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क्या बिहार विधानसभा चुनावों में मुकेश सहनी तेजस्वी यादव का खेल बिगाड़ेंगे? – Mukesh Sahni spoil game of Tejashwi Yadav in Bihar election opns2


बिहार विधानसभा चुनाव के लिए अब तीन हफ्ते का समय बचा है. पहले चरण के नामांकन का कल यानि शुक्रवार को अंतिम दिन है. पर महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के लिए जो उठापटक मची हुई है उसके चलते अभी तक सब कुछ गड्ड मड्ड है. RJD-कांग्रेस-वाम दल-VIP में सीट बंटवारे का पेच ऐसा फंसा हुआ है कि महागठबंधन टूटने की कगार पर है.

इसके केंद्र बिंदु में आ गए हैं खुद का सन ऑफ मल्लाह कहने वाले मुकेश सहनी. विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संस्थापक सहनी और आरजेडी में तेजस्वी यादव को CM फेस बनाने की सहमति बन चुकी है, लेकिन सहनी की मांगें (20+ सीटें और डिप्टी CM पद) ने गठबंधन को हिला दिया है.सहनी गुरुवार को दोपहर में पीसी करने वाले थे. समझा जा रहा है कि वो प्रेशर पॉलिटिक्स का खेल कर रहे हैं. क्योंकि 12 बजे उन्होंने पीसी स्थगित करके 4 बजे कर दी. करीब छह बज चुके हैं पर अब तक उनके पीसी का इंतजार हो रहा है.

 सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ दबाव की रणनीति है या सहनी वाकई तेजस्वी का ‘खेल’ बिगाड़ देंगे. क्या गठबंधन तोड़कर वो एनडीए (BJP-JDU) के लिए वोटकटवा बन जाएंगे? आइए, डेटा, इतिहास और हालिया घटनाओं से विश्लेषण करें.

मुकेश सहनी और VIP का बैकग्राउंड?

मुकेश सहनी निषाद समुदाय से आते हैं और बिहार के एक उभरते अति पिछड़े नेता हैं. VIP (2020 में गठित) मुख्य रूप से निषाद, मल्लाह, केवट जैसी मछुआरा जातियों (बिहार में 4-5% आबादी) का प्रतिनिधित्व करती हैं. सहनी को ‘मिसाइल मनजपुर’ के नाम से जाना जाता है, जो 2020 चुनावों में एनडीए से जुड़कर VIP को 4 सीटें दिला चुके हैं. लेकिन 2022 में नीतीश के महागठबंधन में आने पर सहनी ने  RJD के साथ हो गए. 2024 लोकसभा में VIP ने महागठबंधन के लिए 5 सीटें लड़ीं, लेकिन कोई सीट नहीं जीत सके. हालांकि उनका वोट बैंक पिछले लोकसभा चुनावों से बेहतर हुआ. सहनी का स्टाइल आक्रामक है: वे लालू-तेजस्वी की तारीफ करते हैं, लेकिन अपनी ‘निषाद अस्मिता’ पर जोर देते हैं.

सीट बंटवारे पर सहनी की जिद चुनाव घोषणा के बाद महागठबंधन में सीट शेयरिंग पर सहमति बन रही थी (RJD: 135, कांग्रेस: 61, VIP: 16), लेकिन सहनी ने इसे ठुकरा दिया है. सहनी 20-60 सीटें चाहते हैं, पिछले चुनाव में VIP को सिर्फ 11 मिलीं थीं. RJD ने 18 ऑफर किया है लेकिन शर्त यह है कि कुछ सीटों पर RJD के उम्मीदवार होंगे जिन्हें सहनी अपना सिंबल दे सकते हैं. हालांकि कहा जा रहा है कि तेजस्वी ने दो टूक कह दिया है कि 15 स्वीकार करो, वरना स्वतंत्र रहो.  

सहनी ने खुलेआम कहा कि तेजस्वी CM बनेंगे, मैं डिप्टी. यह तेजस्वी के सामने ही बोला गया है.  सहनी का तर्क है कि निषाद वोटों के बिना MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण अधूरा है. 

सहनी की कितनी हैसियत बिहार में, कितना वोट बैंक है उनके पास

बिहार की राजनीति में मुकेश सहनी अपनी हैसियत एक ‘किंगमेकर’ की मानते हैं. लेकिन खुद की पार्टी का वोट बैंक सीमित होने से ‘वोटकटवा’ बन जाने का जोखिम ज्यादा है. विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के संस्थापक सहनी निषाद (मछुआरा) समुदाय के बीच लोकप्रिय हैं. विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के लिए उनकी सौदेबाजी ने महागठबंधन (RJD-कांग्रेस-वाम) और NDA (BJP-JDU) दोनों को तनाव में डाल दिया है. 

