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महागठबंधन की गाड़ी फुल स्‍पीड में चलाकर अचानक राहुल गांधी ने ‘ब्रेक’ क्‍यों लगा दिए – Congress Rahul Gandhi delays regarding Bihar election 2025 damaging mahagathbandhan opns2


बिहार विधानसभा चुनावों के पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 17 अक्टूबर है, यानि कि अब केवल 2 दिन बाकी है. लेकिन महागठबंधन (आरजेडी, कांग्रेस, वाम दलों और अन्य छोटे सहयोगियों का गठबंधन) अभी तक सीट बंटवारे की घोषणा नहीं कर पाया है. यह देरी न केवल गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि एनडीए (जेडीयू-भाजपा-हम) को फायदा भी पहुंचा रही है. एनडीए ने 12 अक्टूबर को ही सीट बंटवारा (जेडीयू और भाजपा को 101-101 सीटें, एलजेपी को 29) घोषित कर दिया. हालांकि इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ सीटों को लेकर अभी तक एनडीए खेमें में भी गहमागहमी है. पर मुख्य मु्द्दों पर सहमति बन चुकी है. 

महागठबंधन खेमे में सबसे बड़ा विवाद कांग्रेस का है, जो आरजेडी के साथ सीटों पर अड़ी हुई है. कांग्रेस 70 सीटों की मांग कर रही है (2020 जैसी), जबकि आरजेडी 52-58 सीटें देने को तैयार है. बीच में खबरें आईं थी कि कांग्रेस 58 मजबूत सीटों के साथ तैयार हो गई है. पर पता नहीं क्यों फिर से बात बिगड़ गई.पहले चरण के लिए पर्चा दाखिला में अब केवल दो दिन बचा है , पर अभी तक प्रत्याशियों के नामों पर फैसला नहीं हो सका है.  इसके अलावा, तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का आधिकारिक चेहरा घोषित न करने का मुद्दा भी चल रहा है. तेजस्वी लगातार खुद को सीएम चेहरा घोषित कर रहे हैं पर सहयोगी दल कांग्रेस एक बार भी खुलकर उनके नाम पर मुहर नहीं लगा रही है. जिससे गठबंधन में असहजता से इनकार नहीं किया जा सकता है. अगर पिछले विधानसभा चुनावों का विश्वलेषण करें तो महागठबंधन को इस बार लीड करना चाहिए था. पर कांग्रेस की लेट लतीफी गठबंधन को भारी पड़ रही है. 

कांग्रेस की लेटलतीफी हमेशा से सहयोगी दलों के लिए भारी पड़ती है

याद करिए 2024 का लोकसभा चुनाव. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस यहां मिलकर चुनाव लड़ रहे थे. समाजवादी पार्टी ने अपनी पूरी तैयारी कर रखी थी.सभी सीटों पर उनके कैंडिडेट भी तैयार थे. पर कांग्रेस की ओर बार-बार डिले हो रहा था. अखिलेश यादव को मजबूरी में अपनी ओर से सपा कैंडिडेट का नाम पहले जारी करना पड़ा.  यहां तक कि पहले चरण के चुनाव तक समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की कोई संयुक्त सभा तक नहीं हो सकी .ताकि जनता के बीच ये संदेश जाए कि दोनों ही पार्टियां साथ चुनाव लड़ रही हैं. किसी तरह जल्दी जल्दी में पहले चरण के चुनाव के एक या दो दिन पहले गाजियाबाद में एक पीसी हुई. पीसी में राहुल और अखिलेश यादव दोनों ने ही भाग लिया.

ठीक यही हाल बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर हो रहा है. आरजेडी सहित करीब करीब सभी पार्टियों ने अपने कैंडिडेट तय कर लिए हैं. पर कांग्रेस की ओर से उसके प्रत्याशियों के नाम अभी तक सामने नहीं आए हैं. जबकि पहले चरण के लिए नामांकन भरने की तारीख में केवल एक दिन बचा है. जाहिर है कि यह लापरवाही कांग्रेस ही नहीं पूरे महागठबंधन को भारी पड़ने वाली है. 

