम वोटों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है, अब उसका फ़ोकस उन जातियों पर है, जो भाजपा या फिर अन्य दलों के साथ हैं. भाजपा ने 2014 में अपने सियासी समीकरण को मज़बूत करने के लिए अपने सवर्ण कोर वोटबैंक के साथ गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित जातियों पर फ़ोकस किया, जिसका लाभ भी उसे मिला.
भाजपा अपनी इस सोशल इंजीनियरिंग के ज़रिए 2014 और 2019 का लोकसभा और 2017 और 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने में सफ़ल रही है, लेकिन 2024 में सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फ़ॉर्मूला और राहुल गांधी के संविधान और आरक्षण वाले नैरेटिव के ज़रिए सेंधमारी करने में इंडिया ब्लॉक सफ़ल रहा. इसीलिए कांग्रेस ने 2027 के लिए भाजपा के जाति फ़ॉर्मूले से भाजपा को मात देने का प्लान बनाया है. कांग्रेस ने अपनी स्थिति सुधारने के लिए जातिगत समूहों तक पहुँच बनाने की रणनीति अपनाई है.
कांग्रेस की नजर इन वोटबैंक पर है
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 2027 से पहले एक तरफ़ ख़ुद को सामाजिक न्याय के चैंपियन के रूप में फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रही है, जिसके लिए अलग-अलग जातियों को अपने पाले में करने की योजना है. कांग्रेस की नज़र अति-पिछड़ी जातियों पर है, क्योंकि इनका वोटिंग पैटर्न बदलता रहता है.
यूपी में ओबीसी की आबादी 50 फीसदी से भी ज्यादा है, जिसमें यादव और कुर्मी को छोड़ देते हैं तो 30 फीसदी से ज्यादा ओबीसी कमें अतिपिछड़ी जातियां है. ये जातियां किसी एक दल के साथ मज़बूती से नहीं जुड़ी हैं. वहीं, भाजपा नेता सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना है कि कांग्रेस के पास ज़मीनी स्तर पर कोई बुनियादी ढाँचा नहीं है. उत्तर प्रदेश में उनके लिए सबसे बड़ी समस्या राहुल गांधी हैं. ऐसे में कांग्रेस राज्य में कभी उभर नहीं पाएगी.
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