डोनाल्ड ट्रंप ने अब H-1B वीजा पर तगड़ा चार्ज लगाकर दुनिया का एक बार फिर चौंका दिया है. खासकर IT सेक्टर के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति के 1 लाख डॉलर एच-1बी वीजा फीस का नियम एक बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है. भारत के लिए भी यह एक बड़े झटके जैसा है. भारतीय इंजीनियर्स और आईटी एक्सपर्ट के बीच इस नियम को लेकर काफी भ्रम पैदा फैला है.
H-1B वीजा के इस नियम को लेकर कई गलत जानकारियां भी सामने आई हैं. ऐसे में आइए समझते हैं कि आखिर ट्रंप की H-1B वीजा फीस वाली ये पॉलिसी है क्या और इसका असर किसपर ज्यादा होगा?
H-1B वीजा क्या है?
एच-1बी एक अमेरिकी गैर-निवासी वीजा है, जो अमेरिकी कंपनियों को टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, फाइनेंस और एजुकेशन जैसे खास सेक्टर्स में विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति देता है. ज्यादातर एच-1बी धारक Infosys, TCS, Google, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट या मेटा जैसी कंपनियों में अक्सर सॉफ्टवेयर डेवलपर, इंजीनियर या विश्लेषक के रूप में काम करते हैं.
नया 1 लाख डॉलर का नियम क्या है?
21 सितंबर, 2025 से प्रभावी अमेरिकी कंपनियों को किसी विदेशी कर्मचारी की एंट्री या दोबार से एंट्री के लिए प्रत्येक एच-1बी आवेदन पर 1 लाख डॉलर (करीब 88.10 लाख रुपये) का भुगतान करना होगा. यह नियम इस बात पर ध्यान दिए बिना लागू होता है कि कर्मचारी पहली बार आ रहा है, यात्रा के बाद लौट रहा है या कंपनी बदल रहा है. कर्मचारियों को तब तक अमेरिका में वापस आने की अनुमति नहीं दी जा सकती जब तक कि उनकी कंपनी शुल्क का भुगतान नहीं कर देती.
क्या यह कानून है या सिर्फ एक प्रस्ताव?
राष्ट्रपति की घोषणा के साथ ही इसे पहले ही कानून बना दिया गया है. यह कोई विधेयक नहीं है, यह एक एक्टिव अमेरिकी पॉलिसी है, जब तक कि कांग्रेस या नए प्रशासन द्वारा इसे रद्द या संशोधित न कर दिया जाए.
क्या $100,000 शुल्क एकमुश्त या वार्षिक शुल्क है?
ट्रंप के ऐलान में इसे भुगतान कहा गया है. सालाना या एकमुश्त का जिक्र नहीं है. इसका मतलब है कि यह हर नई एंट्री और दोबारा से अमेरिका में एंट्री करने वाले एच-वनबी वीजा होल्डर्स पर लागू होता है. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि यात्रा न करने वाले मौजूदा कर्मचारियों के लिए यह शुल्क हर साल देय है या नहीं. यह भी स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका में रहते हुए कोई नौकरी बदलता है तो उसपर लागू होगा या नहीं?
अगर कोई कर्मचारी अमेरिका से बाहर यात्रा करता है तो क्या होगा?
अगर कोई H-1B कर्मचारी 21 सितंबर के बाद देश छोड़ता है, तो वह तब तक वापस नहीं लौट सकता जब तक कि उसकी कंपनी उसे 100,000 डॉलर का अतिरिक्त भुगतान नहीं कर देती, जिसे अधिकांश कंपनियां बहुत से कर्मचारियों के लिए देने से इनकार कर देती हैं. यही कारण है कि माइक्रोसॉफ्ट और अन्य टेक कंपनियों ने कर्मचारियों से अपनी यात्रा योजना को रद्द करने का आदेश दिया है.
कंपनियां किसके लिए चुकाएंगी ये रकम?
