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गोधूली बेला, प्रदोष काल और महानिशा… सिर्फ अमावस्या नहीं इन तीन संयोग के साथ होनी चाहिए दीपावली पूजा – diwali date confusion pradosh kaal lakshmi puja 2025 ntcpvp


बीते कुछ वर्षों में ये देखा जा रहा है कि दीपावली का पर्व अपने साथ बहुत सारा कन्फ्यूजन लेकर आता है. समस्या यह होती है कि उत्सव किस दिन मनाया जाए और दूसरी समस्या दफ्तरों में होने वाली छुट्टियों को लेकर होती है. जिस दिन उत्सव होता है, उस दिन दफ्तर की छुट्टी नहीं होती है और जिस दिन दफ्तर छुट्टी मनाते हैं, तब तक उत्सव बीत चुका होता है, लिहाजा हर साल त्योहार के साथ इस तरह की उहापोह की स्थिति बन जाने का सिलसिला सा चल पड़ा है. 

यह समस्या क्यों होती है, इसे समझने की जरूरत है. 

पहली बात ये है कि भारतीय परंपरा के अधिकतम व्रत-उत्सव और त्योहार चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं, जिसकी एक इकाई तिथि होती है. आमतौर पर यह तिथि पूरे एक दिन का समय होता है, लेकिन पूरा एक दिन मान लेने से इसे पूरा 24 घंटा नहीं माना जाता है.

अपनी रोज की सहूलियत के लिए हम ग्रेगेरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं जो घंटा, दिन, महीने और साल में बंटा होता है. इसके एक दिन को तारीख कहा जाता है.

हमसे गलती यहां होती है कि हम चंद्र कैलेंडर की तिथि और ग्रेगेरियन कैलेंडर की तारीख के बराबर रखकर देखने लगते हैं. तिथि और तारीख बिल्कुल अलग-अलग इकाई हैं. इनको एक जैसा ट्रीटमेंट देने से ही कन्फ्यूजन शुरू होता है. 

Diwali Tithi

अमावस्या तिथि का उत्सव है दीपावली, तारीख का नहीं
अब बात करते हैं दीपावली की… तो दीपावली का उत्सव कार्तिक मास की अमावस्या की तिथि को मनाया जाता है. यह पूरी रात तक चलने वाला त्योहार है इसलिए पहली जरूरत है कि अमावस्या निशा व्यापिनी यानी पूरी रात रहे.  

यह 20 या 21 अक्टूबर को मनाया जाने वाला त्योहार नहीं है, इसिलए तारीख को लेकर कन्फ्यूज नही होना चाहिए.

किस आधार पर तय होती है उत्सव की तिथि
अमावस्या और दीपावली के कुछ अन्य पहलू भी हैं. व्रत उत्सव की तिथि संबंधी विचार को निर्णय सिंधु और व्रतराज सिंधु जैसे ग्रंथों से समझा जा सकता है. निर्णय सिंधु के अनुसार, दीपावली का निर्धारण करते समय प्रदोष व्यापिनी अमावस्या (यानी अमावस्या में प्रदोष काल का होना)  पर ध्यान दिया जाता है. अगर अमावस्या दोनों दिन प्रदोषकाल में मिल रही हो, तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन किया जाता है. 

20 अक्टूबर की तारीख को अमावस्या प्रदोष व्यापिनी है. इसलिए निर्णय सिंधु के अनुसार भी 20 अक्टूबर को ही दीपावली मनाई जाएगी.

उधर, काशी विद्वत परिषद ने भी इस कन्फ्यूजन को देखते हुए स्थिति क्लियर की है. परिषद के अनुसार इस अमावस्या में बन रहे दुर्लभ चंद्र संयोग के कारण ही उत्पन्न भ्रम दूर हो गया है. इस साल अमावस्या तिथि (जो दिवाली का मुख्य आधार है) 20 अक्टूबर दोपहर बाद 3:44 बजे से 21 अक्टूबर शाम 5:54 बजे तक रहेगी. अधिक तर लोग व्रत और त्योहारों को लिए उदया तिथि (सूर्योदय के समय शुरू होने वाली तिथि) पर ध्यान देते हैं. ऐसे में एक आम समझ के अनुसार 21 अक्टूबर को दीपावली पूजन का दिन माना जा रहा था. 