2020 विधानसभा में VIP ने NDA के साथ 11 सीटें लड़ीं, 4 जीतीं. सहनी खुद सिमरी बख्तियारपुर से चुनाव हार गए थे. हार के बावजूद नीतीश सरकार में मंत्री बने लेकिन 2022 में नीतीश के महागठबंधन में जाने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 2024 लोकसभा में महागठबंधन के साथ मिलकर गोपालगंज, झंझारपुर, मोतिहारी में अपने कैंडिडेट खड़े किए लेकिन चुनाव हार गए. इसके बावजूद भी 2025 में सहनी का दबदबा चरम पर है. VIP ने शुरू से महागठबंधन में 60 सीटें और डिप्टी सीएम पद की डिमांड की थी. हालांकि अब वे नरम पड़ गए हैं. 25-35 की मांग पर भी सहमति बना सकते हैं. 

वे डिप्टी CM पद पर अड़े हुए हैं, कहते हैं, कि तेजस्वी CM, मैं डिप्टी सीएम कैंडिडेट हूं.  सहनी के लिए खुशी की बात यह है कि NDA आज भी उन्हें ललचाता है, क्योंकि निषाद वोट EBC (36% आबादी) का हिस्सा हैं. उनकी छवि आक्रामक है. सोशल मीडिया पर वो निषादों को लुभाते हैं. लेकिन अवसरवादिता (NDA से महागठबंधन, फिर वापस) का ठप्पा उन पर लग चुका है. 

निषाद वोटों के बीच सहनी की कितनी पैठ

वीआईपी का उत्तर बिहार के नदी तटीय क्षेत्रों में अपने समुदायों के बीच काफी अच्छा प्रभाव बन चुका है. इसी के बल पर सहनी गठबंधनों से सौदेबाजी को तैयार रहते हैं. 2023 के बिहार जाति सर्वेक्षण के अनुसार, निषाद समुदाय राज्य की कुल आबादी का लगभग 9.6% है. वैसे मल्लाह का उप-समूह सहनी का शेयर 2.6% है. मल्लाहों के अलावा, निषाद समुदाय में बिंद, मांझी, केवट और तुरहा समूह आदि शामिल हैं. जाहिर है कि निषाद समुदाय जिस किसी भी गठबंधन पर मेहरबान होगा उसका मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, मधुबनी, खगड़िया, वैशाली और उत्तर बिहार के कुछ अन्य जिलों में किस्मत चमक सकती है.

वीआईपी धीरे-धीरे अपने समुदाय के अन्य उप-समूहों का भी समर्थन जुटाने में सफल हुआ है. यही वजह थी कि भाजपा ने 2020 में उन्हें 11 सीटें दीं. सहनी के लिए एनडीए को आकर्षक बनाने वाली एक और वजह महागठबंधन में वीआईपी का फीका प्रदर्शन है. 2019 के लोकसभा चुनाव में वीआईपी ने तीन सीटों – मुजफ्फरपुर, खगड़िया और मधुबनी – पर चुनाव लड़ा था और तीनों पर हार गई थी. सहनी खुद खगड़िया से लोजपा के महबूब अली कैसर से ढाई लाख वोटों से हार गए थे. 

वीआईपी ने 2024 का लोकसभा चुनाव महागठबंधन के सहयोगी के रूप में फिर से लड़ा और नतीजे थोड़े बेहतर ही रहे. सहनी की पार्टी ने जिन तीन सीटों पूर्वी चंपारण, झंझारपुर और गोपालगंज से चुनाव लड़ा था वो फिर से हार गईं, लेकिन उसका कुल वोट शेयर 2019 के 1.66% से बढ़कर 2.71% हो गया.

दूसरे एनडीए के साथ रहते हुए वो बिहार में निषादों के नेता रूप में स्थापित हो सकते हैं. जैसे यूपी में संजय निषाद ने अपनी जगह बना ली है. हालांकि एनडीए में भी बहुत से दल अब पहुंच चुके हैं इसलिए यह कहा नहीं जा सकता कि उन्हें वहां भी मुंह मांगी सीटें मिल जाएं.

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