कांग्रेस के चलते बिहार में सभी सहयोगी दलों की सांस अटकी हुई है. सीट बंटवारे पर तस्वीर साफ हुए बगैर सहयोगी दल अपने उम्मीदवारों को मजबूरी में सिंबल जारी कर रहे हैं.आरजेडी ने अबतक कुल 71 उम्मीदवारों को जारी किया है जबकि भाकपा माले ने 18 सीटों पर उम्मीदवारों को सिंबल दिया है. सीपीआई ने 6 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की, 4 अन्य सीटों पर सहमति के बाद उम्मीदवार उतारने का दावा है.आरजेडी ने वीआईपी को अबतक 12 सीटों पर अपनी सहमति दी है. महागठबंधन में अबतक के हालात बताते हैं कि सीट शेयरिंग के मामला केवल कांग्रेस के चलते फंसा हुआ है.

राहुल गांधी की ऐन मौके पर लंबी विदेश यात्रा

ऐसे समय में जब देश के एक महत्वपूर्ण राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहा है, राहुल गांधी का 10 दिन के विदेश यात्रा पर जाना यानि कम से कम 2 हफ्ते की छुट्टी भी कांग्रेस सहित महागठबंधन को भारी पड़ी है. ऐसे समय जब बिहार में पार्टी मजबूत हो रही थी राहुल गांधी का गायब होना कांग्रेस कार्यकर्ताओं के लिए किसी सदमे से कम नहीं था.

बिहार में महागठबंधन की सीट शेयरिंग पर विवाद चल रहा है. कांग्रेस 65 से अधिक सीटें मांग रही है, जबकि आरजेडी 55 तक सीमित रखना चाहती है. जाहिर है कि राहुल गांधी इंडिया में रहते तो अब तक कई दौर की बातचीत हुई होती. राहुल गांधी अगर खुद भी बातचीत में शामिल नहीं होते तो भी कम से कम उनका रहना फैसलों को प्रभावित करता. राहुल की अनुपस्थिति में यह विवाद सुलझ नहीं सका.तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा घोषित करने का मुद्दा भी लटका हुआ है.

बिहार में राहुल की ‘वोटर राइट्स यात्रा’ ने दलित-मुस्लिम वोट एकजुट करने में मदद की थी. लेकिन यात्रा के बाद उनकी विदेश यात्रा के बाद कांग्रेस की ओर से प्रचार गायब है. यहा तक कि प्रियंका गांधी भी चुनाव मैदान से दूर ही दिख रही हैं.

एनडीए ने 12 अक्टूबर को सीट शेयरिंग (101-101) घोषित कर प्रचार तेज कर दिया, जबकि महागठबंधन के कार्यकर्ता भ्रमित हैं. एक्स पर #RahulMissingInBihar ट्रेंड करता रहा, जहां यूजर्स कह रहे थे कि बिहार चुनाव में राहुल फरार, महागठबंधन हार का रोडमैप !. भाजपा नेता अमित मालवीय ने तंज कसा कि राहुल कोलंबिया में कॉफी ब्रूइंग सीख रहे हैं, जबकि बिहार में महागठबंधन हार रहा है. 

तमिलनाडु में हिंदी को बैन करने जा रहे स्टालिन को बिहार में घुमाना

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन वाली डीएमके सरकार एक ऐसा बिल पेश करने जा रही है जिससे राज्य में हिंदी फिल्मों, गानों और होर्डिंग्स पर प्रतिबंध लग जाएगा. यह कदम केंद्र की तीन-भाषा फॉर्मूला और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ था, जिसे डीएमके ‘हिंदी थोपना’ मानती है. ये वही स्टालिन हैं जिन्हें अभी दो हफ्ते पहले ही बिहार में महागठबंधन के पक्ष में प्रचार करने के लिए राहुल गांधी लेकर आए थे. हालांकि स्टालिन सरकार पर इसके पहले भी बिहारियों के साथ दुर्व्यवहार करने और हिंदू धर्म को डेंगू मलेरिया कहने का आरोप लग चुका है.यही कारण रहा कि बीजेपी और जनता दल यू ने स्टालिन की बिहार यात्रा का विरोध किया था. 

पर स्टालिन भी कम नहीं है. उन्हें भी इंडिया ब्लॉक की चिंता नहीं है. अगर ऐसा होता तो हिंदी विरोधी अपना फैसला बिहार के चुनावों के बाद भी ले लेते. पर उन्हें भी कांग्रेस की कितनी परवाह है , यह सामने आ गया है. कांग्रेस ने तेलंगाना के सीएम रेवंत रेड्डी को भी बिहार चुनाव प्रचार के लिए बुलवाया था. याद करिए ये वही रेवंत रेड्डी हैं जिन्हें बिहार के डीएनए ही गड़बड़ लगता है. जाहिर है कि बीजेपी, जेडीयू और जनसुराज के पास राहुल को विलेन बनाने के लिए काफी मसाला है.

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