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‘देख रहा है विनोद…’ पंचायत वाले बनराकस ने बिहार में जिसको भी दिया वोट वो कभी नहीं जीत पाया चुनाव – panchayat web series actor durgesh kumar reaction on bihar election lclk


‘देख रहा है विनोद, कैसे अंग्रेजी बोल कर गोल-गोल घुमाया जा रहा है,’ ग्राम चुनाव पर आधारित चर्चित वेबसीरीज ‘पंचायत’ अगर आपने देखी होगी तो आप इस डायलॉग या मीम्स से जरूर परिचित होंगे. अब इसी वेब सीरीज में देसी अंदाज में बनराकस का किरदार निभा कर लाइमलाइट लूटने वाले दरभंगा के अभिनेता दुर्गेश कुमार ने बिहार चुनाव को लेकर बड़ा बयान दिया है. 

वेब सीरीज में तो वो आखिरकार प्रधान का चुनाव जीत जाते हैं लेकिन वास्तविक दुनिया में चुनाव को लेकर उनका अनुभव बेहद अलग रहा है. दुर्गेश कुमार ने एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र अलीनगर में आज तक जिस भी उम्मीदवार को वोट दिया है वो कभी चुनाव नहीं जीता है. अलीनगर बिहार की वही सीट है जहां से इस बार बीजेपी ने चर्चित लोक गायिका मैथिली ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है. 

दो करोड़ रुपये में बिकता है टिकट: दुर्गेश कुमार
  
बनराकस यानी की दुर्गेश कुमार ने बताया, ‘अलीनगर विधानसभा क्षेत्र का मेरे पास वोटर आईडी कार्ड है. मैं वहां हर बार एक सही उम्मीदवार को वोट देता हूं, अब किसको देता हूं वो नहीं बताऊंगा. वो जीतता ही नहीं है तो मैं क्या करूं, वहां कौन जीतता है पता है ? क्या आपको पता है यहां दो करोड़ रुपये में टिकट बिकता है. कौन सी पार्टी है डेट, टाइम बताऊंगा आपको, दो करोड़ रुपये में बिहार में टिकट बिकता है.’

दुर्गेश ने रंगमंच से की थी शुरुआत

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दुर्गेश कुमार आज बिहार की मिट्टी से निकले उन कलाकारों में शुमार हैं जिन्होंने बिना किसी गॉडफादर के अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया है. दरभंगा से ताल्लुक रखने वाले दुर्गेश ने अपने सफर की शुरुआत रंगमंच से की थी. गांव के नुक्कड़ नाटक और कॉलेज के ड्रामा प्रतियोगिताओं से आगे बढ़ते हुए उन्होंने थिएटर की बारीकियों को समझा और अभिनय को अपनी पहचान बनाई.

दुर्गेश का मानना है कि अभिनय सिर्फ संवाद बोलने की कला नहीं बल्कि जीवन को जीने की समझ है. पंचायत वेबसीरीज में उनका किरदार बनराकस भले ही एक छोटे गांव का हो, लेकिन उसमें हास्य और सच्चाई की जो परतें हैं, उन्होंने इस किरदार को दर्शकों के दिलों में अमर कर दिया.

वो बताते हैं कि जब उन्हें इस किरदार के लिए चुना गया, तब उन्होंने गांव की बोलचाल, देहाती हावभाव और ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को करीब से महसूस किया. यही वजह है कि ‘पंचायत’ का हर दृश्य इतना जीवंत लगता है.
 

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