इजरायल और आतंकी संगठन हमास के बीच युद्ध रुक चुका. मध्यस्थता कर रहे अमेरिका की योजना के अनुसार चलें तो सैनिकों को हटाने और हमास के हथियार डालने के बाद एक बेहद अहम चरण आएगा- गाजा के रीकंस्ट्रक्शन का. हमास का हेडक्वार्टर रहा ये शहर दो साल के हमले में बुरी तरह बर्बाद हो चुका. अब उसे नए सिरे से खड़ा किया जाएगा. इस बीच कई जगहों पर उसकी नागासाकी से तुलना हो रही है.
गाजा और नागासाकी पर हमले के तरीके अलग रहे, दुश्मन भी अलग रहे, और वजहें भी- लेकिन जख्म दोनों को मिले.
दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान अमेरिका के परमाणु अटैक में हिरोशिमा में लगभग डेढ़ लाख लोग मारे गए, जबकि नागासाकी में करीब सत्तर हजार जानें गईं. आज गाजा में भी हालात कमोबेश वही हैं. फिलिस्तीनी स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, दो साल में वहां पैंसठ हजार से ज्यादा मौतें हो चुकीं. माना जा रहा है कि अब भी बहुत से लोग मलबे में दबे होंगे.
पीछे लौटें तो यूएस ने पहला परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराया था. जबकि तीन दिन बाद नागासाकी पर गिरा बम शहर के बाहरी हिस्से पर गिरा. उराकामी नाम का ये हिस्सा आर्थिक तौर पर पहले से ही कमजोर था. तिसपर परमाणु अटैक ने तबाही को और गहरा दिया. इस शहर को वापस खड़ा होने में हिरोशिमा से कहीं ज्यादा संघर्ष झेलना पड़ा. आज गाजा की स्थिति भी कहीं न कहीं वैसी ही है. वो आर्थिक तौर पर बदहाल है ही, और युद्ध ने और बर्बाद कर दिया.

सामाजिक स्ट्रक्चर देखें तो भी कई समानताएं मिलेंगी. नागासाकी के जिस इलाके पर बम गिरा था, वहां ज्यादातर अल्पसंख्यक रहते थे. इनमें कोरियाई मजदूर, और समाज से अलग माने जाने वाले बुराकू समुदाय के लोग शामिल थे. बमबारी में शहर का बड़ा हिस्सा मिट्टी में मिल गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक नागासाकी की करीब 61 फीसदी इमारतें तबाह हो गई थीं.
गाजा पट्टी के हालात भी वही हैं. संयुक्त राष्ट्र सैटेलाइट सेंटर के अनुमान के अनुसार, बमबारी में वहां लगभग 83 फीसदी इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं, यानी पूरा ढांचा लगभग खत्म हो गया है.
युद्ध के बाद मलबों के बीच से लाशों को निकालना सबसे मुश्किल काम है. नागासाकी की बमबारी के बाद पहली बार इसका अंदाजा हुआ. हमले में जिंदा बचे लोगों ने एक दशक पहले हुए एक सर्वे में बताया था कि बम गिरने के बाद कैसे मलबे से शव निकाले गए और कैसे उन्होंने डर, भूख और तबाही के बीच खुद को जिंदा रखा. शव निकालने के बाद मलबों की सफाई होगी. इसके बाद ही रीकंस्ट्रक्शन हो सकता है.
द कन्वर्सेशन की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि अभी भी करीब चौदह हजार शव मलबे में दबे हो सकते हैं, जिनमें से बहुत से शायद कभी नहीं मिल पाएंगे. वहीं काफी सारे सीजफायर के बाद से निकाले भी जा चुके.

अब आते हैं, पुनर्निर्माण में राजनीतिक पेंच पर.
नागासाकी में विस्फोट के बाद बहुत से सर्वाइवर्स को गुफाओं में रहना पड़ा. बाद में जब वे बाहर आए तो सड़क बनाने के नाम पर उनके मकानों के अवशेष भी गायब कर दिए गए थे. खासकर जिन परिवारों में एडल्ट नहीं बचे थे, या महिलाएं-बच्चे ही थे, उनके साथ काफी नाइंसाफी हुई. कम कीमत पर उनकी जमीनें ले लीं गईं. चूंकि ये तबका माइनोरिटी या कमजोर पहले से ही था, ऐसे में उनकी आवाज लंबे समय तक दबी रही. वैसे भी वो विश्व युद्ध के बाद का समय था, जिसमें पूरा देश तबाहियों से जूझ रहा है. लिहाजा, नागासाकी लंबे समय तक उपेक्षित रहा.
गाजा पट्टी में भी ऐसे हालात दिख सकते हैं. अब वहां रिहायशी इमारतें रही नहीं, लिहाजा सड़क चौड़ी करने या स्कूल-अस्पताल बनाने के नाम पर औनी-पौनी कीमत पर जमीनों पर कब्जा हो सकता है. ऐसे समय में स्थानीय माफिया भी एक्टिव हो जाते हैं. गाजा पट्टी में हमास के बाद हाल-फिलहाल में कोई स्थाई सरकार शायद ही आए, ऐसे में गड़बड़ियों का डर और ज्यादा है.
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