0

US में भारतीयों पर सख्ती, अगर पलायन बढ़ने लगा तो क्या युगांडा की तरह कमजोर पड़ जाएगा अमेरिका? – america indian mass deportation economic risk uganda idi amin indian exodus ntcpmj


डोनाल्ड ट्रंप मास डिपोर्टेशन तो करवा ही रहे हैं, साथ ही वे पक्का कर रहे हैं कि दूसरे देशों की कम से कम आबादी अमेरिका आए. भारतीयों को लेकर उनकी सख्ती कुछ ज्यादा ही है. कभी वे वर्क वीजा पर लंबी-चौड़ी फीस लगा रहे हैं, तो कभी यूनिवर्सिटी में ऐसे नियम बना रहे हैं कि पढ़ाई के बाद भारतीय स्टूडेंट लंबा न टिक सकें. इस बीच एक तबका अमेरिका की तुलना अफ्रीकी देश युगांडा से कर रहा है. कहा जा रहा है कि अगर इसी तरह स्किल्ड भारतीयों को परेशान किया जाता रहा तो जल्द ही यूएस का हाल भी युगांडा जैसा होगा. लेकिन युगांडा में ऐसा क्या हुआ था?

शुरुआत कहानी के खलनायक ईदी अमीन से

साल 1946 में ईदी ने बतौर बावर्ची किंग्स अफ्रीकन राइफल्स में काम शुरू किया. छह फीट से भी ऊंचे और बेहद कद्दावर इस शख्स को अपने डील-डौल और बर्बरता की वजह से जल्द ही प्रमोशन मिलने लगा. आखिरकार सत्तर की शुरुआत में सैन्य तख्तापलट कर ईदी ने देश की सत्ता खुद संभाल ली. 

लोगों को लगा कि अफ्रीका की मूल जनजाति से ताल्लुक रखने वाला शासक बना है तो उनके दुख-दर्द समझेगा. लेकिन हुआ उलट. जल्द ही ईदी अपने असली रूप में आ गया और अपने खिलाफ उठने वाली हर सही-गलत आवाज को दबाने लगा. ईदी को खासकर युगांडा में बसे भारतीयों और दक्षिण एशियाई लोगों से नफरत थी.

काफी सफल थे भारतीय मूल के लोग

ब्रिटिश राज के दौरान दशकों से युगांडा में बसे भारतीय अब वहां जम चुके थे. वे बेहद सफल कारोबारी थे. बहुत से लोग होटल और बैंकिंग में थे. वे देश की अर्थव्यवस्था और व्यवसाय का प्रमुख असल हिस्सा बने हुए थे, जिनसे युगांडा के स्थानीय लोगों को काम-धंधा मिलता था. इसे लेकर आम लोगों में कम, लेकिन ऊपरी लेयर में असंतोष और ईर्ष्या ज्यादा थी. 

Idi Amin Uganda (Wikipedia)
 ईदी अमीन ने अपनी क्रूरता पर परदा डालने के लिए एशियाई लोगों को निष्कासित कर दिया. (Photo- Wikipedia)

अगस्त 1972 की बात है. ईदी ने अचानक घोषणा कर दी कि देश में बसे लगभग 70 हजार भारतीयों और बाकी दक्षिण एशियाई लोगों तीन महीने के भीतर देश से जाना होगा. अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि इसके लिए उन्होंने अपने एक सपने का हवाला दिया. सपने में ऊपरवाले ने उन्हें ऐसा आदेश दिया था. ऑर्डर एकाएक आया था, इतना अचानक कि पहले तो लोगों ने इसे मजाक समझा. लेकिन फिर समझ आया कि एक-एक करके दिन बीत रहा है. 

भागते हुए लोगों को भी नहीं छोड़ा गया

ऑर्डर का सबसे क्रूर पक्ष ये था कि लोगों को अपने साथ ज्यादा से ज्यादा दो सूटकेस और कुछ पाउंड्स ले जाने की इजाजत थी. पुरखों और खुद की कमाई सारी धन-दौलत, सारी जमीन वहीं छोड़नी थीं. बहुत से लोग डिप्रेशन में आकर आत्महत्या करने लगे. जो बाकी रहे, वे भागने लगे. यहां भी ईदी और उसके सैनिकों की नफरत थमी नहीं. वे एयरपोर्ट भाग रहे लोगों को लूटने और मारपीट करने लगे. उनसे कपड़े-लत्ते तक छीन लिए गए. 