केवल सबसे उच्च-कुशल, सीनियर, या प्रोजेक्ट्स से जुड़े महत्वपूर्ण कर्मचारी के लिए, चाहे वह एंट्री लेवल और मिड-लेवल के कर्मचारी हों. यह ज्यादातर कर्मचारियों के लिए एक बड़ा संकट जैसा होगा.
H-4 आश्रितों (जीवनसाथी और बच्चों) के बारे में क्या?
घोषणापत्र में एच-4 आश्रितों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है, लेकिन कंपनियां परिवारों को सलाह दे रही हैं कि वे अमेरिका में ही रहें या अगर वे विदेश में हैं तो तुरंत लौट आएं. चिंता यह है कि आश्रितों पर उनके प्रायोजक की स्थिति का भी इनडायरेक्ट तौर पर असर पड़ सकता है.
अगर कोई H-1B कर्मचारी अपनी नौकरी खो दे तो क्या होगा?
60 दिन की छूट अवधि अभी भी लागू है, जिसके दौरान कोई कर्मचारी नई कंपनी ढूंढ सकता है, किसी अन्य वीजा पर स्विच कर सकता है, या अमेरिका छोड़ सकता है. हालांकि किसी भी नई कंपनी को 100,000 डॉलर का शुल्क देना होगा, जो नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों, खासकर जूनियर कर्मचारियों को काम पर रखने में एक बड़ी बाधा है.
क्या यह H-1B कर्मचारियों के लिए ग्रीन कार्ड का अंत है?
आधिकारिक तौर पर तो नहीं, लेकिन संभावनाएं कम होती जा रही हैं. PERM श्रम की जांच-पड़ताल बढ़ती जा रही है और ग्रीन कार्ड के लिए कतारें पहले से ही सालों लंबी हैं, ऐसे में स्थायी निवास का रास्ता अब और अनिश्चित होता जा रहा है.
‘प्रोजेक्ट फायरवॉल’ क्या है?
यह अमेरिकी श्रम विभाग की ओर से शुरू किया गया एक नया अभियान है. इसके तहत H-1B वीजा के दुरुप्रयोग करने वाली कंपनियों को रोकना और दंडित करना है. संदिग्ध याचिकाओं का ऑडिट करना, यूएससीआईएस, डीओजे, ईईओसी और अन्य एजेंसियों के बीच डेटा शेयर करना, बकाया वेतन दंड, जुर्माना लागू करना है.
अमेरिका ऐसा क्यों कर रहा है?
ट्रंप का कहना है कि H-1B वीजा का इस्तेमाल अमेरिकी वेतन में कटौती के लिए किया गया है. नियोक्ताओं को पहले अमेरिकी श्रमिकों को नियुक्त करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए. नए नियमों में केवल सबसे कुशल को ही अनुमति दी जानी चाहिए.
सबसे अधिक प्रभावित कौन है?
भारतीय तकनीकी पेशेवर, जो एच-1बी वीजा धारकों का 70% से अधिक हिस्सा हैं. इंफोसिस, टीसीएस, कॉग्निजेंट, विप्रो, एचसीएल, टेक महिंद्रा जैसी भारतीय आईटी दिग्गज कंपनियां इससे ज्यादा प्रभावित होंगी. यहां तक कि गूगल, मेटा और माइक्रोसॉफ्ट जैसी अमेरिकी आईटी कंपनियां भी कर्मचारियों की भर्ती पर विचार कर सकती हैं.
क्या इस नियम को उलटा या संशोधित किया जा सकता है?
हां. इस नियम में एक प्रावधान शामिल है जिसके अनुसार अगली H-1B लॉटरी के 30 दिन के भीतर समीक्षा अनिवार्य है.
क्या आगे भी ये नियम रहेगा?
श्रम सचिव और अन्य अधिकारी राष्ट्रपति को नियम जारी रखने, इसे संशोधित करने या फिर इसे निरस्त करने की अपील कर सकते हैं. लेकिन जब तक स्पष्ट रूप से इसे वापस नहीं लिया जाता, 21 सितम्बर से 100,000 डॉलर की आवश्यकता लागू रहेगी.
—- समाप्त —-