हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए पितृपक्ष का खास महत्व है. इन 16 दिन लोग अलग-अलग तिथियों के अनुसार अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस तिथि को किसी की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है. इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि गुरुवार को पड़ रही है. इस दिन द्वादशी श्राद्ध होगा.
द्वादशी तिथि का श्राद्ध
द्रिक पंचांग के मुताबिक द्वादशी तिथि 17 सितंबर की रात 11 बजकर 39 मिनट से शुरू होकर 18 सितंबर की सुबह 11 बजकर 24 मिनट तक रहेगी. इसके बाद त्रयोदशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी. इसी अनुसार, द्वादशी श्राद्ध का श्राद्ध 18 सितंबर, यानी आज किया जाएगा.
शुभ मुहूर्त
कुतुप मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 50 मिनट से लेकर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगा.
रौहिण- दोपहर 12 बजकर 39 मिनट से लेकर 01 बजकर 28 मिनट तक रहेगा.
अपराह्न- दोपहर 01 बजकर 28 मिनट से लेकर 03 बजकर 55 मिनट तक रहेगा.
द्वादशी श्राद्ध का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, द्वादशी तिथि पर उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन किसी भी माह के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर हुआ हो. या फिर जिन्होंने संन्यास या वैराग्य जीवन का संकल्प ले रखा हो. इसलिए इसे संन्यासी श्राद्ध भी कहा जाता है. इस श्राद्ध से व्यक्ति को आरोग्य, समृद्धि, लंबी आयु और विजय प्राप्त होती है.
श्राद्ध और तर्पण की विधि
इस दिन सुबह घर को पहले गंगाजल और गौमूत्र से शुद्ध करें. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तर्पण करें. आंगन में रंगोली बनाएं और पितरों के लिए सात्विक भोजन तैयार करें. सबसे पहले ब्राह्मणों को आमंत्रित कर भोजन कराएं, फिर उन्हें दक्षिणा और दान दें. श्राद्ध में विशेष रूप से तिल, सफेद फूल, दूध, शहद, गंगाजल, सफेद वस्त्र और गौ-दान का महत्व बताया गया है.
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