किडनी की बीमारी से जूझ रहे लाखों लोग रोज नई उम्मीद की तलाश में रहते हैं. लेकिन अब एक अच्छी खबर है. कनाडा और चीन के वैज्ञानिकों ने 10 साल की मेहनत के बाद यूनिवर्सल किडनी बनाई है, जो किसी भी ब्लड टाइप वाले मरीज को दी जा सकती है. इससे वेटिंग लिस्ट छोटी होगी और जिंदगियां बचेंगी.
किडनी ट्रांसप्लांट की मौजूदा समस्या: ब्लड ग्रुप की दीवार
सबसे पहले समझिए समस्या. किडनी ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की किडनी रिसीवर के ब्लड ग्रुप से मैच करनी चाहिए. O टाइप का ब्लड ‘यूनिवर्सल डोनर’ है यानी ये किसी भी ग्रुप (A, B, AB, O) वाले को दिया जा सकता है. लेकिन O टाइप की किडनियां कम हैं, क्योंकि इन्हें हर कोई इस्तेमाल कर सकता है.
यह भी पढ़ें: कैसे पहचाने ग्रीन पटाखे, अगर पहचानने में गलती हुई तो क्या सजा या कार्रवाई हो सकती है?
वेटिंग लिस्ट पर आधे से ज्यादा लोग O टाइप की किडनी का इंतजार करते हैं. अमेरिका में ही रोज 11 लोग किडनी न मिलने से मर जाते हैं. भारत में भी लाखों मरीज डायलिसिस पर जी रहे हैं. अगर अलग ब्लड ग्रुप की किडनी ट्रांसप्लांट करें तो बॉडी उसे विदेशी समझकर रिजेक्ट कर देती है. अभी का तरीका? मरीज को दवाओं से तैयार करना – ये महंगा, लंबा और जोखिम भरा है. लिविंग डोनर चाहिए और कई महीने लगते हैं.
यूनिवर्सल किडनी क्या है? एक नजर
ये नई किडनी ‘O टाइप जैसी’ है, जो किसी भी ब्लड ग्रुप वाले मरीज के बॉडी में घुल-मिल जाएगी. वैज्ञानिकों ने A टाइप की किडनी को O टाइप में बदल दिया. कनाडा की यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया के बायोकेमिस्ट स्टीफन विथर्स कहते हैं कि ये पहली बार इंसानी बॉडी में टेस्ट हुई. इससे हमें लंबे समय तक काम करने के टिप्स मिले. ये किडनी ब्रेन-डेड (मस्तिष्क मृत) व्यक्ति के बॉडी में कई दिनों तक काम करती रही. परिवार की सहमति से ये रिसर्च हुई.
कैसे बनाई गई ये किडनी? एंजाइम्स की जादुई कैंची
ब्लड टाइप A, B या AB में किडनी की सतह पर शुगर मॉलिक्यूल्स (एंटीजेंस) लगे होते हैं, जो बॉडी को बताते हैं कि ये ‘अपनी’ है या ‘विदेशी’. O टाइप में ये एंटीजेंस नहीं होते. वैज्ञानिकों ने स्पेशल एंजाइम्स (प्रोटीन) इस्तेमाल किए, जो A टाइप के एंटीजेंस को काट देते हैं.
यह भी पढ़ें: 1962 की जंग ने खाली कराया उत्तराखंड का खूबसूरत गांव, अब वापस लौट रही जिंदगी
विथर्स इसे कार के रंग हटाने से तुलना करते हैं. कहते हैं कि जैसे लाल पेंट हटाकर न्यूट्रल प्राइमर दिखाना. एंटीजेंस हटते ही इम्यून सिस्टम किडनी को अपना समझ लेता है. ये एंजाइम्स पहले से पहचाने गए थे, लेकिन अब इन्हें किडनी पर सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया गया. रिसर्च नेचर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग जर्नल में छपी है.
टेस्ट कैसे हुआ? रिजल्ट्स क्या निकले?
ब्रेन-डेड व्यक्ति के बॉडी में A टाइप किडनी ट्रांसप्लांट की गई. वो कई दिनों तक काम करती रही – ब्लड फिल्टर किया, वेस्ट हटाया. तीसरे दिन A टाइप के साइन थोड़े दिखे, जिससे हल्का इम्यून रिस्पॉन्स हुआ. लेकिन ये सामान्य से कम था. बॉडी किडनी को सहन करने की कोशिश कर रही थी. विथर्स कहते हैं कि ये बेसिक साइंस का मरीजों तक पहुंचना है. हमारी खोजें अब रियल वर्ल्ड में असर दिखा रही हैं.
आगे की चुनौतियां: अभी लिविंग ह्यूमन्स में टेस्ट बाकी
ये शुरुआत है. कई मुश्किलें बाकी हैं…
- एंटीजेंस पूरी तरह न हटें, तो रिजेक्शन हो सकता है.
- लंबे समय तक कैसे चलेगी? अभी सिर्फ कुछ दिन.
- लिविंग पेशेंट्स पर ट्रायल कब? अभी दूर है.
वैज्ञानिक दूसरे तरीके भी आजमा रहे हैं – जैसे पिग्स की किडनी इस्तेमाल करना या नई एंटीबॉडीज बनाना. लेकिन ये यूनिवर्सल किडनी वेटिंग टाइम कम करके लाखों जिंदगियां बचा सकती है.
क्यों महत्वपूर्ण है ये ब्रेकथ्रू?
दुनिया भर में किडनी फेलियर बढ़ रहा है – डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर से. अमेरिका में 1 लाख से ज्यादा वेटिंग लिस्ट पर हैं. भारत में 2 लाख से ज्यादा. O टाइप की कमी से ज्यादातर मरीज मर जाते हैं. अगर यूनिवर्सल किडनी आ गई, तो डोनर्स की संख्या दोगुनी हो जाएगी.
—- समाप्त —-