भारत विविधताओं का देश है. हर शहर की अपनी एक कहानी है. मगर इन शहरों में एक चीज कॉमन है और वो है अपना ई-रिक्शा. जयपुर की गेरुआ रंग में रंगी गलियों से लेकर नवाबों के शहर लखनऊ के हजरतगंज तक, या फिर साउथ का ही कोई शहर ले लीजिए. इतना ही नहीं, पहाड़ों की रानी मसूरी में भी आपको हर जगह मिल जाएगा तीन पहिए वाला ये शानदार सवारी.
जिस तरह आकाश, पानी, बादल के कई नाम हैं, वैसे ही ई-रिक्शा के भी कई नाम हैं. कहीं टिर्री तो कहीं बैट्री रिक्शा, टोटो, इलेक्ट्रिक रिक्शा, टमटम, मयूरी, मिनी मेट्रो नाम से जाना जाता है. इस विविधता में एकता का प्रतीक है बैट्र्री रिक्शा.
भारत में ई-रिक्शा की शुरुआत करने वाले प्रोफेसर अनिल के राजवंशी (साल 2022 में पद्म श्री से सम्मानित) ने भी शायद ही सोचा होगा कि उनकी ये खोज हर आम इंसान की सवारी बनकर उसे मंजिल पर पहुंचाने का जरिया बन जाएगा. भले ही आज सड़कों पर ई-रिक्शा की वजह से ट्रैफिक में मुश्किल हो रही हो, लेकिन ये बात मानने में कहीं भी गुरेज नहीं करना चाहिए कि इस देश में नेता, बड़े-बड़े उद्योगपतियों के बाद अगर किसी ने तरक्की की है तो वो ई-रिक्शा है.
हर जगह कर लिया कब्जा
ई-रिक्शा के लिए कहा जाता है कि उसने जहां देखा, वहीं अपना विस्तार कर लिया. साल 2015 से भारत की सड़कों का अहम साथी बने ई-रिक्शा ने जितनी तरक्की की है, वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है. सिर्फ पांच सवारियों को कुछ किलोमीटर तक पहुंचाने के उद्देश्य से सड़कों पर आया ई-रिक्शा आज देश के बड़े-बड़े शहरों की चमचमाती सड़कों से लेकर छोटे शहरों की तंग गलियों तक लोगों को सफर करा रहा है और वो भी सस्ते दामों पर.
पहले सवारी को छोड़ना शुरू किया, फिर लोडिंग वाहन के तौर पर भी इसका इस्तेमाल होने लगा. अब तो भाईसाब ATM, एंबुलेंस, खेती में काम करने वाले मिनी ट्रैक्टर, तोड़फोड़ मचाने वाली जेसीबी, रथयात्रा ना जाने कहां कहां ई-रिक्शा का इस्तेमाल हो रहा है. इतना ही नहीं, रायपुर पुलिस ने तो अब पुलिस महकमे में भी इज्जत से ई-रिक्शा को शामिल कर लिया है. अब पुलिस भी टिर्री से गश्त करेगी और ट्रैफिक सुधारेगी.
सिर्फ पुलिस जैसी इमरजेंसी सर्विस में ही नहीं, अस्पताल में भी अब टिर्री पहुंच चुकी है. सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो वायरल हैं, जिनमें दिखाया जाता है कि एंबुलेंस जैसी सर्विस के लिए भी टिर्री को चुना गया है.
इमरजेंसी सर्विस ही नहीं, कई तरह की सर्विस में अब ई-रिक्शा का दबदबा है. यहां तक ATM जैसे सेटअप भी अब ई-रिक्शा में लगाए जा रहे हैं.
जो ई-रिक्शा पहले सिर्फ सवारी ले जाने के काम में आ रहा था, वो रिक्शा अब दूसरे हेवी वाहनों का काम भी करने लगा है. यहां तक कि ट्रैक्टर, बुलडोजर का काम भी अब ई-रिक्शा से लिया जा रहा है. यकीन नहीं है तो आप खुद नीचे देख लीजिए…
इतना ही नहीं अब अपना ई-रिक्शा सिर्फ सवारी नहीं ढोता, बल्कि इसने तो बड़ी-बड़ी बसों को भी टक्कर देना शुरू कर दिया है. कई जगह, पीले रंग की स्कूल बसें अब गायब हो गई हैं और उनकी जगह नन्हीं-मुन्नी सवारियों को स्कूल लाने ले जाने का जिम्मा ‘टिर्री’ ने उठा लिया है. इस छोटे से चैंपियन ने डीजे की दुनिया में भी धूम मचा दी है! अब शादी-ब्याह और पार्टियों में ‘डीजे वाले बाबू’ को ई-रिक्शा पर ही बिठाकर लाया जाता है. यानी, सवारी से लेकर नाच-गाने तक… इस तीन पहिए वाली सवारी ने हर जगह अपना जलवा बिखेर दिया है.
वैसे ये लिस्ट बहुत लंबी है, जिसमें देखने को मिलता है कि ई-रिक्शा ने किन- किन गाड़ियों के काम को टेकओवर कर लिया है. अब कई दुकानें भी ई-रिक्शा में लगाई जा रही हैं. यहां तक कि खेती में भी इसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
इन तस्वीरों को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ई-रिक्शा ने कितनी तरक्की कर ली है. वैसे जब हमने ई-रिक्शा चलाने वाले चालकों से बात की थी तो उन्होंने बताया था कि वो एक दिन में 2500 रुपये तक आराम से कमा लेते हैं. यानी महीने का 60-70 हजार रुपये तो कहीं नहीं गया.
ऐसे में अब इस बात को भी वजन मिल जाता है कि ई-रिक्शा खरीदना भी कोई घाटे का सौदा नहीं है. ई-रिक्शा की तरक्की देखकर अब लगता है कि दूसरी गाड़ियां भी आपस में बात करती होंगी और कहती होंगी अगले जन्म मोहे टिर्री ही कीजो.
(खबर में इस्तेमाल की गईं तस्वीरें इंस्टाग्राम पर वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट हैं.)
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