दीपावली का उदया तिथि से नहीं है संबंध
यही उदया तिथि ही बहस का आधार भी थी. काशी विद्वत परिषद ने इस बात को भी साफ किया है कि दीपावली में उदया तिथि का महत्व नही है. इसलिए इस पर विचार करना आधारहीन है. 

भ्रम की स्थिति इसलिए बनी क्योंकि अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर से शुरू होकर 21 अक्टूबर की शाम को दिन ढलने के साथ समाप्त हो रही है. हालांकि दोनों दिन अमावस्या रहेगी, लेकिन लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त (प्रदोष काल) 20 अक्टूबर को ही पड़ रहा है. इसी दिन भगवान राम के अयोध्या लौटने का उत्सव भी मनाया जाता है, जो अच्छाई की बुराई पर और प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक है.

काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने मीडिया बातचीत में कहा है कि “विद्वानों के साथ गहन चर्चा के बाद यह निष्कर्ष निकला कि पूरा प्रदोष काल 20 अक्टूबर को पड़ रहा है, इसलिए लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वाधिक शुभ यही दिन है.”

द्रिक पंचांग के अनुसार भी भले ही अमावस्या तिथि 21 अक्टूबर तक बनी रहती है, लेकिन संपूर्ण प्रदोष काल जो लक्ष्मी पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है 20 अक्टूबर को ही है. इसलिए धार्मिक विद्वान और संस्थाएं देशभर में दिवाली 20 अक्टूबर को मनाने की सलाह दे रही हैं.

गोधूली बेला, प्रदोष काल और महानिशा पूजा
दीपावली में लक्ष्मी पूजन के लिए अमावस्या में मिलने वाली गोधूलि बेला, प्रदोष काल, और महानिशा पूजा के लिए निशीथ काल की अमावस्या जरूरी है. यही दीपावली पूजन का आधार है. गोधूली बेला, दीपक जलाने का उत्तम समय, प्रदोष काल शिव सायंकाल और रुद्रपूजा का समय है और निशीथ काल की महानिशा काली पूजा के लिए उत्तम समय है. 

Diwali Tithi

इसलिए दीपावली 20 अक्टूबर को ही है. 

यह पहली बार नही है, पहले भी ऐसा हो चुका है और आगे कई वर्षों तक ऐसा ही होने वाला है. क्योंकि बीते कई वर्षों में दीपावली के मौके पर लगने वाले सूर्यग्रहण के कारण चंद्र कैलेंडर की तिथि पर असर पड़ा है. हाल के वर्षों में साल 2022 की दीपावली में सूर्यग्रहण लगा था. जिसके कारण गोवर्धन पूजा एक दिन बाद मनाई गई थी.

इसी तरह साल 1962 में भी ऐसी स्थिति आई थी, जब अमावस्या दो दिन पड़ गई थी. 27 अक्टूबर 1962 को अमावस्या सायंकाल 04:18 से शुरू होकर 28 अक्टूबर 1962 को सायंकाल 06:35 को समाप्त हुई. सूर्यास्त 05:32 पर हो गया था, लेकिन दीपावली 27 अक्टूबर 1962 को ही मनाई गई, क्योंकि 27 अक्टूबर को ही अमावस्या पूरे प्रदोष व अर्धरात्रि में रही थी.

इसी तरह अगले साल 2026 को भी ऐसी ही स्थिति होने वाली है. साल 2026 में अमावस्या तिथि 08 नवम्बर को सुबह 11:27 बजे शुरू हो रही है और इसकी समाप्ति 09 नवम्बर को दोपहर 12:31 पी एम बजे होगी. इसलिए दीपावली साल 2926 में 8 नवंबर को मनाई जाएगी.

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