यहां से भारतीय ब्रिटेन,अमेरिका से लेकर भारत तक लौटे. नवंबर तक युगांडा भारतीयों से खाली हो गया. 

ईदी का इरादा था कि राष्ट्रहित के नाम पर मास डिपोर्टेशन करके वे जनता का ध्यान अपनी क्रूरता से हटा सकेंगे, लेकिन यहां पासा उल्टा पड़ गया. ब्रिटिशर्स के अधीन रहे इस देश के लोगों के पास न तो कोई आधुनिक स्किल थी, न कारोबारी तजुर्बा. युगांडा में लंबे समय से रहते भारतीयों ने वहां व्यापार, बैंकिंग, टेक्सटाइल, होटल और छोटे उद्योग खड़े किए थे. स्थानीय लोगों को रोजगार मिला था. वो सब ठप पड़ गया, वो भी कुछ ही दिनों के भीतर. भारतीयों का कोई विकल्प जल्दी तैयार नहीं हो सका. 

पिछले साल युगांडा के राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने ईदी अमीन के दौर में भारतीयों को देश-निकाला देने को बड़ी भूल बताते हुए माफी मांगी. काफी सारे भारतीय बाद में वापस भी लौटे और अब दोबारा मजबूत हो चुके हैं. 

donald trump (Photo- AP)
डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर टैरिफ बढ़ाने के बाद वीजा पर भी नया आदेश दे दिया. (Photo- AP)

अब बात आती है अमेरिका की

ट्रंप फिलहाल वही कर रहे हैं, जो किसी वक्त पर ईदी ने किया था. वे भारतीयों पर भड़के दिखते हैं. वन-साइज-फिट्स-ऑल की तर्ज पर वे मेहनतकश इंडियन्स को भी परेशान कर रहे हैं. यही वजह है कि अंदेशा जताया जा रहा है कि शायद अमेरिकी इकनॉमी का भी वही हाल हो, जो कंपाला का हुआ था. 

वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के अनुसार, यूएस में फिलहाल 50 लाख से ज्यादा भारतीय हैं, जो उन्हें वहां का सबसे बड़ा एशियाई समुदाय बनाती है. बड़ी टेक कंपनियों से लेकर हेल्थ, होटल और बैंकिंग में भी भारतीयों का नाम है. पांच साल पहले हुई अमेरिकी जनगणना के मुताबिक, देश में प्रति व्यक्ति सालाना औसत कमाई 64 हजार डॉलर है, जबकि भारतीय अमेरिकियों की कमाई इससे लगभग दोगुनी है. कई भारतीय मूल के सीईओ हैं, जिनके जरिए लाखों अमेरिकियों को रोजगार मिलता है. 

भारतीयों की बड़ी आबादी यूएस छोड़ दे तो क्या होगा

अमेरिकी इकनॉमी काफी हद तक एक्सपर्ट्स और हाई-स्किल्ड लोगों पर टिकी हुई है. अगर बड़ी संख्या में भारतीय पलायन कर जाएं तो संस्थानों में काम की कमी तुरंत दिखने लगेगी. अमेरिकी सिस्टम में ऐसी अचानक भरपाई के लिए कोई बंदोबस्त है, ऐसा फिलहाल तो सुनाई नहीं देता. दूसरे देशों के लोगों को, या अपने ही लोगों को पहले तैयार करना होगा. इस काम में भारी एनर्जी, रिसोर्स और समय लगेगा. इस दौरान जो नुकसान होगा, वो अलग. 

भारतीय आबादी के आने के खिलाफ रहा तबका मानता है कि उनकी वजह से अमेरिकी लोगों का काम छिन रहा है. जबकि ऐसा नहीं है. डेटा और रिपोर्ट बताते हैं कि भारतीय पेशेवर अक्सर हाई-स्किल्ड लेबर में हैं, जहां अमेरिकियों की संख्या कम है. ऐसे में उनका काम कम से कम भारतीयों की मौजूदगी की वजह से नहीं छिना. 

—- समाप्त —-