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क्या वाकई कुछ लड़कियों को पीरियड क्रैम्प्स ज्यादा होते हैं? रिसर्च में सामने आई एकदम अलग सच्चाई  – Girls periods menstruation uterus bleeding pain pills medicine doctor research ntcpmm


पीरियड्स यानी मासिक धर्म का दर्द जिसे मेडिकल भाषा में डिस्मेनोरिया (Dysmenorrhea) कहा जाता है. ये दर्द दुनिया की लाखों महिलाओं के लिए हर महीने एक चुनौती बनकर आता है. कुछ को जहां हल्के क्रैम्प्स होते हैं, लेकिन कुछ लड़कियों और महिलाओं के लिए यह इतना तेज होता है कि स्कूल-कॉलेज तक जाना मुश्किल हो जाता है, वर्क‍िंग हैं तो उनका कामकाज प्रभावित होता है. यही नहीं इसका मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है.

अब तक माना जाता था कि यह दर्द मुख्य रूप से प्रॉस्टाग्लैंडिन्स नामक रसायनों की वजह से होता है लेकिन लेटेस्ट रिसर्च बता रही है कि असल कहानी इससे कहीं ज्यादा जटिल है. नए बायोमार्कर्स, हार्मोनल बदलाव और व्यक्तिगत जैविक अंतर इसके पीछे छिपे हैं.

क्यों होती है पीरियड क्रैम्प्स?

गर्भाशय की परत (एंडोमेट्रियम) हर महीने टूटकर बाहर निकलती है. इस प्रक्रिया में प्रॉस्टाग्लैंडिन्स रिलीज होते हैं, जो गर्भाशय की मांसपेशियों को सिकोड़ते हैं. सिकुड़न और रक्त वाहिकाओं के संकुचन से ऑक्सीजन की कमी होती है और यही दर्द और ऐंठन की वजह बनती है.

नई खोज ने बताया दूसरा पहलू

साल 2025 में Molecular Pain जर्नल में छपी एक रिसर्च बताती है कि मासिक धर्म के दौरान निकलने वाले फ्लूइड (menstrual effluent) में 12-HETE और Platelet Activating Factor (PAF) जैसे और भी अणु पाए जाते हैं. ये भी दर्द और सूजन में अहम भूमिका निभाते हैं, खासकर उन महिलाओं में जिन पर सामान्य दर्दनिवारक (NSAIDs) काम नहीं करते.

हार्मोनल और जेनेटिक फर्क का भी रोल

जिन लड़कियों के शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव ज्यादा होता है, उनमें क्रैम्प्स ज्यादा तीव्र हो सकते हैं. परिवार में अगर मां या बहनों को पीरियड्स का ज्यादा दर्द होता है तो अगली पीढ़ी में भी इसकी संभावना बढ़ जाती है. वहीं एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रॉयड या एडेनोमायोसिस जैसी बीमारियां भी इसकी वजह होती हैं. यही नहीं जीवनशैली से जुड़ी समस्याएं जैसे तनाव, नींद की कमी, असंतुलित आहार भी इस दर्द को बढ़ाते हैं. विटामिन D और B12 की कमी का भी इसमें रोल है.

क्यों कुछ लड़कियों को ज्यादा होता है दर्द?

नई रिसर्च कहती है कि हर महिला का शरीर अलग तरह से बायोकेमिकल रिएक्शन करता है. किसी में प्रॉस्टाग्लैंडिन्स ज्यादा बनते हैं, किसी में 12-HETE और PAF जैसे अणु हावी हो जाते हैं. यही वजह है कि एक ही दवा से किसी को आराम मिलता है और किसी को बिल्कुल फायदा नहीं होता.

सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज आगरा की सीनियर प्रोफेसर स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ निध‍ि ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि हम अब जानते हैं कि सभी महिलाओं का दर्द एक जैसा नहीं होता. कुछ मामलों में साधारण पेनकिलर काम करते हैं, लेकिन जिन पर असर नहीं होता, उनके शरीर में दूसरे सूजनकारक अणु ज्यादा एक्टिव होते हैं. इसलिए फ्यूचर में ‘पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट’ यानी हर महिला की बॉडी प्रोफाइल के हिसाब से इलाज करना संभव होगा.

हर महीने दवा खाना कितना सही है?

NSAIDs (जैसे मेफेनामिक एसिड, इबुप्रोफेन) ये प्रॉस्टाग्लैंडिन्स को कम करते हैं और ज्यादातर लड़कियों में असरदार रहते हैं. लेकिन इनके लंबे इस्तेमाल से पेट में जलन, गैस्ट्रिक अल्सर या किडनी पर असर हो सकता है. वहीं अगर हार्मोनल पिल्स लेते हैं तो ये ओव्यूलेशन रोककर प्रॉस्टाग्लैंडिन्स का स्तर कम कर देती हैं. लंबे समय तक लेने पर ये सुरक्षित मानी जाती हैं, लेकिन इन्हें मेडिकल सुपरविजन में लेना चाहिए.

ये हैं नई थैरेपीज

रिसर्च में Photodynamic therapy (PDT) जैसे नॉन-हार्मोनल विकल्प सामने आ रहे हैं. ये अभी एक्सपेरिमेंटल स्टेज में हैं. स्त्री व प्रसूति रोग व‍िशेषज्ञ डॉ. श‍िखा दीक्ष‍ित कहती हैं कि जरूरी नहीं कि हर बार दवा ही खानी पड़े. हल्के से मध्यम दर्द में गर्म पानी की बोतल, हल्का व्यायाम, योग, या कैफीन कम करना भी असर दिखाते हैं. लेकिन अगर दर्द इतना तेज़ है कि कामकाज रुक जाए, तो डॉक्टर से कंसल्ट कर दवा लेना बिल्कुल सही है.

क्या करें

पीरियड्स के दिनों में हल्का व्यायाम और स्ट्रेचिंग करें, इससे रक्त प्रवाह बेहतर होता है.
गर्म सिकाई (Hot compress) सबसे आसान और असरदार उपाय है.
आहार में विटामिन D, विटामिन B12 और आयरन से भरपूर चीजें शामिल करें.
दर्द अगर हर महीने कामकाज रोक देता है तो गायनेकोलॉजिस्ट से ज़रूर मिलें.

क्या न करें

खाली पेट दवा न लें, इससे एसिडिटी और अल्सर का खतरा बढ़ता है.
बार-बार सेल्फ-मेडिकेशन न करें. हर दर्द को साधारण न समझें, ये एंडोमेट्रियोसिस जैसी गंभीर बीमारी का लक्षण भी हो सकता है.
ज्यादा कैफीन, जंक फूड और नींद की कमी दर्द को बढ़ा सकते हैं.

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