अमेरिका के किसान अपने मक्का और सोयाबीन को बेचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. ये दोनों ही फसलें, टैरिफ की धौंस दिखाने वाले डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की चौधाराहट को खत्म करने का सबब बनती जा रही हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर भारत और चीन डटे रहे, तो फिर अमेरिकी सोयाबीन और मक्का को खरीदने वाला कोई नहीं मिलेगा. अगर ऐसा होता है, तो फिर राष्ट्रपति ट्रंप भी झुक जाएंगे. अमेरिकी सीनेट में भी किसानों के सामने मौजूद बाजार संकट को लेकर मुद्दा गर्मा चुका है.
ट्रंप को ऐसे झुका सकते हैं भारत-चीन!
भारतीय वकील और लेखक नवरूप सिंह का कहना है कि अमेरिका के लिए अब भारत, चीन, रूस या ब्राजील के लिए राहत देने का समय नहीं है. अमेरिका के टैरिफ अटैक के खिलाफ चीन के पलटवार से अमेरिकी निर्यात लड़खड़ा रहा है. ब्राजील भी ट्रंप टैरिफ के खिलाफ अपने रुख पर अड़ा हुआ है. नवरूप सिंह का मानना है कि टैरिफ को लेकर अपनी लिमिट जस की तस बनाए रखने से वाशिंगटन की व्यापारिक तस्वीर बिगड़ जाएगी.
नवरूप सिंह ने एक X पोस्ट शेयर करते हुए लिखा कि, ‘अमेरिकी मक्का और सोयाबीन के लिए कोई खरीदार नहीं! भारत और चीन, रूस और ब्राजील अगर डोनाल्ड ट्रंप को थोड़ा और घसीटेंगे, वह झुक जाएंगे!’ उन्होंने ये टिप्पणी दरअसल, अमेरिका में बढ़ती राजनीतिक सरगर्मी के बीच की है, क्योंकि सीनेट में नेता जॉन थ्यून ने हाल ही में साउथ डकोटा के किसानों के सामने मौजूद बाजार संकट पर प्रकाश डाला था.
अमेरिकी सीनेट में भी मुद्दा गर्माया
एनबीसी के मीट द प्रेस कार्यक्रम में बोलते हुए थ्यून ने स्वीकार किया था कि ट्रंप के टैरिफ के चलते जारी व्यापार युद्ध से हालात बिगड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि खासतौर पर चीन के जवाबी 34% टैरिफ और अमेरिकी सोयाबीन खरीद पर रोक के कारण किसानों के पास काफी फसल बची हुई है और इसे बेचने के लिए उन्हें कोई जगह नहीं मिल रही है. इसके गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं. एपी की एक हालिया रिपोर्ट में भी कहा गया है कि अमेरिका में सोयाबीन की फसल कटाई के लिए तैयार है, लेकिन किसानों को यह नहीं पता कि वे अपनी फसल कहां बेचेंगे, क्योंकि चीन ने इसकी खरीद बंद कर दी है.
आंकड़ों पर नजर डालें, तो अमेरिका के सोयबीन उत्पादकों के लिए अब तक सबसे बड़ा खरीदार चीन ही रहा है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते साल अमेरिका ने लगभग 24.5 अरब डॉलर मूल्य का सोयाबीन निर्यात किया था, जिसमें चीन ने 12.5 अरब डॉलर का अमेरिकी सोयाबीन खरीदा था.
No takers for American Corn & Soybean ! India & China along with Russia & Brazil should drag Trump a little longer ! He will fold ! pic.twitter.com/16471WNCKu
— Navroop Singh (@TheNavroopSingh) September 28, 2025
US नहीं, इन देशों से चीन की खरीद
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन कभी अमेरिकी सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक था, उसने अब अपनी खरीद ब्राजील और अर्जेंटीना से शुरू कर दी है, जो लगातार अपनी वैश्विक हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं. खास तौर पर ब्राजील को चीन के इस रुख से जबर्दस्त फायदा हुआ है, जबकि अमेरिकी सोयाबीन उत्पादकों के सामाने भारी वित्तीय संकट, गिरती कीमतों और घटते बाजार विकल्पों का बड़ा संकट खड़ा हो गया है, जो बीते कई दशकों में सबसे बड़ा है.
भारत की बात करें, तो इसे एक वैकल्पिक बाजार के रूप में पेश किया गया, लेकिन इसमें US को बहुत कम सफलता मिली है. अमेरिका द्वारा मार्केट खोलने की तमाम कोशिशों के बावजूद, भारतीय स्ट्रेटजी दृढ़ बनी हुई है. अमेरिकी मक्का और सोयाबीन पर लागू शुल्क अभी भी हाई हैं. मक्का पर 45% और सोयाबीन पर 60% तक. दरअसल, भारत आनुवंशिक रूप से संशोधित फूड प्रोडक्ट्स के आयात पर बैन लगाता है और इस कैटेगरी में ज्यादातर अमेरिकी सोयाबीन किस्में आती हैं. रिपोर्ट की मानें तो भारत सोया ऑयल और एग्रीकल्चर इंपोर्ट के लिए अमेरिका के बजाय अर्जेंटीना, ब्राजील और यूक्रेन पर बहुत हद तक निर्भर है.
अमेरिका पर उल्टा पड़ा व्यापार युद्ध!
सीमित वैश्विक विकल्पों के चलते कुछ अमेरिकी किसानों को अपनी उपज का भंडारण करने या भारी नुकसान उठाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. हालांकि, अमेरिका की ओर से प्रभावित किसानों के लिए सरकारी सहायता और राहत पैकेज पर भी चर्चा हो रही है, लेकिन व्यापक रूप से इसे संकट की गंभीरता के लिए अपर्याप्त माना जा रहा है. नवरूप सिंह की एक्स पोस्ट भी ब्रिक्स में शामिल अर्थव्यस्थाओं की एकजुटता को दर्शाती है और इस ओर इशारा करती है, कि अमेरिका द्वारा शुरू किया गया व्यापार युद्ध अब उसपर ही उल्टा पड़ गया है.
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