दो साल से चल रहा इजरायल-हमास युद्ध आखिरकार खत्म हो गया. गाजा में बीते कई दिनों से सीजफायर लागू है. बमबारी से बचने के लिए सेफ जोन्स की तरफ पलायन कर गई आबादी पर अब वापस लौटने का दबाव है. हालांकि हमलों में गाजा के रिहायशी इलाकों से लेकर अस्पताल भी खंडहर हो चुके. ऐसे में क्या वापस लौटे गाजावसियों को अस्थाई राहत मिल सके, इसके लिए भी कोई इंतजाम है?
अक्टूबर 2023 में शुरू हुई लड़ाई के बीच पहले तो फोकस हमास के ठिकानों पर रहा. लेकिन फिर पता लगा कि आतंकी संगठन ठीक शहर में आबादी के साथ बसा हुआ है. इसके बाद जमीनी हमले भी होने लगे. उत्तरी गाजा में कार्रवाई के बीच लाखों लोग दक्षिण की तरफ पलायन कर गए क्योंकि वहां सेफ जोन बनाए गए थे.
– खान यूनिस दक्षिण का सबसे बड़ा शहर है, जो विस्थापितों का बड़ा ठिकाना रहा. हालांकि बाद में यहां भी बमबारी हुई.
– मिस्र की सीमा से सटा इलाके रफा क्रॉसिंग में काफी आबादी जमा थी. उसे उम्मीद थी कि स्थिति बिगड़ने पर मिस्र अपनी सीमाएं खोल देगा.
– स्कूल, अस्पताल और पब्लिक बिल्डिंग को शरणस्थली में बदला गया, जहां पर यूएन सुविधाएं दे रहा था.
– जब सारे ठिकाने भरने लगे तो लोगों ने खुले मैदानों और तटीय इलाकों में अस्थायी तंबू डालकर रहना शुरू कर दिया.
अब हालात ऐसे हैं कि पूरे गाजा की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी अपने घर गंवा चुकी. ज्यादातर लोग कई-कई बार विस्थापन झेल चुके. अब यही लोग वापस उत्तरी गाजा की तरफ लौट रहे हैं.

शुक्रवार को सीजफायर लागू होते ही हजारों लोग दक्षिण से उत्तर की तरफ चलने लगे. लोग पैदल या छोटे वाहनों से वापसी कर रहे हैं. अनुमान है कि तब से इतने ही दिनों में दो लाख से ज्यादा लोग वापस लौट चुके. हालांकि वहां स्थिति ऐसी नहीं कि गुजारा हो सके. इमारतें ध्वस्त हो चुकी हैं. बिजली- पानी नहीं है या है भी तो बहुत कम. अस्पताल, स्कूल जैसी सार्वजनिक जगहें खंडहर हो चुकीं.
कई खतरे अभी भी बने हुए हैं. मसलन, दो सालों की बमबारी के बीच बहुत से विस्फोटक बिना फटे पड़े होंगे. ये बड़ा जोखिम हैं. हो सकता है कि मलबे हटाते हुए या सड़क से गुजरते हुए ही लोगों के पैर इनपर पड़ जाएं और विस्फोट हो जाए. युद्ध-प्रभावित इलाकों में ऐसे मामले बहुतेरे आते हैं.
सेना कहां तक हटेगी और कब तक हटेगी, ट्रंप के शांति प्रस्ताव में इसकी डिटेलिंग नहीं. ऐसे में हो सकता है कि बंधकों और कैदियों की अदला-बदली के बीच हमास या इजरायल में से किसी का मन बदल जाए और वो दोबारा उग्र हो जाए. हटने के दौरान इजरायली सेना भी आक्रामक हो सकती है क्योंकि देश काफी सारे बंधकों को खो चुका.
ये सब एक बार के लिए छोड़ भी दिया जाए तो मानवीय मदद की कमी बड़ा संकट है. गाजा की सीमाओं की इजरायल ने ही नहीं, इजिप्ट ने भी घेराबंदी कर रखी है. बहुत सीमित रास्तों से मानवीय सहायता पहुंच पा रही है. शुक्रवार को सीजफायर लागू होते ही कई रेस्क्यू एजेंसियों ने उत्तरी गाजा तक पहुंचना चाहा लेकिन रास्ता आसान नहीं था.

पुल टूटे हुए थे, रास्ते में जगह-जगह मलबा पड़ा था. राहत सामग्री से भरी गाड़ियों के सामने एक डर ये भी था कि बिना फटे हुए बम फट सकते हैं. इसके अलावा, कुछ इलाकों में कॉरिडोर खुला नहीं है क्योंकि सैन्य कंट्रोल की अदलाबदली नहीं हो सकी. ऐसे में खाना-साफ पानी-दवाएं जैसी चीजें उत्तरी हिस्से तक नहीं पहुंच पा रही हैं, या काफी मुश्किल हो रही है.
जबालिया रिफ्यूजी कैंप जैसे इलाके सबसे खराब स्थिति में हैं. यह कैंप बहुत ही घनी आबादी वाला इलाका है. ज्यादातर मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि यहां घरों से लेकर बाजार तक ध्वस्त हो चुके. लोगों को कहां जाना है, ये तक नहीं पता क्योंकि उनके ठिकाने खत्म हो चुके.
क्या फौरी राहत का कोई बंदोबस्त है
संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी और कई और रेस्क्यू संस्थाओं ने इस पर काम किया. जैसे ही सीजफायर लागू हुआ, यूएन ने टेंट्स भेजने की योजना बनाई ताकि लौटने वाले परिवारों को अस्थाई छत मिल सके. लगभग पच्चीस हजार परिवारों को टैंट बांटा गया जो अभी-अभी उत्तरी गाजा लौटे हैं. ट्रकों के जरिए ज्यादा से ज्यादा खाने का सामान और दवाएं भेजने की व्यवस्था हो रही है.
UN की एक रिपोर्ट कहती है कि करीब दो मिलियन लोगों को खाने की मदद पहुंचाने की योजना है, जिसकी तैयारियां हो रही हैं. राहत एजेंसियों ने लौटने वालों को अस्थाई तौर पर बेरोजगारी से राहत मिल सके, इसके लिए भी काम हो रहा है. कई जगह कैश-फॉर-वर्क प्रोग्राम चल रहे हैं ताकि लौटे हुए लोग कुछ काम कर सकें.
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